पटना। कार्तिक शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाने वाला खरना छठ महापर्व का दूसरा और अत्यंत पवित्र दिन है। इस दिन व्रती माताएं और महिलाएं दिनभर निर्जला उपवास रखकर शाम के समय भगवान भास्कर और माता गंगा की पूजा-अर्चना करती हैं। इस वर्ष छठ महापर्व 2025 का खरना 26 अक्टूबर (रविवार) को मनाया जा रहा है। यह पर्व शुद्धता, तपस्या और आत्मसंयम का प्रतीक माना जाता है।
खरना का धार्मिक महत्व
छठ पूजा सूर्य उपासना का सबसे बड़ा लोक पर्व है, जो चार दिनों तक चलता है — नहाय खाय, खरना, संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य। इनमें से खरना का दिन सबसे पवित्र और अनुशासित माना जाता है। खरना का अर्थ होता है — “शुद्धिकरण”। इस दिन व्रती अपने शरीर और मन को पूर्ण रूप से पवित्र करते हुए सूर्यदेव को अर्पित प्रसाद ग्रहण करते हैं।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, खरना के दिन व्रती पूरे दिन बिना जल ग्रहण किए उपवास रखते हैं। सूर्यास्त के बाद स्नान कर मिट्टी या पीतल के बर्तन में प्रसाद बनाते हैं — जिसमें गुड़, चावल और दूध से बना खीर और गेहूं के आटे की रोटी प्रमुख होती है। इसे केले के पत्ते पर परोसा जाता है और सूर्यदेव को अर्पित करने के बाद ही व्रती भोजन ग्रहण करते हैं। यही प्रसाद परिवार और आस-पड़ोस में वितरित किया जाता है।
खरना पूजा विधि
1. सुबह से उपवास: व्रती सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं और दिनभर निर्जला उपवास रखते हैं।
2. संध्या पूजन की तैयारी: सूर्यास्त के समय घर या आंगन को साफ करके पूजन स्थल सजाया जाता है।
3. दीपदान और प्रसाद निर्माण: मिट्टी या तांबे के बर्तन में दूध, चावल और गुड़ डालकर खीर बनाई जाती है। रोटी घी से सेंकी जाती है।
4. सूर्यदेव की पूजा: सूर्यदेव की प्रतिमा या दिशा की ओर दीप जलाकर, जल अर्पण किया जाता है और प्रसाद समर्पित किया जाता है।
5. प्रसाद ग्रहण: पूजा के बाद व्रती सबसे पहले भगवान सूर्य को प्रसाद चढ़ाते हैं और फिर स्वयं ग्रहण करते हैं। इस क्षण के साथ अगले 36 घंटे का निर्जला व्रत प्रारंभ होता है, जो उषा अर्घ्य तक चलता है।
खरना के नियम और सावधानियां
खरना के दिन व्रती को पूरे दिन जल या अन्न का सेवन नहीं करना चाहिए।
इस दिन घर का वातावरण पूर्णतः स्वच्छ और सात्विक होना चाहिए।
रसोई में केवल व्रती या शुद्ध व्यक्ति ही प्रसाद बनाए।
प्रसाद में लहसुन, प्याज या नमक का प्रयोग वर्जित है।
खरना के प्रसाद को कभी फ्रिज में नहीं रखा जाता, इसे ताजे रूप में ही ग्रहण किया जाता है।
खरना 2025 का शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार,
खरना तिथि: 26 अक्टूबर 2025 (रविवार)
सूर्यास्त का समय: शाम 5:31 बजे
पूजन मुहूर्त: शाम 5:15 बजे से 6:15 बजे तक
चंद्र दर्शन: रात्रि 8:10 बजे के बाद
इस शुभ समय में व्रती महिलाएं गंगा या तालाब किनारे सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित कर पूजा करती हैं।
आध्यात्मिक अर्थ
खरना केवल एक धार्मिक प्रक्रिया नहीं बल्कि आत्मशुद्धि और अनुशासन का प्रतीक है। यह दिन व्यक्ति को संयम, भक्ति और त्याग का संदेश देता है। सूर्यदेव की उपासना से स्वास्थ्य, ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार होता है। ऐसा माना जाता है कि खरना की पूजा से व्रती के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
छठ पूजा के आगे के दिन
खरना के बाद अगले दिन संध्या अर्घ्य का आयोजन किया जाता है, जिसमें व्रती जलाशयों के किनारे डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। चौथे दिन उषा अर्घ्य के साथ छठ महापर्व का समापन होता है, जहां उगते सूर्य को जल अर्पित कर परिवार और समाज के कल्याण की कामना की जाती है।
लोक परंपरा और भक्ति का संगम
छठ महापर्व की सबसे बड़ी विशेषता है इसकी लोकप्रियता और सामूहिकता। बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश से लेकर नेपाल तक यह पर्व श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है। घाटों की सजावट, गीतों की गूंज, और व्रती महिलाओं की श्रद्धा इस पर्व को अद्भुत बनाती है।
खरना के अवसर पर “पटना के गंगा घाट”, “देव सूर्य मंदिर, औरंगाबाद”, “सोनपुर और दरभंगा के सरोवर” में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। लोग पारंपरिक गीत गाते हुए सूर्यदेव की आराधना करते हैं —
“केलवा जइसन सखिया हो, ना जइबू छठी मइया बिना…”
छठ महापर्व का खरना केवल एक धार्मिक रस्म नहीं, बल्कि यह व्यक्ति के भीतर आत्मनियंत्रण और आध्यात्मिकता का भाव जाग्रत करता है। इस दिन व्रती मां छठी मइया से परिवार की सुख-समृद्धि, रोग-निवारण और संतान की दीर्घायु की कामना करते हैं।
खरना का यह पर्व हमें यह सिखाता है कि अनुशासन, श्रद्धा और पवित्रता से ही ईश्वर की कृपा प्राप्त की जा सकती है।
