
देवघर (झारखंड):देशभर में विजयदशमी यानी दशहरा पर रावण दहन की परंपरा सदियों से चली आ रही है। अयोध्या, वाराणसी, दिल्ली, कोलकाता से लेकर पटना तक जगह-जगह रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले जलाए जाते हैं। परंतु झारखंड के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल बैद्यनाथ धाम (देवघर) में दशहरा का स्वरूप बिल्कुल अलग होता है। यहां रावण का पुतला नहीं जलाया जाता। बल्कि भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष पूजा होती है। भक्तजन विजयदशमी पर रावण दहन की जगह धार्मिक अनुष्ठान और आराधना करते हैं।
बैद्यनाथ धाम का महत्व
बैद्यनाथ धाम, जिसे बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है, झारखंड के देवघर जिले में स्थित है। इसे “कांची कामना स्थल” भी कहा जाता है, क्योंकि यहां आने वाले भक्त की हर मनोकामना पूर्ण होती है। इस धाम का संबंध सीधे रावण से जुड़ा है।
मान्यता है कि लंका के राजा रावण भगवान शिव का परम भक्त था। उसने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया और अपने सिर की आहुति दी। रावण ने अपनी भक्ति से भोलेनाथ को प्रसन्न कर लिया और शिव ने उसे वरदान स्वरूप लिंग दिया। यही कारण है कि यहां रावण को केवल खलनायक के रूप में नहीं देखा जाता, बल्कि शिवभक्त के रूप में सम्मान दिया जाता है।
देवघर में क्यों नहीं जलाया जाता रावण दहन?
भारत के अधिकांश हिस्सों में दशहरा का अर्थ रावण दहन है। लोग इसे असत्य पर सत्य की विजय मानकर मनाते हैं। लेकिन देवघर में परंपरा अलग है।
1. रावण शिव का परम भक्त था – बैद्यनाथ धाम की मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव के सबसे प्रिय भक्त रावण ही थे। वह यहां पूजा-अर्चना करने आया था और भगवान ने उसकी भक्ति को स्वीकार किया था। इसलिए यहां रावण का अपमान या दहन नहीं किया जाता।
2. श्रद्धा का प्रतीक – देवघर में यह विश्वास है कि रावण दहन करने से भगवान शिव की भावनाओं को ठेस पहुंच सकती है। चूंकि भगवान शिव को रावण की भक्ति प्रिय थी, इसलिए भक्तगण उसकी निंदा से बचते हैं।
3. परंपरा का हिस्सा – वर्षों से यहां दशहरा पर रावण दहन न करने की परंपरा चली आ रही है। यहां दशहरा का त्योहार सिर्फ धार्मिक अनुष्ठानों और भजन-कीर्तन के साथ मनाया जाता है।
देवघर में दशहरा कैसे मनाया जाता है?
देवघर में विजयदशमी पर सुबह से ही मंदिर परिसर में भक्तों की लंबी कतार लग जाती है।
विशेष पूजन-अर्चना – मंदिर में भगवान शिव और माता पार्वती का विशेष श्रृंगार होता है।
शोभायात्रा – स्थानीय स्तर पर भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है, जिसमें हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं।
धार्मिक अनुष्ठान – रावण दहन की जगह राम-लीला का मंचन और पौराणिक कथाओं का वाचन किया जाता है।
सांस्कृतिक कार्यक्रम – लोकगीत, भजन-कीर्तन और पारंपरिक नृत्य से वातावरण भक्तिमय बन जाता है।
रावण और बैद्यनाथ धाम की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अपने दस सिर काटकर यज्ञ में अर्पित किए थे। इससे खुश होकर भगवान शिव ने रावण को अमरत्व और अद्वितीय शक्ति का वरदान दिया।
मान्यता है कि रावण ही वह व्यक्ति था जिसने इस ज्योतिर्लिंग को लंका ले जाने की कोशिश की, लेकिन भगवान ने उसे यहीं स्थापित कर दिया। इस कारण से इस धाम का नाम बैद्यनाथ पड़ा।
धार्मिक दृष्टिकोण
देवघर के पंडितों और पुरोहितों का मानना है कि –
रावण को सिर्फ बुराई का प्रतीक मानना अधूरा दृष्टिकोण है।
वह शिव का परम भक्त था, इसलिए यहां उसका पुतला जलाना अनुचित माना जाता है।
यहां दशहरा का असली संदेश है भक्ति, श्रद्धा और धार्मिकता का महत्व।
जहां एक ओर पूरा भारत रावण दहन करके असत्य पर सत्य की जीत का जश्न मनाता है, वहीं देवघर का बैद्यनाथ धाम हमें यह संदेश देता है कि हर व्यक्ति के जीवन में अच्छाई और भक्ति के तत्व भी होते हैं। रावण को सिर्फ खलनायक नहीं, बल्कि भगवान शिव का भक्त मानकर यहां उसका सम्मान किया जाता है। यही कारण है कि देवघर में दशहरा पर रावण दहन की परंपरा नहीं है।