बिहार की राजनीति एक बार फिर गर्मा गई है। कांग्रेस पार्टी ने संगठनात्मक अनुशासन और पार्टी लाइन से इतर गतिविधियों को गंभीरता से लेते हुए अपने सात नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा दिया है। पार्टी के इस निर्णायक कदम ने न सिर्फ प्रदेश में राजनीतिक हलचल बढ़ा दी है, बल्कि यह संदेश भी दिया है कि 2025 विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस किसी भी तरह की अंदरूनी कलह या असंतोष को बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है।

कांग्रेस द्वारा निष्कासित किए गए नेताओं में कुछ ऐसे नाम भी शामिल हैं जो लंबे समय से पार्टी से जुड़े रहे और संगठनात्मक स्तर पर सक्रिय भूमिका निभाते रहे। इन सभी नेताओं पर पार्टी विरोधी गतिविधियों, गुटबाज़ी बढ़ाने और उच्च नेतृत्व के निर्देशों की अनदेखी करने के आरोप लगाए गए थे। बिहार कांग्रेस अध्यक्ष ने यह कार्रवाई पार्टी अनुशासन समिति की सिफारिश के आधार पर की है।
पार्टी की आधिकारिक प्रतिक्रिया
बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी की ओर से जारी बयान में कहा गया कि संगठन को मजबूत और अनुशासित रखने के लिए यह फैसला जरूरी था। पार्टी की मानें तो कई बार चेतावनी दिए जाने के बावजूद ये नेता अनुशासनहीन गतिविधियों से बाज नहीं आए।
प्रदेश अध्यक्ष ने स्पष्ट किया कि कांग्रेस अगले चुनावों की तैयारी में जुटी है और ऐसे में कोई भी नेता जो पार्टी लाइन से हटकर चलता है, उसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि कांग्रेस आज की राजनीतिक परिस्थितियों में खुद को नए सिरे से मजबूत करने की दिशा में काम कर रही है, जिसमें संगठनात्मक अनुशासन सबसे महत्वपूर्ण है।
निष्कासन की पृष्ठभूमि
पार्टी सूत्रों के मुताबिक, पिछले कुछ महीनों से इन नेताओं द्वारा लगातार ऐसी गतिविधियों की शिकायतें मिल रही थीं, जो पार्टी के हितों के खिलाफ थीं। इनमें शामिल हैं —
स्थानीय स्तर पर संगठन के फैसलों का विरोध
पार्टी कार्यक्रमों से दूरी बनाना
विपक्षी दलों के नेताओं से संपर्क में रहना
सोशल मीडिया पर पार्टी के खिलाफ बयानबाज़ी
गुटबाज़ी को प्रोत्साहन देना
कांग्रेस हाईकमान को इन मामलों की विस्तृत रिपोर्ट भेजी गई थी, जिसके बाद अंतिम कार्रवाई को मंजूरी दी गई।
2025 चुनाव पर असर?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिहार में कांग्रेस पहले से ही संगठनात्मक कमजोरी और सीमित वोट बैंक की चुनौती से जूझ रही है। ऐसे में नेताओं का निष्कासन पार्टी को अल्पावधि में नुकसान पहुंचा सकता है, लेकिन दीर्घकाल में यह संगठन को अनुशासित और मजबूत बनाने में मदद करेगा।
कुछ विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि यह कार्रवाई उन नेताओं के लिए संदेश है, जो पार्टी छोड़कर अन्य दलों की ओर झुकाव दिखा रहे थे। कांग्रेस यह दिखाना चाहती है कि वह चुनावी मोड में है और अंदरूनी अस्थिरता दूर करके एकजुट होकर मैदान में उतरना चाहती है।
निष्कासित नेताओं की प्रतिक्रिया
सत्ता से बाहर चल रही कांग्रेस की इस कार्रवाई पर निष्कासित नेताओं ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। कई नेताओं ने कहा कि उन्हें अपनी बात रखने का मौका तक नहीं दिया गया। कुछ नेताओं ने इसे “राजनीतिक प्रतिशोध” बताया, जबकि अन्य ने दावा किया कि वे जल्द ही अगला राजनीतिक कदम उठाएंगे।
इन नेताओं के कुछ समर्थकों ने भी पार्टी नेतृत्व पर मनमानी का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि प्रदेश स्तर पर संगठन कमजोर है, और इस तरह के एक्शन से कार्यकर्ताओं में निराशा फैलेगी।
राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज
इस घटना के बाद बिहार के राजनीतिक गलियारों में चर्चा का दौर तेज हो गया है। यह अनुमान लगाए जा रहे हैं कि निष्कासित नेता जल्द ही किसी अन्य पार्टी में शामिल हो सकते हैं, खासकर उन दलों में जो 2025 विधानसभा चुनाव से पहले अपने संगठन को विस्तार दे रहे हैं।
जेडीयू, राजद और बीजेपी तीनों ही पक्ष इन नेताओं पर नज़र बनाए हुए हैं। हालांकि कोई भी दल औपचारिक रूप से इस पर टिप्पणी नहीं कर रहा है।
कांग्रेस की रणनीति और भविष्य
विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस अब बिहार में युवाओं और नए चेहरों को आगे लाने की रणनीति पर काम कर रही है। पार्टी को लगता है कि पुराने नेताओं की नाराज़गी और गुटबाज़ी से संगठन को नुकसान होता है। यही कारण है कि पार्टी नेतृत्व इन दिनों कड़े फैसलों पर ज़ोर दे रहा है।
कांग्रेस की कोशिश है कि वह गठबंधन की राजनीति में भी अपनी भूमिका को मजबूत बनाए रखे। महागठबंधन की राजनीति में कांग्रेस अक्सर छोटी भूमिका में रही है, लेकिन वह चाहती है कि 2025 में वह अधिक सीटों पर दावा कर सके। इसके लिए जरूरी है कि पार्टी का आंतरिक ढांचा मजबूत और अनुशासित हो।
कुल मिलाकर कांग्रेस द्वारा सात नेताओं का निष्कासन बिहार की राजनीति में बड़ा संकेत माना जा रहा है। यह साफ दिख रहा है कि पार्टी 2025 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले किसी भी प्रकार की असंतुलित स्थिति को दूर करने और अपने ढांचे को मजबूत करने के मिशन में लगी है।
आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि निष्कासित नेता क्या रुख अपनाते हैं और इसका कांग्रेस के वोट बैंक पर क्या असर पड़ता है। फिलहाल इतना ज़रूर है कि इस फैसले से बिहार की सियासत में नई राजनीतिक सक्रियता देखने को मिलेगी।
