
Deoghar: सिविल सर्जन डॉ. रंजन सिन्हा की गिरफ्तारी ने स्वास्थ्य सेवाओं में भ्रष्टाचार पर उठाए सवाल
देवघर। देवघर में स्वास्थ्य सेवाओं में भ्रष्टाचार का एक गंभीर मामला सामने आया है, जिसने न केवल स्थानीय स्वास्थ्य प्रणाली को प्रभावित किया है, बल्कि यह सवाल भी उठाया है कि क्या ऐसे अधिकारी अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर रहे हैं।
परिवादी मो. महफुज आलम, जिन्होंने 2020 में ‘बंगाल नर्सिंग होम’ की स्थापना की थी, ने सिविल सर्जन डॉ. रंजन सिन्हा पर घूस मांगने का आरोप लगाया है।
**मामले की पृष्ठभूमि**
मो. महफुज आलम, जो पश्चिम बंगाल के पश्चिम वर्द्धमान जिले के निवासी हैं, ने अपने नर्सिंग होम का प्रोविजनल प्रमाण पत्र 9 जून 2024 तक जारी कराया था। प्रमाण पत्र के नवीनीकरण के लिए उन्होंने 3 जुलाई 2024 को आवेदन दिया, लेकिन उनकी स्वास्थ्य समस्याओं के कारण आवेदन में 24 दिन की देरी हुई।
जब आलम ने सिविल सर्जन कार्यालय से अपने आवेदन की स्थिति पूछी, तो डॉ. रंजन सिन्हा ने नवीनीकरण के लिए 1,00,000 रुपये की मांग की। आलम ने जब विनम्रता से अनुरोध किया, तो डॉ. सिन्हा ने कहा कि वह तीन-चार किस्तों में यह राशि ले लेंगे।
**घूस मांगने का आरोप**
आलम ने घूस देने से मना किया और इस मामले को लेकर भ्रष्ट्राचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) को सूचित किया। जब एसीबी ने मामले की जांच शुरू की, तो यह पुष्टि हुई कि डॉ. सिन्हा ने घूस की राशि 1,00,000 रुपये से बढ़ाकर 1,50,000 रुपये कर दी। इस दौरान, आरोपी ने आलम को 16 अक्टूबर 2024 को अपने निवास पर बुलाया और 70,000 रुपये की पहली किस्त देने के लिए कहा।
**रंगे हाथ गिरफ्तारी**
भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने कार्रवाई करते हुए डॉ. रंजन सिन्हा को 70,000 रुपये की घूस लेते हुए रंगे हाथ गिरफ्तार किया। गिरफ्तारी के बाद, एसीबी के अधिकारियों ने बताया कि आलम की शिकायत के आधार पर यह कार्रवाई की गई और अब मामले की विस्तृत जांच की जा रही है।
**स्वास्थ्य सेवाओं में भ्रष्टाचार का संकट**
इस घटना ने स्वास्थ्य सेवाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार की गंभीरता को उजागर किया है। स्थानीय समुदाय ने सिविल सर्जन की गिरफ्तारी का स्वागत किया है और अधिकारियों से अपील की है कि वे स्वास्थ्य सेवा में सुधार के लिए ठोस कदम उठाएं। यह मामला न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि व्यापक स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं की विश्वसनीयता को भी प्रभावित कर रहा है।
**न्याय की प्रक्रिया**
भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने मामले की गंभीरता को देखते हुए तुरंत कार्रवाई की और डॉ. सिन्हा के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई। अब यह देखना है कि न्यायिक प्रणाली इस मामले में क्या निर्णय लेगी। यदि दोषी साबित होते हैं, तो उन्हें सख्त सजा मिलनी चाहिए, ताकि भविष्य में कोई भी स्वास्थ्य सेवा में भ्रष्टाचार करने का साहस न कर सके।
**सामुदायिक जागरूकता और कार्रवाई**
इस घटना ने स्थानीय लोगों में जागरूकता बढ़ाने का काम किया है। नागरिक अब इस बात को लेकर अधिक सतर्क हैं कि उनके अधिकारों का उल्लंघन न हो। सामाजिक संगठनों ने भी इस मुद्दे पर आवाज उठाई है और स्वास्थ्य सेवाओं में पारदर्शिता के लिए आंदोलन शुरू किया है।
**भविष्य की दिशा**
यह घटना न केवल एक चेतावनी है, बल्कि यह समाज में परिवर्तन की आवश्यकता को भी दर्शाती है। लोगों को चाहिए कि वे अपनी आवाज उठाएं और भ्रष्टाचार के खिलाफ एकजुट हों। स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए नागरिकों को भी जिम्मेदारी लेनी होगी, ताकि उनके अधिकारों का सम्मान किया जा सके और वे बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठा सकें।
आलम की यह कार्रवाई निश्चित रूप से अन्य नागरिकों को प्रेरित करेगी कि वे भी ऐसे मामलों में आवाज उठाएं और भ्रष्टाचार के खिलाफ कदम उठाएं। अब देखना है कि यह मामला किस दिशा में बढ़ता है और न्याय किस तरह से स्थापित होता है।