
Caste census: जातीय जनगणना को लेकर केंद्र सरकार का बड़ा फैसला: दो चरणों में होगी जनगणना, तारीख और राज्य तय।
नई दिल्ली। भारत सरकार ने बहुप्रतीक्षित जातीय जनगणना (Caste Census) को लेकर बड़ा निर्णय लिया है। अब यह जनगणना दो चरणों में आयोजित की जाएगी, और इसके लिए तारीखें भी तय कर दी गई हैं। पहले चरण की शुरुआत कुछ प्रमुख राज्यों से होगी, जहां जनसंख्या और सामाजिक संरचना को ध्यान में रखते हुए प्रारंभिक डेटा संग्रह किया जाएगा।
कब होगी जातीय जनगणना?
जातीय जनगणना का पहला चरण अक्टूबर 2025 से शुरू किया जाएगा, जबकि दूसरे चरण की प्रक्रिया जनवरी 2026 से आरंभ होगी। यह निर्णय केंद्र सरकार ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के साथ व्यापक विचार-विमर्श के बाद लिया है।
जनगणना का उद्देश्य देश में मौजूद विभिन्न जातियों की संख्या, सामाजिक स्थिति और आर्थिक हालात को समझना है, ताकि सामाजिक न्याय और कल्याणकारी योजनाओं को और बेहतर तरीके से लागू किया जा सके।
किन राज्यों से होगी शुरुआत?
पहले चरण में बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे बड़े राज्यों को शामिल किया गया है। इन राज्यों में सामाजिक विविधता अधिक है और जनसंख्या घनत्व भी काफी अधिक है।
दूसरे चरण में दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर राज्यों जैसे कि तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, असम और मणिपुर में जनगणना की प्रक्रिया होगी।
डिजिटल माध्यम से होगा डेटा संग्रह
इस बार की जातीय जनगणना पूरी तरह डिजिटल तरीके से की जाएगी। जनगणना अधिकारी टैबलेट और मोबाइल एप्स के माध्यम से घर-घर जाकर जानकारी एकत्र करेंगे। हर नागरिक से उनकी जाति, उपजाति, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, शिक्षा, रोजगार और आवास से संबंधित जानकारियाँ ली जाएँगी।
सरकार का उद्देश्य और तैयारी
सरकार का कहना है कि जातीय जनगणना से आरक्षण और कल्याणकारी योजनाओं को अधिक पारदर्शी और प्रभावी बनाया जा सकेगा। साथ ही इससे यह भी स्पष्ट होगा कि किन वर्गों को अभी भी सरकारी योजनाओं का समुचित लाभ नहीं मिल पा रहा है।
गृह मंत्रालय और सामाजिक न्याय मंत्रालय इस जनगणना प्रक्रिया की निगरानी करेंगे। अधिकारियों को विशेष प्रशिक्षण दिया जा रहा है और डेटा सुरक्षा पर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
विपक्ष और सामाजिक संगठनों की प्रतिक्रिया
जातीय जनगणना की मांग कई वर्षों से की जा रही थी। बिहार सरकार ने पहले ही राज्यस्तरीय जातीय सर्वेक्षण करा लिया था, जिसके बाद अन्य राज्यों और सामाजिक संगठनों ने इसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने की मांग की थी। अब केंद्र सरकार के इस कदम का स्वागत किया जा रहा है, हालांकि कुछ विपक्षी दलों ने इसे देर से लिया गया निर्णय बताया है।
जातीय जनगणना भारत के सामाजिक और आर्थिक विकास के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसके जरिए न केवल समाज की संरचना को बेहतर ढंग से समझा जा सकेगा, बल्कि इससे नीति निर्धारण और संसाधनों के न्यायसंगत वितरण में भी सहायता मिलेगी।