
बिहार की राजनीति और समाज हमेशा से जाति और धर्म के समीकरणों पर टिकी रही है। हाल ही में जारी हुए आंकड़ों ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि बिहार का हर चुनाव, हर राजनीतिक रणनीति और हर सामाजिक समीकरण इन्हीं वर्गों के आधार पर तय होती है। हिंदू और मुस्लिम जनसंख्या से लेकर दलित, ओबीसी और ईबीसी (अत्यंत पिछड़ा वर्ग) तक – हर समुदाय की अपनी अलग हिस्सेदारी है। आइए जानते हैं कि बिहार में कुल कितने प्रतिशत लोग किस वर्ग से आते हैं और इन आंकड़ों का राजनीति और समाज पर क्या असर पड़ता है।
बिहार की कुल जनसंख्या
2021 की अनुमानित जनसंख्या रिपोर्ट और सामाजिक सर्वे के आधार पर बिहार की कुल आबादी लगभग 13 करोड़ है। इस बड़ी आबादी में धर्म और जाति के आधार पर वितरण कुछ इस प्रकार है।
बिहार में धर्म के आधार पर जनसंख्या
हिंदू आबादी
बिहार की कुल जनसंख्या का लगभग 82% हिस्सा हिंदू समुदाय से है।
इसमें ऊंची जाति, ओबीसी, ईबीसी और दलित सभी आते हैं।
हिंदू समाज के अंदर भी जातिगत आधार पर बड़ा विभाजन देखने को मिलता है।
मुस्लिम आबादी
मुस्लिम समुदाय की हिस्सेदारी लगभग 17% है।
यह बिहार में सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय है।
मुस्लिम बहुल इलाकों में सीमांचल (किशनगंज, अररिया, कटिहार, पूर्णिया) प्रमुख हैं।
अन्य धर्म
ईसाई, सिख, जैन और अन्य समुदायों की आबादी मिलाकर 1% से भी कम है।
जातिगत आधार पर जनसंख्या
अनुसूचित जाति (दलित)
बिहार में दलितों की जनसंख्या लगभग 16% है।
इनमें पासवान (दुसाध), चमार, मुसहर, धोबी, डोम जैसी जातियां प्रमुख हैं।
दलित समाज का बड़ा हिस्सा ग्रामीण इलाकों में मजदूरी और कृषि पर निर्भर है।
अनुसूचित जनजाति (आदिवासी)
बिहार में आदिवासी जनसंख्या बहुत कम है, लगभग 1.3%।
संथाल, उरांव, मुंडा जैसी जनजातियां झारखंड से सटे इलाकों में रहती हैं।
अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC)
ओबीसी की आबादी बिहार में 27% मानी जाती है।
यादव, कुर्मी, कुशवाहा, तेली जैसी जातियां इस वर्ग में आती हैं।
यादव जाति सबसे बड़ा हिस्सा रखती है और राजनीतिक रूप से बेहद प्रभावशाली है।
अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC)
बिहार का सबसे बड़ा जातीय वर्ग ईबीसी (अत्यंत पिछड़ा वर्ग) है, जिसकी जनसंख्या 36% है।
इसमें नाई, लोहार, माली, धानुक, बारी, बिन्द, धोबी, कुहार, चौरसिया, कंहार जैसी सैकड़ों जातियां शामिल हैं।
ईबीसी समाज को “महा-बहुसंख्यक” कहा जाता है।
बिहार की सामाजिक-राजनीतिक तस्वीर
1. हिंदू-मुस्लिम समीकरण:
बिहार में हिंदू बहुसंख्यक हैं, लेकिन मुस्लिम वोट बैंक निर्णायक भूमिका निभाता है।
सीमांचल और शहरी इलाकों में मुस्लिम आबादी 30-40% तक है, जो किसी भी उम्मीदवार की जीत-हार तय कर सकती है।
2. दलित राजनीति:
दलित वोट बैंक को रामविलास पासवान (LJP) और जीतनराम मांझी (HAM) जैसे नेताओं ने मजबूत किया।
पासवान समाज (दुसाध) 6% आबादी के साथ सबसे बड़ी दलित जाति है।
3. ओबीसी का दबदबा:
यादव जाति (11-12%) बिहार की राजनीति में सबसे अहम है।
लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव की राजनीति इसी आधार पर खड़ी हुई।
4. ईबीसी की ताकत:
नीतीश कुमार ने ईबीसी समाज को राजनीतिक मुख्यधारा में लाने का काम किया।
36% की हिस्सेदारी वाले इस वर्ग को “किंगमेकर” कहा जाता है।
चुनावी राजनीति पर असर
महागठबंधन (RJD, कांग्रेस, वामदल) – यादव + मुस्लिम (Y+M) समीकरण पर केंद्रित।
NDA (BJP, JDU, LJP) – ईबीसी + दलित + ऊंची जाति का गणित साधने की कोशिश।
नई पार्टियां – छोटे-छोटे जातीय समीकरण को आधार बनाकर चुनावी मैदान में।
हर चुनाव में जातीय समीकरणों की यह तस्वीर उम्मीदवारों की जीत और हार तय करती है।
सामाजिक चुनौतियां
जातिगत भेदभाव अब भी बिहार के ग्रामीण इलाकों में मौजूद है।
शिक्षा और रोजगार के अवसरों की कमी से कई जातियां पिछड़ी रह गई हैं।
सरकारें आरक्षण और कल्याण योजनाओं के जरिए इन समुदायों को मुख्यधारा में लाने का प्रयास कर रही हैं।
बिहार की पूरी सामाजिक तस्वीर जाति और धर्म के आधार पर बंटी हुई है। जहां हिंदू और मुस्लिम का धर्म आधारित विभाजन है, वहीं दलित, ओबीसी और ईबीसी जातिगत आधार पर अपनी पहचान बनाए हुए हैं। यही कारण है कि बिहार की राजनीति को समझने के लिए सबसे पहले यहां की सामाजिक संरचना को समझना जरूरी है।