
गंगा नदी का जन्म: देवताओं की योजना और धरती पर अवतरण की पौराणिक गाथा
गंगा का जन्म: एक दिव्य और पवित्र यात्रा
भारत की पवित्र नदियों में सर्वोच्च स्थान पाने वाली गंगा नदी केवल एक जलधारा नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों की आस्था, संस्कृति और जीवन की आधारशिला है। गंगा का उल्लेख न केवल धार्मिक ग्रंथों में मिलता है, बल्कि भारतीय जनजीवन में भी इसका गहरा प्रभाव है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि गंगा का जन्म कैसे हुआ? यह सिर्फ एक भौगोलिक घटना नहीं, बल्कि एक अद्भुत पौराणिक कथा है, जिसमें देवता, तपस्वी और भगवान शिव की भूमिका शामिल है।
पौराणिक मान्यता: गंगा का स्वर्ग से धरती पर अवतरण
हिंदू शास्त्रों के अनुसार, गंगा नदी का मूल स्थान स्वर्गलोक (ब्रह्मलोक) है। उसे देवी का रूप माना जाता है, और वह भगवान विष्णु के चरणों से निकलकर स्वर्ग में बहती थीं। गंगा का पृथ्वी पर अवतरण महर्षि भगीरथ के कठिन तप और भगवान शिव के माध्यम से संभव हुआ।
राजा सगर और उनके 60,000 पुत्रों की कहानी
गंगा के धरती पर आने की कथा राजा सगर से शुरू होती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ करवाया था, लेकिन यज्ञ का घोड़ा अचानक लुप्त हो गया। खोज करते हुए उनके 60,000 पुत्रों ने धरती के कोने-कोने की तलाश की और अंत में कपिल मुनि के आश्रम में घोड़ा पाया।
यह सोचकर कि कपिल मुनि ने घोड़ा चुराया है, उन्होंने मुनि का अपमान किया। मुनि की तपस्या भंग होने पर उनके श्राप से वे सभी पुत्र भस्म हो गए। उनके उद्धार के लिए उनके वंशजों ने प्रयास किए, लेकिन केवल राजा भगीरथ की कठोर तपस्या सफल रही।
राजा भगीरथ की तपस्या और शिव का आशीर्वाद
राजा भगीरथ ने गंगा को धरती पर लाने के लिए वर्षों तक हिमालय में कठोर तप किया। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने गंगा को पृथ्वी पर भेजने का निर्णय लिया। लेकिन गंगा की धारा इतनी तीव्र थी कि पृथ्वी उसका वेग सह नहीं सकती थी। तब ब्रह्मा ने भगीरथ से कहा कि वे भगवान शिव से प्रार्थना करें कि वह गंगा को अपनी जटाओं में समाहित करें और धीरे-धीरे धरती पर प्रवाहित करें।
भगीरथ ने शिव की आराधना की और भोलेनाथ ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। जब गंगा स्वर्ग से पृथ्वी की ओर चली, तो शिव ने उसे अपनी जटाओं में कैद कर लिया और फिर धीरे-धीरे छोड़कर धरती पर अवतरित किया।
गंगा का मार्ग और पुरातन शहरों से जुड़ाव
गंगा सबसे पहले हिमालय के गोमुख से प्रकट हुई और वहां से आगे बहती हुई प्रयाग (इलाहाबाद), काशी (वाराणसी) और गंगासागर तक पहुंची। इसी मार्ग को भगीरथ मार्ग कहा जाता है। इस यात्रा में गंगा ने भगीरथ के पूर्वजों की राख को छूकर उन्हें मोक्ष दिलाया।
आज भी प्रयागराज में संगम का विशेष महत्व है, जहां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम होता है। काशी को गंगा का प्रमुख तीर्थ माना जाता है, जहां लोग मृत्यु के उपरांत भी गंगा में विसर्जन को मुक्ति का मार्ग मानते हैं।
गंगा का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व
गंगा केवल एक नदी नहीं, बल्कि एक जीवंत देवी मानी जाती है। उसका जल अमृत तुल्य है और वह पापों को हरने वाली है। ‘गंगा जल’ को हिंदू धार्मिक अनुष्ठानों में पवित्र माना जाता है। हजारों सालों से गंगा स्नान, पूजा और अंतिम संस्कार का हिस्सा रही है।
वर्तमान में गंगा की स्थिति और संरक्षण की आवश्यकता
हालांकि गंगा आज भी करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र है, लेकिन प्रदूषण, औद्योगिक कचरा और जल निकासी की वजह से उसकी पवित्रता खतरे में है। सरकार ने ‘नमामि गंगे’ जैसे अभियानों के माध्यम से इसे स्वच्छ और संरक्षित करने की दिशा में कदम उठाए हैं, लेकिन जनभागीदारी और जागरूकता की आवश्यकता आज भी बनी हुई है।
गंगा केवल नदी नहीं, एक सनातन भाव है
गंगा का जन्म और धरती पर अवतरण केवल एक पौराणिक कथा नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और श्रद्धा की गहराई को दर्शाता है। गंगा हमें जीवन देती है, पापों से मुक्ति देती है और हमें प्रकृति से जुड़ने की प्रेरणा देती है। आवश्यकता है कि हम गंगा को केवल पूजा की वस्तु न मानें, बल्कि उसकी रक्षा और सम्मान के लिए कार्य करें।