
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियों के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गढ़ हरनौत (Harnaut) में सियासी पारा चढ़ गया है। जनता दल यूनाइटेड (JDU) के भीतर गुटबाजी और असंतोष खुलकर सामने आ गया है। पार्टी कार्यकर्ताओं ने साफ संकेत दिया है कि अगर हरिनारायण सिंह या उनके पुत्र को टिकट दिया गया, तो वे खुलकर विरोध करेंगे। वहीं कार्यकर्ता चाहते हैं कि इस बार हरनौत सीट से या तो नीतीश कुमार के पुत्र निशांत कुमार या फिर वरिष्ठ जदयू नेता संजयकांत सिन्हा को टिकट मिले।
हरनौत बना राजनीतिक सुर्खियों का केंद्र
हरनौत, जो कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का राजनीतिक ‘होम ग्राउंड’ माना जाता है, इन दिनों आंतरिक खींचतान से गुजर रहा है। यह सीट लंबे समय से जदयू के नियंत्रण में रही है, लेकिन इस बार हालात कुछ अलग हैं। स्थानीय कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच टिकट को लेकर तीखा मतभेद उभर आया है।
जदयू के कई पुराने कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि वर्तमान विधायक हरिनारायण सिंह ने क्षेत्र की अनदेखी की है। विकास कार्य ठप हैं और जनता में नाराजगी बढ़ रही है। ऐसे में वे चाहते हैं कि पार्टी इस बार किसी नए चेहरे पर भरोसा जताए।
नीतीश कुमार के सामने सबसे बड़ी चुनौती – ‘होम ग्राउंड’ बचाना
हरनौत विधानसभा सीट मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए सिर्फ एक चुनाव क्षेत्र नहीं, बल्कि उनकी सियासी पहचान का प्रतीक भी है। उन्होंने 1985 में पहली बार इसी सीट से चुनाव लड़ा था। इसलिए यहां जदयू की आंतरिक बगावत नीतीश के लिए गंभीर चुनौती बन सकती है।
अगर पार्टी के अंदर मतभेद सुलझाए नहीं गए, तो विपक्ष इसका फायदा उठा सकता है। बीजेपी और राजद पहले से ही हरनौत में अपनी रणनीति मजबूत करने में जुटी हैं।
कार्यकर्ताओं की मांग – ‘निशांत कुमार या संजयकांत सिन्हा को मिले टिकट’
हरनौत में जदयू कार्यकर्ताओं की एक बड़ी मांग उभरकर सामने आई है। उनका कहना है कि इस बार पार्टी को युवा नेतृत्व पर भरोसा जताना चाहिए। कई कार्यकर्ता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पुत्र निशांत कुमार को राजनीति में सक्रिय देखने की इच्छा जता चुके हैं। उनका कहना है कि अगर निशांत कुमार मैदान में उतरते हैं, तो कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ेगा और जदयू की पकड़ मजबूत होगी।
इसके अलावा, पार्टी के वरिष्ठ नेता संजयकांत सिन्हा का नाम भी जोर पकड़ रहा है। वे लंबे समय से पार्टी के साथ जुड़े हुए हैं और हरनौत क्षेत्र में उनकी अच्छी पकड़ मानी जाती है। कार्यकर्ताओं का मानना है कि अगर सिन्हा को टिकट मिलता है, तो न केवल बगावत शांत होगी, बल्कि जदयू की स्थिति भी मजबूत होगी।
हरिनारायण सिंह के खिलाफ बढ़ता असंतोष
वर्तमान विधायक हरिनारायण सिंह के खिलाफ क्षेत्र में असंतोष साफ झलकने लगा है। कई गांवों के कार्यकर्ताओं ने मीटिंग कर उनके टिकट को लेकर नाराजगी जताई है। आरोप है कि उनके कार्यकाल में स्थानीय विकास योजनाओं पर ध्यान नहीं दिया गया। पार्टी संगठन कमजोर हुआ और जनता से जुड़ाव घटा।
जदयू के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया –
“हमने हरिनारायण सिंह को दो बार मौका दिया, लेकिन उन्होंने कार्यकर्ताओं की अनदेखी की। अगर पार्टी फिर से उन्हें टिकट देगी, तो हम खुलकर विरोध करेंगे।”
नीतीश कुमार की चुप्पी पर उठ रहे सवाल
हरनौत में बढ़ते सियासी तनाव पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब तक चुप हैं। उन्होंने इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। लेकिन राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि वे स्थिति पर बारीकी से नजर रखे हुए हैं।
नीतीश कुमार के लिए यह स्थिति असहज जरूर है, क्योंकि यह विवाद सीधे उनके गृह क्षेत्र से जुड़ा है। वे किसी भी कीमत पर हरनौत में पार्टी की एकजुटता बनाए रखना चाहेंगे।
विपक्ष की नजर हरनौत पर
हरनौत में जदयू की आंतरिक कलह का फायदा उठाने की कोशिश विपक्षी दल भी कर रहे हैं। राजद और बीजेपी दोनों इस सीट पर अपनी पकड़ मजबूत करने में जुट गए हैं। राजद युवाओं को साधने की कोशिश कर रही है, जबकि बीजेपी विकास के मुद्दे को लेकर जनसंपर्क अभियान चला रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर जदयू ने टिकट वितरण में सावधानी नहीं बरती, तो हरनौत की यह सीट उसके हाथ से निकल सकती है।
नीतीश कुमार के लिए ‘प्रतिष्ठा की लड़ाई’
हरनौत विधानसभा सीट 2025 के बिहार चुनाव में नीतीश कुमार के लिए ‘प्रतिष्ठा की लड़ाई’ साबित हो सकती है। अगर यहां जदयू के भीतर का असंतोष बढ़ता गया, तो इसका असर राज्य की बाकी सीटों पर भी पड़ सकता है।
अब देखना यह होगा कि मुख्यमंत्री अपने ‘होम ग्राउंड’ की बगावत को कैसे संभालते हैं — क्या वे नए चेहरे पर भरोसा करेंगे या पुराने साथी को एक और मौका देंगे।
हरनौत में जदयू की अंदरूनी कलह बिहार चुनाव 2025 की सबसे बड़ी राजनीतिक कहानी बन सकती है। यह लड़ाई सिर्फ टिकट की नहीं, बल्कि पार्टी की साख और नीतीश कुमार की सियासी विरासत की भी है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि जदयू का नेतृत्व किसे टिकट देता है और कार्यकर्ताओं की नाराजगी कैसे दूर की जाती है।