
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर राजनीतिक सरगर्मी चरम पर है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) की जीत सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने एक बड़ा कदम उठाया है। सूत्रों के अनुसार, लगभग 10 हजार स्वयंसेवकों को बिहार भेजा गया है, जो हर गांव में सक्रिय होकर मतदाताओं को प्रभावित करने का काम करेंगे। इसका मुख्य उद्देश्य हरियाणा चुनाव में अपनाई गई रणनीति को बिहार में दोहराना है, जहां रूठे वोटर्स को मनाकर बीजेपी ने बेहतर प्रदर्शन किया था।
बिहार में RSS का मास्टर प्लान
RSS का मानना है कि बिहार चुनाव में जातीय समीकरण और स्थानीय मुद्दों के अलावा राष्ट्रवाद, विकास और मोदी सरकार के कामकाज पर फोकस करके वोटर्स को साधा जा सकता है। इसीलिए, हर गांव में 10 लोगों की टीम तैनात की जा रही है, जो घर-घर जाकर बातचीत करेगी, जनसंपर्क करेगी और भाजपा के पक्ष में माहौल बनाएगी।
स्वयंसेवक सिर्फ प्रचारक नहीं होंगे, बल्कि वे स्थानीय समस्याओं को भी सुनेगे और उनका समाधान सुझाने का प्रयास करेंगे, ताकि जनता का भरोसा जीता जा सके।

हरियाणा मॉडल को बिहार में दोहराने की तैयारी

हरियाणा मॉडल को बिहार में दोहराने की तैयारी
हाल ही में हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा को उम्मीद से ज्यादा सीटें मिली थीं। इसके पीछे बड़ी भूमिका उन स्वयंसेवकों की थी, जिन्होंने गांव-गांव जाकर रूठे वोटर्स को मनाया और विपक्ष की नाराजगी को कम किया।
RSS ने उसी रणनीति को बिहार में लागू करने का निर्णय लिया है। यहां भी ग्रामीण इलाकों और छोटे कस्बों पर विशेष फोकस रहेगा, क्योंकि यही इलाका चुनावी नतीजे तय करता है।
10 हजार स्वयंसेवकों की जिम्मेदारी
हर गांव में 10 सदस्यीय टीम
घर-घर जाकर संपर्क
चुनावी माहौल को भाजपा के पक्ष में मोड़ना
युवा, महिला और पहली बार वोट करने वाले मतदाताओं को टारगेट करना
फर्जी प्रचार और गलत सूचनाओं का खंडन करना
कैसे बदलेगा चुनावी समीकरण?
बिहार में इस समय राजनीतिक समीकरण काफी पेचीदा हैं। महागठबंधन (RJD, JDU, कांग्रेस) और NDA (BJP, HAM, LJP आदि) के बीच सीधी टक्कर है।
RSS की यह पहल सीट-टू-सीट रणनीति को मजबूत करेगी और भाजपा को जमीनी स्तर पर मजबूती देगी। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर यह योजना सफल हुई तो भाजपा को अतिरिक्त 25-30 सीटों का फायदा हो सकता है।
विपक्ष ने साधा निशाना
RJD और कांग्रेस ने इस अभियान को “ध्रुवीकरण की साजिश” करार दिया है। उनका कहना है कि RSS चुनाव को प्रभावित करने के लिए धर्म और राष्ट्रवाद के नाम पर लोगों को बांटने की कोशिश कर रहा है।
वहीं BJP का कहना है कि यह जनसंपर्क अभियान पूरी तरह लोकतांत्रिक और वैचारिक है, इसका उद्देश्य किसी को बांटना नहीं बल्कि लोगों को जागरूक करना है।
बिहार की जनता क्या कह रही है?
गांव-गांव में शुरू हुआ यह अभियान लोगों के बीच चर्चा का विषय बन चुका है। कुछ लोग इसे सकारात्मक पहल मान रहे हैं, जबकि कुछ इसे चुनावी चाल बता रहे हैं।
एक किसान ने कहा, “अगर ये लोग हमारे गांव की समस्याओं को हल करेंगे तो हम क्यों न सुनें?”
वहीं, एक युवक ने कहा, “चुनाव के समय सब आते हैं, बाद में कोई नहीं दिखता।”
बिहार चुनाव में RSS की भूमिका नई नहीं
यह पहली बार नहीं है जब RSS ने बिहार में सक्रिय भूमिका निभाई है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी संघ के कार्यकर्ताओं ने बूथ स्तर तक काम किया था, जिससे भाजपा को उल्लेखनीय सफलता मिली।
इस बार अंतर सिर्फ इतना है कि इस अभियान को और ज्यादा संगठित और योजनाबद्ध तरीके से चलाया जा रहा है।
भाजपा की रणनीति को क्या मिलेगा फायदा?
ग्रामीण क्षेत्रों में पैठ मजबूत होगी
युवाओं और महिलाओं में प्रभाव बढ़ेगा
विपक्ष के नकारात्मक प्रचार को जवाब मिलेगा
सीटों पर करीबी मुकाबला भाजपा के पक्ष में झुक सकता है
बिहार में राजनीतिक लड़ाई और भी दिलचस्प होती जा रही है। 10 हजार RSS स्वयंसेवकों की एंट्री ने मुकाबले को नया मोड़ दे दिया है। क्या यह मास्टरस्ट्रोक भाजपा को सत्ता तक पहुंचाएगा, यह आने वाला समय बताएगा।
फिलहाल इतना तय है कि बिहार की गलियों से लेकर गांव के चौपाल तक चुनावी माहौल गरमा चुका है।