
बिहार की सियासत एक बार फिर गरमा गई है। विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर सभी राजनीतिक दल अपनी रणनीतियों को अंतिम रूप देने में जुट गए हैं। कांग्रेस पार्टी ने भी राहुल गांधी की हाल ही में संपन्न हुई ‘वोट अधिकार यात्रा’ के बाद सीट शेयरिंग फॉर्मूले पर काम पूरा कर लिया है। पार्टी की निगाहें इस बार दलित और मुस्लिम बहुल सीटों पर खास तौर पर टिकी हुई हैं।
कांग्रेस का फोकस: सीमांचल और दलित-मुस्लिम बहुल इलाकों पर
सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस का मानना है कि बिहार में सीमांचल इलाका उसकी चुनावी नैया पार लगा सकता है। किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया और अररिया जैसे जिलों की सीटों पर पार्टी ज्यादा जोर दे रही है। ये इलाके न केवल मुस्लिम बहुल हैं, बल्कि सामाजिक न्याय की राजनीति में भी अहम भूमिका निभाते हैं।
कांग्रेस की रणनीति साफ है – सीमांचल की जितनी ज्यादा सीटें मिलेगी, उतना मजबूत होगा विपक्षी गठबंधन। पार्टी चाहती है कि RJD और अन्य सहयोगी दल उसे यहां पर्याप्त सीटें दें।
राहुल गांधी की यात्रा से मिला उत्साह
हाल ही में राहुल गांधी ने बिहार के कई जिलों में ‘वोट अधिकार यात्रा’ निकाली थी। इस दौरान उन्होंने बेरोजगारी, महंगाई और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों को जोर-शोर से उठाया। यात्रा में भारी भीड़ जुटने से कांग्रेस कार्यकर्ताओं में नया उत्साह देखने को मिला। कांग्रेस का दावा है कि यात्रा के बाद दलित, महादलित और मुस्लिम वोट बैंक उसकी ओर आकर्षित हुआ है।
सीट शेयरिंग फॉर्मूला लगभग तय
सूत्रों की मानें तो कांग्रेस को इस बार 60 से ज्यादा सीटें लड़ने की उम्मीद है। पिछली बार पार्टी को महज 70 सीटें मिली थीं, जिनमें उसका प्रदर्शन कमजोर रहा। लेकिन इस बार पार्टी चाहती है कि कमजोर इलाकों में कम और मजबूत इलाकों में ज्यादा सीटें उसे मिलें।
पार्टी का फोकस है
1. सीमांचल की मुस्लिम बहुल सीटें
2. दलित-बहुल इलाकों की सुरक्षित सीटें
3. शहरी और अर्ध-शहरी सीटें, जहां युवाओं और पढ़े-लिखे वर्ग का झुकाव कांग्रेस की ओर हो सकता है

गठबंधन में सीट बंटवारे पर मंथन

गठबंधन में सीट बंटवारे पर मंथन
INDIA गठबंधन के भीतर सीट शेयरिंग पर चर्चा तेज हो गई है। RJD पहले ही साफ कर चुकी है कि वह बड़ी पार्टी है और उसे ज्यादा सीटें चाहिए। वहीं कांग्रेस यह मानती है कि सीमांचल में RJD का उतना आधार नहीं है जितना उसका। यही वजह है कि कांग्रेस इन सीटों पर दबाव बना रही है।
सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस और RJD के बीच सीमांचल और मगध की सीटों को लेकर अभी भी बातचीत जारी है। हालांकि दोनों पार्टियां किसी भी कीमत पर गठबंधन टूटने नहीं देना चाहतीं।
बीजेपी और एनडीए पर भी नजर
कांग्रेस को यह भी पता है कि सीमांचल में बीजेपी और एनडीए अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश करेंगे। बीजेपी ने पिछली बार सीमांचल की कई सीटों पर अच्छा प्रदर्शन किया था। यही वजह है कि कांग्रेस इस बार कोई रिस्क नहीं लेना चाहती। पार्टी का मानना है कि अगर दलित-मुस्लिम गठजोड़ उसके पक्ष में वोट करता है, तो बीजेपी को यहां मात दी जा सकती है।
कांग्रेस की चुनावी रणनीति
कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों के चयन की तैयारी भी शुरू कर दी है। पार्टी का फोकस युवा और साफ-सुथरी छवि वाले प्रत्याशी उतारने पर है। खासकर मुस्लिम बहुल सीटों पर ऐसे चेहरे उतारने की योजना है जो स्थानीय स्तर पर लोकप्रिय हों और जातीय समीकरणों को साध सकें।
कांग्रेस का दावा है कि इस बार बिहार की जनता बदलाव चाहती है। पार्टी बेरोजगारी, किसानों की समस्या और महिलाओं की सुरक्षा जैसे मुद्दों को लेकर चुनावी मैदान में जाएगी।
सीमांचल क्यों अहम है?
सीमांचल में मुस्लिम आबादी 40 से 70 प्रतिशत तक है। ऐसे में यहां कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक मजबूत हो सकता है। इसके अलावा यह इलाका सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील है। जो भी दल सीमांचल में बेहतर प्रदर्शन करेगा, उसका पूरे बिहार में प्रभाव पड़ेगा।
कांग्रेस ने सीट शेयरिंग का फॉर्मूला बनाकर बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में बड़ा दांव खेल दिया है। राहुल गांधी की यात्रा से मिले उत्साह को भुनाने की कोशिश होगी। पार्टी की नजर सीमांचल और दलित-मुस्लिम बहुल सीटों पर है। आने वाले दिनों में सीट बंटवारे का अंतिम रूप सामने आएगा और तभी साफ होगा कि कांग्रेस को कितनी सीटें मिलती हैं। लेकिन इतना तय है कि इस बार कांग्रेस बिना मजबूत सीटों के समझौता करने को तैयार नहीं है।