पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता आर.के. सिंह पर भारतीय जनता पार्टी ने बड़ा अनुशासनात्मक कदम उठाया है। पार्टी ने उनके हालिया बयानों और सार्वजनिक आचरण को ‘अनुशासनहीनता’ की श्रेणी में रखते हुए यह कार्रवाई की है। इस फैसले ने राजनीतिक गलियारों में एक नई चर्चा को जन्म दे दिया है, खासकर इसलिए क्योंकि आर.के. सिंह पार्टी के उन नेताओं में रहे हैं जिन्होंने कई महत्वपूर्ण मंत्रालयों का कार्यभार संभाला है और संगठन में उनकी अच्छी पकड़ मानी जाती रही है।

बीजेपी की ओर से जारी आधिकारिक बयान में साफ कहा गया कि हाल ही में आर.के. सिंह द्वारा दिए गए कुछ बयान पार्टी की मूल विचारधारा, अनुशासन और कार्यशैली के विपरीत पाए गए। पार्टी ने पूर्व मंत्री के इन बयानों को ‘गंभीर असहमति’ की श्रेणी में वर्गीकृत किया है। इसके बाद केंद्रीय नेतृत्व ने तत्काल प्रभाव से कार्रवाई करने का निर्णय लिया। हालांकि, कार्रवाई के स्वरूप को लेकर पार्टी ने अभी पूरी जानकारी सार्वजनिक नहीं की है, लेकिन संकेत साफ हैं कि शीर्ष नेतृत्व इस मामले को बेहद गंभीरता से देख रहा है।
हालिया बयानों से मचा था बवाल
सूत्रों के अनुसार, पिछले कुछ दिनों में आर.के. सिंह ने कई सार्वजनिक मंचों और इंटरव्यू में ऐसे टिप्पणियां की थीं जिन्हें पार्टी नेतृत्व ने ‘अनावश्यक’, ‘विवादित’ और ‘पार्टी लाइन से हटकर’ बताया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चुनावी माहौल के बीच बीजेपी की कोशिश ‘कोई भी आंतरिक विवाद सार्वजनिक तौर पर न आने देने’ की है।
कहा जा रहा है कि पार्टी कई महीनों से नेताओं के सार्वजनिक बयान नियंत्रित करने को लेकर अधिक सख्त रुख अपना रही है। ऐसे में किसी भी वरिष्ठ नेता द्वारा दिए गए बयान, जो विपक्ष को मुद्दा दे सकते हैं, पार्टी व्यावहारिक रूप से बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है।
आर.के. सिंह का राजनीतिक सफर
आर.के. सिंह बिहार कैडर के पूर्व IAS अधिकारी रहे हैं, जिन्होंने सेवा निवृत्ति के बाद राजनीति की राह पकड़ी। 2014 में वे बीजेपी के टिकट पर लोकसभा पहुंचे और इसके बाद उन्हें केंद्रीय गृह मंत्रालय से लेकर विद्युत व नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय तक की जिम्मेदारी दी गई।
उनकी पहचान एक सख्त प्रशासक और तकनीकी विशेषज्ञ नेता के रूप में रही है। मंत्री रहते हुए उन्होंने कई बड़े ऊर्जा सुधारों को आगे बढ़ाया और सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन को तेज किया।
इसी अनुभव के कारण आर.के. सिंह को पार्टी के भरोसेमंद नेताओं में गिना जाता था। हालांकि, हाल के दिनों में उनके बयानों की शैली में बदलाव देखा गया, जिसे लेकर पार्टी नेतृत्व असहज महसूस कर रहा था।
बीजेपी की कार्रवाई के राजनीतिक संकेत
राजनीतिक विशेषज्ञों की धारणा है कि बीजेपी इस समय ‘जीरो टॉलरेंस’ वाली नीति पर काम कर रही है।
पार्टी के अंदर एक नई लाइन उभरकर सामने आई है कि—
“नेता चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, पार्टी डिसिप्लिन सबसे ऊपर है।”
उनका मानना है कि आर.के. सिंह मामले में कार्रवाई सिर्फ एक व्यक्ति के खिलाफ कदम नहीं है, बल्कि यह पार्टी संगठन के लिए एक बड़ा संदेश है कि कोई भी सार्वजनिक बयान या गतिविधि पार्टी की मंजूरी और नीति के दायरे में ही होनी चाहिए।
कुछ विश्लेषकों का कहना है कि आगामी चुनावी माहौल में बीजेपी किसी भी प्रकार की इंटरनल असहमति को बढ़ने नहीं देना चाहती। वोटरों के बीच एकीकृत संदेश देने और विपक्ष को अंदरूनी विवाद का मौका न देने के लिए यह प्रकार की कठोर कार्रवाई की जाती है।
आर.के. सिंह की प्रतिक्रिया पर नजर
कार्रवाई के बाद राजनीतिक हलकों में यह भी चर्चा है कि आर.के. सिंह इसकी प्रतिक्रिया कैसे देंगे। अभी तक उनकी ओर से कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है।
कुछ जानकार मानते हैं कि वे इस मामले को शांतिपूर्वक निपटाना चाहेंगे, जबकि कुछ अन्य विशेषज्ञों की राय है कि यदि उन्हें पार्टी द्वारा लगातार किनारे किया जा रहा है, तो वे आगे कोई बड़ा राजनीतिक फैसला भी ले सकते हैं।
विरोधियों की प्रतिक्रिया
विपक्षी दलों ने बीजेपी की इस कार्रवाई पर तंज कसते हुए कहा है कि पार्टी अपनी आंतरिक असहमति को दबाने की कोशिश कर रही है। कुछ दलों ने इसे बीजेपी के ‘आत्मविश्वास में कमी’ का संकेत बताया तो कुछ नेताओं ने इसे “नेताओं पर बढ़ते दबाव” से जोड़कर देखा है।
हालांकि, बीजेपी समर्थकों का कहना है कि पार्टी अनुशासनहीनता को किसी भी स्तर पर बर्दाश्त नहीं करती और हर संगठन के लिए अनुशासन का पालन अनिवार्य है।
आगे क्या होगा?
आर.के. सिंह के राजनीतिक सफर में यह घटना कितना बड़ा प्रभाव डालेगी, यह अभी कहना जल्दबाजी होगा।
लेकिन इतना तय है कि यह मामला आने वाले दिनों में बिहार की राजनीति के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा का विषय बना रहेगा।
यह देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी की आगे की रणनीति क्या होगी और क्या आने वाले समय में अन्य नेताओं पर भी ऐसी कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाती है।
