बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में मोकामा सीट का नतीजा पूरे राज्य में चर्चा का विषय बना हुआ है। कारण साफ है—अनंत सिंह, जो चुनाव प्रचार के दौरान पूरी तरह से जेल में बंद रहे, उन्होंने न केवल मुकाबला जीता बल्कि अपने प्रतिद्वंदी और सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी को 29,710 वोटों के भारी अंतर से पराजित कर इतिहास बना दिया।

यह जीत सिर्फ एक चुनावी परिणाम नहीं, बल्कि मोकामा की राजनीति और वहां की जनभावना का एक बड़ा संकेत मानी जा रही है।
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मोकामा सीट हमेशा से बिहार की सबसे हाई-प्रोफाइल सीटों में रही है। बाहुबल, प्रभाव, जनाधार और सियासी समीकरणों के खेल में यह इलाका अक्सर सुर्खियों में रहता है। इस बार भी मुकाबला बेहद दिलचस्प था—एक ओर जेल में बंद अनंत सिंह, और दूसरी ओर सूरजभान सिंह के राजनीतिक प्रभाव का लाभ उठाती वीणा देवी।
जेल में होने के बावजूद अनंत सिंह की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई। उनके समर्थक गांव-गांव घूमकर जनता के बीच पहुंचे। प्रचार सिर्फ कार्यकर्ताओं और परिवार तक सीमित रहा, लेकिन इसका प्रभाव विस्मयकारी रहा।
मतों की गिनती शुरू होते ही तस्वीर साफ होनी लगी कि मैदान में ‘छोटे सरकार’—अनंत सिंह—की पकड़ बहुत मजबूत है। हर राउंड में उनका बढ़त लेना यह दिखाता गया कि मोकामा की जनता ने इस चुनाव में मन बना लिया था।
जेल में रहते हुए चुनाव जीतने की मिसाल
बिहार की राजनीति में ऐसे कई उदाहरण रहे हैं, जहां नेताओं ने जेल में रहते हुए चुनाव लड़ा और जीता। लेकिन अनंत सिंह का केस अलग है, क्योंकि:
वे चुनाव प्रचार के दौरान एक बार भी बाहर नहीं आए।
पूरा प्रचार मशीनरी सिर्फ कार्यकर्ताओं और उनके पुराने जनाधार पर चली।
जनता ने केवल उनके नाम पर वोट दिया, किसी चेहरा-प्रधान प्रचार का असर नहीं पड़ा।
राजनीति विश्लेषकों का मानना है कि यह जीत उस “भावनात्मक जुड़ाव” का परिणाम है जो अनंत सिंह ने वर्षों से अपने क्षेत्र में बनाई है। जनता के बीच उनकी “अपनों के लिए खड़े रहने वाले नेता” की छवि अब भी मजबूत है।
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वीणा देवी इस चुनाव में पूरी ताकत से उतरी थीं।
सूरजभान सिंह का प्रभाव, पार्टी का सपोर्ट, और मजबूत चुनावी टीम—सब कुछ व्यवस्थित था।
फिर भी परिणाम अपेक्षा के विपरीत आए।
राजनीतिक विशेषज्ञ इसकी तीन प्रमुख वजह बताते हैं:
1. अनंत सिंह का स्थानीय कद
मोकामा में अनंत सिंह सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि एक प्रभावशाली पहचान बन चुके हैं। स्थानीय समस्याओं, सड़कों, स्वास्थ्य सुविधाओं और लोगों के निजी मुद्दों तक में उनका हस्तक्षेप उन्हें जनता के करीब लाया।
2. सहानुभूति लहर
जेल में होने से उनके प्रति सहानुभूति बढ़ी।
लोगों ने इसे ‘अन्याय’ की तरह देखा और वोट के जरिए अपना संदेश दिया।
3. “पुराने अनंत” की छवि का फायदा
कई मतदाता अभी भी उन्हें “मोकामा के मजबूत रखवाले” के रूप में देखते हैं।
इस छवि को तोड़ पाना विरोधियों के लिए आसान नहीं था।
2025 के चुनावी समीकरणों पर मोकामा के फैसले का असर
मोकामा की सीट हमेशा से पावर समीकरणों को प्रभावित करती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह जीत तीन बड़े संदेश देती है:
1. जनाधार तकनीकी प्रचार से ज्यादा मजबूत होता है
जब जनता किसी नेता से भावनात्मक रूप से जुड़ी होती है, तो हाई-प्रोफाइल प्रचार भी काम नहीं करता।
2. ‘एंटी-इंकम्बेंसी’ फैक्टर कमजोर नहीं पड़ा
स्थानीय स्तर पर जनता बदलाव चाह रही थी और परिणामों ने इसे प्रदर्शित किया।
3. जेल में बंद नेता भी चुनावी खेल बदल सकते हैं
बिहार की राजनीति में यह पहली बार नहीं, लेकिन एक बार फिर यह साबित हो गया कि लोकप्रियता के सामने परिस्थितियाँ मायने नहीं रखतीं।
मोकामा का जनादेश क्या कहता है?
चुनाव परिणाम संकेत देते हैं कि जनता ने:
विकास कार्यों की निरंतरता,
स्थानीय नेतृत्व की मजबूत पकड़,
और जनता के साथ सशक्त संवाद
जैसे मुद्दों को प्राथमिकता दी।
मोकामा के मतदाताओं ने साबित कर दिया कि वे अपने नेता का चयन बाहरी प्रभावों से नहीं, बल्कि अपने अनुभवों और संबंधों के आधार पर करते हैं।
क्या आगे भी मोकामा की राजनीति ऐसे ही रहेगी?
चुनाव परिणामों के बाद यह सवाल उठ रहा है कि क्या मोकामा में राजनीति हमेशा “व्यक्ति-आधारित” रहेगी?
कई विशेषज्ञों का मानना है कि अनंत सिंह की करिश्माई छवि अगले कई वर्षों तक यहां के राजनीतिक माहौल को प्रभावित करती रहेगी।
वहीं, दूसरा मत यह कहता है कि अगर विरोधी दल स्थानीय संगठन को मजबूत करें, तो संतुलन बदल सकता है।
फिलहाल, अनंत सिंह की यह जीत न सिर्फ रिकॉर्ड है, बल्कि आने वाले वर्षों के लिए राजनीतिक संकेत भी।
