
पटना/रांची। आयकर विभाग ने एक बड़े अभियान में बिहार और झारखंड में राजनीतिक चंदे की आड़ में की जा रही ₹2000 करोड़ से अधिक की टैक्स चोरी का पर्दाफाश किया है। विभाग की जांच टीमों ने कई बड़े कारोबारी घरानों, शैक्षणिक संस्थानों, कोचिंग संस्थानों और खनन कारोबारियों पर छापेमारी की, जिसमें चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं।
आयकर विभाग का कहना है कि कई संगठनों और कारोबारियों ने राजनीतिक दलों को चंदा देने के नाम पर फर्जी रसीदें बनाईं और उसके जरिए अपनी ब्लैक मनी को सफेद किया। इस खुलासे ने बिहार-झारखंड की राजनीति और कारोबारी जगत में हड़कंप मचा दिया है।

कैसे हुआ खुलासा?

कैसे हुआ खुलासा?
आयकर विभाग को पिछले कुछ महीनों से सूचना मिल रही थी कि कुछ कारोबारी समूह चुनावी चंदे के जरिए अपनी आयकर चोरी को वैध बना रहे हैं। इसके बाद विभाग ने बिहार और झारखंड में 50 से ज्यादा ठिकानों पर एक साथ छापेमारी की।
सूत्रों के मुताबिक, छापेमारी के दौरान विभाग को कई रजिस्टर, कैशबुक, और फर्जी दान रसीदें मिलीं। इनसे पता चला कि कई संस्थानों ने कालाधन को राजनीतिक फंडिंग दिखाकर सफेद किया।
राजनीतिक फंडिंग का जाल
जांच में सामने आया कि कई छोटे-छोटे राजनीतिक दलों को हजारों करोड़ रुपए के दान दिखाए गए।
इन दान की रसीदों को कारोबारी अपने आयकर रिटर्न में जोड़कर टैक्स छूट का लाभ ले रहे थे।
ज्यादातर रकम नकद में दी जाती थी और फिर फर्जी अकाउंटिंग से इसे चंदे की तरह दिखाया जाता था।
₹2000 करोड़ की टैक्स चोरी का मामला
विभाग के अनुसार अब तक की जांच में करीब ₹2000 करोड़ की आयकर चोरी का पता चला है। यह रकम और भी बढ़ सकती है क्योंकि अभी कई दस्तावेजों की जांच जारी है।
छापेमारी में यह भी सामने आया कि कई बड़े कोचिंग संस्थान और शैक्षणिक ट्रस्ट भी इस धंधे में शामिल थे। वे ट्यूशन फीस और अन्य स्रोतों से मिली कैश इनकम को राजनीतिक चंदा दिखाकर टैक्स बचा रहे थे।
कारोबारियों और नेताओं पर शिकंजा
आयकर विभाग ने जिन कारोबारियों और संस्थानों पर छापेमारी की है, उनमें से कई के सीधे संबंध स्थानीय नेताओं और राजनीतिक दलों से जुड़े बताए जा रहे हैं।
सूत्रों के मुताबिक, विभाग ने कई नेताओं से जुड़े फाउंडेशन और एनजीओ पर भी रेड डाली है। जांच में यह भी पाया गया कि कुछ खनन कारोबारियों ने फर्जी राजनीतिक दान के जरिए करोड़ों की टैक्स चोरी की है।
जनता और विपक्ष की प्रतिक्रिया
इस मामले के सामने आने के बाद विपक्षी दलों ने सरकार को घेरना शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि जब तक राजनीतिक चंदे पर पारदर्शिता नहीं लाई जाएगी, तब तक इस तरह की टैक्स चोरी और मनी लॉन्ड्रिंग होती रहेगी।
वहीं, आम लोगों का कहना है कि अगर आम करदाता समय पर टैक्स न दे तो उस पर तुरंत कार्रवाई होती है, लेकिन बड़े कारोबारियों और नेताओं को कानून से छूट मिल जाती है।
राजनीतिक चंदे पर सवाल
विशेषज्ञों का कहना है कि राजनीतिक फंडिंग की व्यवस्था को पारदर्शी बनाने की जरूरत है। जब तक दानदाताओं के नाम और स्रोत की पूरी जानकारी सार्वजनिक नहीं होगी, तब तक ब्लैक मनी का इस्तेमाल इसी तरह जारी रहेगा।
सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग पहले भी इस मुद्दे पर चिंता जता चुके हैं। लेकिन हालिया मामला साबित करता है कि कालेधन को सफेद करने का सबसे आसान जरिया अभी भी राजनीतिक चंदा है।
आगे क्या कदम उठाएगा आयकर विभाग?
आयकर विभाग ने इस मामले में कई खातों को सीज किया है और संबंधित संस्थानों से स्पष्टीकरण मांगा है। जिन कारोबारियों और संगठनों का नाम सामने आया है, उनके खिलाफ टैक्स चोरी और मनी लॉन्ड्रिंग के तहत कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
सूत्रों का कहना है कि विभाग इस पूरे नेटवर्क का पता लगाने के लिए ईडी और सीबीआई के साथ भी जानकारी साझा कर सकता है।
यह मामला बताता है कि चुनावी चंदा सिर्फ राजनीतिक फंडिंग का जरिया नहीं, बल्कि ब्लैक मनी का सेफ जोन भी बन गया है। अगर इस पर अंकुश नहीं लगाया गया तो आने वाले समय में और भी बड़े घोटाले सामने आ सकते हैं।
बिहार और झारखंड में उजागर हुआ ₹2000 करोड़ का राजनीतिक चंदा घोटाला इस बात का सबूत है कि टैक्स चोरी और ब्लैक मनी के खेल में राजनीतिक दल और कारोबारी दोनों बराबर के भागीदार हैं। अब सवाल यह है कि क्या इस खुलासे के बाद राजनीतिक फंडिंग में कोई सुधार होगा या यह खेल यूं ही जारी रहेगा।