
जम्मू के किश्तवाड़ में मौत बन कर बरसे मेघ, आसमान से आयी आफत में 15 लोगों की मौत
जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में बुधवार देर रात और गुरुवार तड़के आसमान से बरसी आफत ने कहर ढा दिया। तेज बारिश और बादल फटने जैसी स्थिति के कारण कई गांवों में पानी और मलबा घुस आया। पहाड़ी ढलानों से मिट्टी, पत्थर और भारी मात्रा में पानी नीचे बस्तियों की ओर बह आया, जिससे घर, दुकानें और खेत तबाह हो गए। इस भीषण आपदा में अब तक 15 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि दर्जनों लोग घायल और लापता बताए जा रहे हैं।
प्रशासन और बचाव एजेंसियां राहत और रेस्क्यू कार्य में जुटी हैं, लेकिन खराब मौसम और लगातार हो रही बारिश से काम में दिक्कतें आ रही हैं। किश्तवाड़ के कई इलाकों में बिजली और संचार सेवाएं ठप हैं, जिससे स्थिति और भी गंभीर हो गई है। कई जगह सड़कों पर पानी और मलबा भर जाने से यातायात बाधित है, जिससे राहत सामग्री पहुंचाने में भी देरी हो रही है।
आसमान से बरसी आफत
स्थानीय लोगों के मुताबिक, रात करीब 3 बजे के आसपास अचानक तेज गर्जना और बारिश शुरू हुई। कुछ ही मिनटों में पहाड़ों से भारी मात्रा में पानी और पत्थर बहकर नीचे आने लगे। देखते ही देखते नालों का पानी उफान पर आ गया और पास के कई घर इसकी चपेट में आ गए। कुछ घर पूरी तरह ढह गए तो कुछ का आधा हिस्सा बह गया। खेतों में खड़ी फसल बर्बाद हो गई।
किश्तवाड़ के सरआज़ और पडल गांव सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। यहां कई लोग सो रहे थे, जिन्हें संभलने का मौका तक नहीं मिला। प्रशासन के अनुसार, मलबे में दबे लोगों को निकालने के लिए एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, पुलिस और सेना के जवान मौके पर तैनात हैं। हेलिकॉप्टर से भी राहत कार्य की संभावना पर विचार किया जा रहा है, हालांकि मौसम इसमें बड़ी बाधा बन रहा है।
मौत का मंजर और दर्द की कहानियां
गांव के लोग बताते हैं कि पानी और मलबे का रेला इतना तेज था कि उसके सामने कुछ भी टिक नहीं पाया। एक ही परिवार के तीन-चार सदस्य एक साथ बह गए। कुछ बच्चों के शव पास के नाले से बरामद हुए। कई लोग अभी भी लापता हैं, जिनकी तलाश जारी है। अस्पतालों में घायलों का इलाज चल रहा है, जहां कई की हालत गंभीर बताई जा रही है।
एक स्थानीय निवासी ने रोते हुए कहा, “हम सो रहे थे, तभी तेज आवाज आई। बाहर निकले तो सबकुछ बह चुका था। मेरे भाई और उसकी बेटी अब हमारे बीच नहीं हैं।”
प्रशासन का रेस्क्यू अभियान
जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने हादसे पर गहरा शोक व्यक्त किया है और प्रभावित परिवारों को हरसंभव मदद देने का आश्वासन दिया है। उन्होंने मृतकों के परिजनों को प्रत्येक ₹5 लाख मुआवजा और घायलों को मुफ्त इलाज देने की घोषणा की है।
एनडीआरएफ के प्रवक्ता ने बताया कि राहत टीमों ने अब तक मलबे से कई लोगों को जिंदा निकाला है, लेकिन खतरा अभी टला नहीं है। पहाड़ी इलाकों में लगातार बारिश से भूस्खलन का खतरा और बढ़ गया है। सेना के जवान भी गांव-गांव जाकर लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा रहे हैं।
बार-बार दोहराता संकट
किश्तवाड़ जिला पहले भी ऐसी आपदाओं का सामना कर चुका है। पहाड़ी और संवेदनशील भौगोलिक स्थिति के कारण यहां बादल फटना, भूस्खलन और अचानक बाढ़ आना आम है। विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन और अनियंत्रित निर्माण गतिविधियां इन आपदाओं की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ा रही हैं।
मौसम विभाग ने अगले 48 घंटों के लिए किश्तवाड़ और आसपास के जिलों में रेड अलर्ट जारी किया है और लोगों से सतर्क रहने की अपील की है। ग्रामीणों को ऊंचे और सुरक्षित इलाकों में जाने की सलाह दी गई है।
आंखों में आंसू, दिल में डर
आपदा से बचे लोग अब भी सदमे में हैं। टूटी-फूटी झोपड़ियों के बीच लोग अपने बचे-खुचे सामान को इकट्ठा करने में लगे हैं। महिलाओं और बच्चों के चेहरे पर डर साफ झलकता है। कई परिवार ऐसे हैं जिनका सब कुछ इस आपदा में चला गया—घर, खेत, मवेशी और अपने लोग।
राहत शिविरों में जरूरत का सामान, जैसे खाने-पीने की चीजें, कंबल और दवाइयां, भेजी जा रही हैं, लेकिन प्रभावित क्षेत्र की संख्या अधिक होने से संसाधन अभी भी कम पड़ रहे हैं।
यह हादसा एक बार फिर सवाल खड़ा करता है कि क्या पहाड़ी और संवेदनशील इलाकों में प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए हमारे पास पर्याप्त तैयारी है? प्रशासन ने दावा किया है कि वह भविष्य में ऐसे क्षेत्रों के लिए विशेष आपदा प्रबंधन योजना तैयार करेगा, लेकिन फिलहाल किश्तवाड़ के लोग अपने जख्मों के साथ जूझ रहे हैं।