
चाईबासा (झारखंड)। झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के चाईबासा में पुलिस और सीआरपीएफ (CRPF) को नक्सल उन्मूलन अभियान में बड़ी सफलता मिली है। लंबे समय से सुरक्षा बलों के लिए चुनौती बने 10 नक्सलियों ने आखिरकार हथियार डालते हुए सरेंडर कर दिया। अधिकारियों के मुताबिक, आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली कई बड़े हमलों और हिंसक घटनाओं में शामिल रहे हैं। यह कदम सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ी राहत माना जा रहा है और स्थानीय लोगों के बीच भी विश्वास का माहौल बना है।
नक्सलियों ने हथियार डालकर मुख्यधारा में लौटने का लिया फैसला
जानकारी के अनुसार, पुलिस और सीआरपीएफ द्वारा लगातार चलाए जा रहे कॉम्बिंग ऑपरेशन और विकास योजनाओं से प्रभावित होकर इन नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया। पश्चिमी सिंहभूम का इलाका लंबे समय से माओवादी गतिविधियों का गढ़ माना जाता रहा है। ऐसे में 10 नक्सलियों का एक साथ सरेंडर करना इस बात का संकेत है कि अब संगठन की पकड़ कमजोर होती जा रही है।
पुलिस अधिकारियों ने बताया कि आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों में से कुछ पर कई आपराधिक मुकदमे दर्ज थे और वे सुरक्षा बलों के लिए वांछित थे। आत्मसमर्पण करने वालों को सरकार की पुनर्वास नीति के तहत मदद दी जाएगी, ताकि वे सम्मानजनक जीवन जी सकें और समाज में योगदान कर सकें।
पुलिस-CRPF के संयुक्त अभियान का असर
पश्चिमी सिंहभूम, सरायकेला और खूंटी जैसे जिलों में पुलिस और सीआरपीएफ लंबे समय से माओवादियों के खिलाफ ऑपरेशन चला रही है। बीते कुछ महीनों में इस क्षेत्र में कई एन्काउंटर और सरेंडर की घटनाएं हो चुकी हैं। पुलिस की रणनीति न केवल माओवादियों के ठिकानों को ध्वस्त करने पर केंद्रित है बल्कि ग्रामीणों के बीच विश्वास कायम करने पर भी है।
सुरक्षा बलों ने पिछले दिनों कई इलाकों में सड़क, स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र और अन्य बुनियादी सुविधाओं को बढ़ावा देने का काम किया है। यही कारण है कि माओवादियों की विचारधारा से प्रभावित लोग अब धीरे-धीरे मुख्यधारा की ओर लौट रहे हैं।
विकास और विश्वास की नीति से बदल रहा है माहौल
झारखंड सरकार और केंद्रीय सुरक्षा बल लगातार यह प्रयास कर रहे हैं कि माओवादी गतिविधियों से प्रभावित इलाकों में विकास कार्य तेजी से हों। पुलिस अधिकारियों का मानना है कि यदि ग्रामीणों को शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं आसानी से मिलेंगी तो माओवादी संगठनों के लिए नए लोगों को जोड़ना कठिन होगा।
सरेंडर करने वाले नक्सलियों ने भी स्वीकार किया है कि वे संगठन से निराश हो चुके थे। उन्हें महसूस हुआ कि हथियार उठाकर वे न तो खुद का भला कर पा रहे हैं और न ही समाज का। इसीलिए उन्होंने आत्मसमर्पण कर एक नई शुरुआत करने का फैसला लिया।
नक्सल प्रभावित जिलों में लगातार हो रहे सरेंडर
पिछले कुछ वर्षों में झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में बड़ी संख्या में नक्सली आत्मसमर्पण कर रहे हैं। इसका बड़ा कारण सुरक्षा बलों की सख्त कार्रवाई और सरकार की पुनर्वास योजनाएं हैं। जिन नक्सलियों ने हथियार डाले हैं, उन्हें न केवल आर्थिक सहायता दी जाती है बल्कि समाज में पुनर्वास के लिए प्रशिक्षण और रोजगार के अवसर भी उपलब्ध कराए जाते हैं।
चाईबासा में हुआ यह आत्मसमर्पण अभियान इस बात का उदाहरण है कि अब नक्सलियों के बीच भी असंतोष बढ़ रहा है और वे हिंसा का रास्ता छोड़कर शांति का मार्ग अपना रहे हैं।
सुरक्षा बलों का संकल्प – नक्सलवाद का सफाया
चाईबासा में नक्सलियों के सरेंडर के बाद पुलिस और सीआरपीएफ ने स्पष्ट किया कि उनका अभियान आगे भी जारी रहेगा। अधिकारियों का कहना है कि अब लक्ष्य है कि माओवादी संगठन पूरी तरह से कमजोर हो जाए और निर्दोष ग्रामीण भयमुक्त होकर जीवन जी सकें।
सुरक्षा बलों ने स्थानीय लोगों से भी अपील की है कि वे नक्सलियों के दबाव में न आएं और समाज तथा विकास की मुख्यधारा से जुड़ें। प्रशासन ने भरोसा दिलाया है कि जो भी नक्सली हथियार डालकर सरेंडर करेगा, उसे कानून के तहत पूरा संरक्षण और पुनर्वास मिलेगा।
चाईबासा में 10 नक्सलियों का आत्मसमर्पण न सिर्फ पुलिस और सीआरपीएफ के लिए बड़ी उपलब्धि है बल्कि यह संदेश भी है कि हिंसा और हथियारों के रास्ते से स्थायी समाधान नहीं निकल सकता। सरकार और सुरक्षा बलों की रणनीति अब फल दे रही है और धीरे-धीरे नक्सल प्रभावित इलाके बदलते नजर आ रहे हैं।
यदि यही रफ्तार बरकरार रही तो आने वाले समय में झारखंड नक्सलवाद से पूरी तरह मुक्त हो सकता है।