
जमुई (चकाई)। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियों में राजनीतिक हलचल तेज हो चुकी है। इस बार कई विधानसभा क्षेत्रों में अप्रत्याशित समीकरण देखने को मिल रहे हैं। इनमें से सबसे ज्यादा चर्चा जमुई जिले के चकाई विधानसभा क्षेत्र की है, जिसे कभी भाजपा का मजबूत गढ़ माना जाता था। यह सीट भाजपा के लिए ‘सेफ जोन’ समझी जाती थी, लेकिन मौजूदा राजनीतिक हालात ने तस्वीर को पूरी तरह बदल दिया है। यहां भाजपा के सामने न केवल विपक्ष की चुनौती है, बल्कि खुद की अंदरूनी कमजोरी भी सिरदर्द बनी हुई है।
भाजपा का स्वर्णकाल और फाल्गुनी यादव का दौर
चकाई विधानसभा क्षेत्र में भाजपा की पकड़ फाल्गुनी यादव जैसे कद्दावर नेता की वजह से मजबूत हुई थी। यादव ने यहां भाजपा को जमीनी स्तर पर खड़ा किया और लंबे समय तक कार्यकर्ताओं को एकजुट रखा। स्थानीय जनता में उनकी स्वीकार्यता इतनी थी कि विपक्षी दलों को भी कई बार बैकफुट पर जाना पड़ा। लेकिन यादव के बाद भाजपा कोई ऐसा चेहरा खड़ा नहीं कर सकी जो जनता के बीच वैसी ही पकड़ बना सके। यही वजह है कि पार्टी का वोट बैंक धीरे-धीरे खिसकने लगा।
बदलते राजनीतिक समीकरण
पिछले कुछ चुनावों में चकाई सीट पर राजद और कांग्रेस ने अपनी पकड़ मजबूत की है। 2020 के चुनाव में यहां भाजपा को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था। उस हार से पार्टी अब तक उबर नहीं पाई है। इसके साथ ही, स्थानीय स्तर पर जदयू और वाम दलों की सक्रियता ने भी भाजपा के समीकरण बिगाड़ दिए हैं। ग्रामीण मतदाता अब परंपरागत वोटिंग पैटर्न से हटकर जातीय और विकास आधारित समीकरणों पर निर्णय ले रहे हैं।

भाजपा की अंदरूनी चुनौती

भाजपा की अंदरूनी चुनौती
भाजपा के लिए सबसे बड़ी समस्या है—स्थानीय नेतृत्व का अभाव। कई वर्षों से कार्यकर्ता इस बात की शिकायत करते रहे हैं कि पार्टी ऊपर से उम्मीदवार थोप देती है, जिससे जनता से उनका सीधा जुड़ाव नहीं हो पाता। यही कारण है कि भाजपा के वोटों में लगातार गिरावट दर्ज हो रही है। दूसरी ओर, विपक्ष ने स्थानीय चेहरों को आगे कर जनता का विश्वास जीता है।
युवाओं और पहली बार वोट करने वालों का रुझान
चकाई क्षेत्र में बड़ी संख्या में युवा और नए मतदाता हैं। रोजगार, शिक्षा और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की मांग इनके बीच सबसे बड़ा मुद्दा है। भाजपा की केंद्र और राज्य सरकार ने कई योजनाएं चलाईं, लेकिन विपक्ष यह प्रचारित करने में सफल रहा कि उन योजनाओं का असर इस क्षेत्र तक नहीं पहुंचा। यही कारण है कि युवा वर्ग अब अन्य विकल्पों की तरफ झुकता दिख रहा है।
जातीय समीकरण का असर
बिहार की राजनीति जातीय समीकरणों से हमेशा प्रभावित रही है और चकाई भी इसका अपवाद नहीं है। यहां यादव, कोइरी, दलित और मुस्लिम वोटर्स निर्णायक भूमिका निभाते हैं। पहले भाजपा को ऊपरी जातियों के साथ अन्य वर्गों का भी समर्थन मिलता था, लेकिन अब समीकरण बदल चुके हैं। राजद ने यादव और मुस्लिम वोट बैंक को फिर से साध लिया है, वहीं कांग्रेस और जदयू ने भी अपनी पकड़ मजबूत कर ली है।
भाजपा के लिए संभावित रास्ता
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भाजपा को चकाई विधानसभा क्षेत्र में वापसी करनी है तो उसे स्थानीय स्तर पर मजबूत चेहरा खोजना होगा। साथ ही, पार्टी को जातीय समीकरण से आगे बढ़कर विकास और रोजगार जैसे ठोस मुद्दों को लेकर जनता के बीच जाना होगा। वरना इस ‘सेफ सीट’ पर एक बार फिर विपक्षी दल ‘खेल’ कर सकते हैं।

चुनावी जंग में बढ़ती सरगर्मी

चुनावी जंग में बढ़ती सरगर्मी
जमुई जिले में चुनावी माहौल धीरे-धीरे गरमाने लगा है। गांव-गांव चौपाल, नुक्कड़ सभा और कार्यकर्ता सम्मेलन आयोजित हो रहे हैं। विपक्षी दल भाजपा की कमजोरियों को भुनाने में लगे हैं, जबकि भाजपा अपनी पुरानी पकड़ वापस पाने की कोशिश कर रही है। लेकिन सवाल यह है कि क्या भाजपा एक बार फिर इस सीट को जीत पाएगी या फिर उसे अपने ही गढ़ में हार का सामना करना पड़ेगा।
नतीजे का असर राज्य राजनीति पर
चकाई सीट का चुनाव परिणाम न सिर्फ स्थानीय बल्कि पूरे बिहार की राजनीति पर असर डालेगा। अगर भाजपा यहां वापसी करती है तो यह उसके लिए मनोबल बढ़ाने वाला कदम होगा, जबकि हार की स्थिति में विपक्ष को पूरे राज्य में नया जोश मिलेगा। यही वजह है कि सभी राजनीतिक दलों की नजरें इस सीट पर टिकी हुई हैं।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का समीकरण दिन-प्रतिदिन बदलता जा रहा है। कभी भाजपा का सुरक्षित गढ़ कही जाने वाली चकाई सीट अब ‘हॉट सीट’ बन गई है। यहां भाजपा के लिए चुनौती सिर्फ विपक्ष से नहीं बल्कि अपनी कमजोरियों से भी है। अगर पार्टी ने सही रणनीति और स्थानीय नेतृत्व पर भरोसा नहीं दिखाया, तो इस बार भी ‘खेल’ हो सकता है।