
बिहार चुनाव से पहले वोटर लिस्ट पर घमासान: NRC जैसी प्रक्रिया का आरोप, चुनाव आयोग ने पेश किए संविधानिक तर्क।
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट के पुनरीक्षण अभियान को लेकर सियासी बवाल तेज हो गया है। चुनाव आयोग द्वारा शुरू किए गए इस अभियान में मतदाताओं से उनके जन्म और नागरिकता से जुड़े दस्तावेज प्रस्तुत करने को कहा गया है। इस कवायद का मकसद मतदाता सूची से फर्जी और अवैध नामों को हटाना बताया गया है। हालांकि, इस पर विपक्षी दलों ने कड़ी आपत्ति जताई है और इसे राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) जैसी प्रक्रिया करार दिया है।
विपक्ष ने जताई तीखी आपत्ति
विपक्षी पार्टियों का कहना है कि चुनाव से ठीक पहले इस तरह की प्रक्रिया लोगों में डर और भ्रम की स्थिति पैदा कर सकती है। उनका आरोप है कि इससे खास समुदायों को निशाना बनाया जा सकता है और यह लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। राजद, कांग्रेस समेत अन्य दलों ने इसे “छिपा हुआ NRC” करार देते हुए तत्काल बंद करने की मांग की है।
चुनाव आयोग ने पेश किया संविधानिक आधार
विवाद बढ़ने के बाद चुनाव आयोग ने एक विस्तृत बयान जारी करते हुए इस अभियान को पूरी तरह संवैधानिक और पारदर्शी बताया। आयोग ने साफ किया कि यह प्रक्रिया भारत के संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत संचालित हो रही है, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि केवल भारतीय नागरिकों को ही मतदान का अधिकार है। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि दस्तावेज मांगने का उद्देश्य किसी विशेष वर्ग को टारगेट करना नहीं, बल्कि मतदाता सूची को शुद्ध और सटीक बनाना है।
क्या है अनुच्छेद 326?
अनुच्छेद 326 के अनुसार, भारत के नागरिक जो 18 वर्ष या उससे अधिक आयु के हैं और मानसिक रूप से सक्षम हैं, उन्हें चुनावों में वोट देने का अधिकार है। इसमें यह भी प्रावधान है कि नागरिकता का प्रमाण आवश्यक है ताकि कोई गैर-नागरिक वोटर लिस्ट में शामिल न हो सके।
क्या है पुनरीक्षण अभियान का उद्देश्य?
चुनाव आयोग के अनुसार, मतदाता सूची को समय-समय पर अपडेट करना आवश्यक है ताकि मृत, डुप्लीकेट, या अप्रवासी व्यक्तियों के नाम हटाए जा सकें। साथ ही, नए योग्य मतदाताओं को जोड़ा जा सके। इस प्रक्रिया को हर चुनाव से पहले नियमित तौर पर किया जाता है।
बिहार में चुनावी सरगर्मी के बीच यह मुद्दा सियासी रंग पकड़ चुका है। जहां एक ओर आयोग इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करने की दिशा में उठाया गया कदम बता रहा है, वहीं विपक्ष इसे लोगों को डराने और भ्रमित करने की साजिश बता रहा है। अब देखना यह होगा कि आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों और आयोग के बीच कौन-सी दिशा तय होती है, और इसका चुनावी माहौल पर कितना असर पड़ता है।