नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में बनी नई सरकार में गठबंधन सहयोगियों के बीच मंत्रियों की सूची को लेकर चल रही चर्चाओं पर विराम लग गया है। जदयू ने इस बार अपने अनुभवी और पुराने मंत्रियों पर ही भरोसा जताया है, जबकि भाजपा ने युवा और नए चेहरों को मंत्रिमंडल में शामिल कर नई राजनीतिक रणनीति का संकेत दिया है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मंत्रिमंडल संतुलन, जातीय समीकरण और प्रशासनिक अनुभव का एक मिश्रण है, जो आने वाले दिनों में सरकार की दिशा तय करेगा।

जदयू ने अनुभव पर दिया भरोसा
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हमेशा की तरह अपने भरोसेमंद और अनुभवी चेहरों को ही फिर मौका दिया है। पार्टी का मानना है कि पुराने मंत्री न केवल प्रशासनिक दृष्टि से मजबूत हैं, बल्कि विभागों की कार्यशैली और प्रदेश की जमीनी जरूरतों से भली-भांति परिचित भी हैं।
सूत्र बताते हैं कि नीतीश कुमार ने मंत्रिमंडल गठन के दौरान ‘‘संतुलन’’ और ‘‘स्थिरता’’ को प्राथमिकता दी। यही वजह है कि जदयू की ओर से बड़े बदलाव नहीं हुए और वही नाम वापस लौटे, जिन्होंने पिछले कार्यकाल में महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाई थीं।
पार्टी के भीतर भी इस फैसले को सकारात्मक माना जा रहा है क्योंकि अनुभवी मंत्रियों की मौजूदगी शासन और प्रशासन में निरंतरता बनाए रखेगी।
भाजपा ने दिखाई नई रणनीति, युवा चेहरों को मिली जगह
वहीं भारतीय जनता पार्टी ने इस मंत्रिमंडल में अपनी भविष्य की राजनीतिक तैयारी का संकेत देते हुए युवा और नए नेताओं को आगे बढ़ाया है।
भाजपा के चयन से साफ है कि पार्टी 2026 विधानसभा चुनाव और भविष्य की राजनीति को ध्यान में रखते हुए उन नेताओं को तरजीह दे रही है जिनकी पकड़ अपने-अपने क्षेत्रों में मजबूत है और जो पार्टी की नई पीढ़ी के हिस्से के रूप में उभर रहे हैं।
माना जा रहा है कि भाजपा का यह कदम प्रदेश राजनीति में अपनी नई छवि को मजबूत करने की कोशिश का हिस्सा है। पार्टी ने ऐसे चेहरों को चुना है जो संगठन की जमीन से जुड़े हुए हैं और युवा वोटरों पर प्रभाव डाल सकते हैं।
रालोमो से उपेंद्र कुशवाहा के पुत्र दीपक प्रकाश बने मंत्री
इस मंत्रिमंडल की सबसे चर्चित नियुक्तियों में से एक रही — रालोमो नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा के पुत्र दीपक प्रकाश कुशवाहा का मंत्री बनना।
दीपक प्रकाश की एंट्री से रालोमो को जहां राजनीतिक मजबूती मिलेगी, वहीं कुशवाहा समाज में संदेश भी जाएगा कि पार्टी अपने परिवार और युवा नेतृत्व को आगे बढ़ाने में भरोसा करती है।
विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम न सिर्फ उपेंद्र कुशवाहा की राजनीतिक ताकत को बनाए रखने के लिए है, बल्कि गठबंधन के भीतर उनके प्रभाव को भी सम्मान देने जैसा है।
हम पार्टी से संतोष सुमन को शपथ
हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) की ओर से संतोष सुमन को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है।
संतोष सुमन पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के पुत्र हैं और हाल के वर्षों में उन्होंने संगठन और राजनीति में खुद को सक्रिय भूमिका में स्थापित किया है।
हम पार्टी का यह प्रतिनिधित्व गठबंधन की दलित राजनीति को मजबूत करने वाला माना जा रहा है। संतोष सुमन की छवि एक शांत, गंभीर और प्रशासनिक रूप से सजग नेता की है, जिससे विभागीय कामकाज में बेहतर तालमेल की उम्मीद जताई जा रही है।
लोजपा (रा) के दो नेताओं को मिली जगह
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के दो नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल किया जाना भी खास मायने रखता है।
चिराग पासवान के नेतृत्व वाली पार्टी ने पिछले चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया था और युवा तथा शहरी मतदाताओं में उनकी लोकप्रियता बढ़ी है।
मंत्रिमंडल में उनके नेताओं की नियुक्ति से न केवल गठबंधन की संख्या बढ़ी है, बल्कि यह संदेश भी गया है कि भाजपा-जदयू नेतृत्व चिराग पासवान को लंबे समय तक साथ लेकर चलने के लिए प्रतिबद्ध है।
लोजपा (रा) के कोटे से शामिल मंत्रियों के माध्यम से पासवान समुदाय में भी सकारात्मक प्रभाव पड़ने की उम्मीद है।
मंत्रिमंडल गठन में सामाजिक और क्षेत्रीय संतुलन
पूरे मंत्रिमंडल की संरचना को देखें तो इसमें जातीय संतुलन, क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व और राजनीतिक समीकरणों को खास तौर पर ध्यान में रखा गया है।
जदयू ने अपने कोर वोट बैंक का प्रतिनिधित्व बनाए रखा
भाजपा ने अपनी युवा नेतृत्व नीति को आगे बढ़ाया
रालोमो और हम को सम्मानजनक जगह देकर गठबंधन की एकजुटता दिखाई
लोजपा (रा) को दो जगह देकर पासवान समाज का संतुलन साधा
यह संतुलन आने वाले महीनों में सरकार की मजबूती और राजनीतिक स्थिरता के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
आने वाले दिनों में कैसा रहेगा सरकार का एजेंडा
नीतीश कुमार ने शपथ के तुरंत बाद कहा कि ‘‘हमारा लक्ष्य बिहार को विकास की नई ऊँचाइयों पर ले जाना है’’।
फोकस क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सड़क विकास, महिला सुरक्षा और युवाओं के लिए नई योजनाओं को प्राथमिकता देने की बात सामने आई है।
मंत्रियों की सूची से भी साफ है कि इस बार सरकार अनुभव और ऊर्जा दोनों को संतुलन में रखते हुए कामकाज की गति बढ़ाना चाहती है।
