
Deoghar: देवघर की मधुमिता ने साड़ियों पर हस्त चित्रण से दी पारंपरिक कला को नई उड़ान, बना रहीं महिलाओं को आत्मनिर्भर।
देवघर। कला की पवित्र भूमि कही जाने वाली देवघर यहां कण कण में कला विद्यमान में देवघर की रहने वाली मधुमिता ने पारंपरिक कला को एक नया आयाम देते हुए साड़ियों पर हाथ से रंग-बिरंगी पेंटिंग कर अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया है। मधुमिता न केवल यह कला स्वयं अभ्यास में ला रही हैं, बल्कि कई बच्चियों को भी इसकी ट्रेनिंग देकर उन्हें आत्मनिर्भर बना रही हैं।
इन दिनों हाथ से पेंट की गई साड़ियाँ खासा लोकप्रिय हो रही हैं। इनमें झारखंड की पहचान मानी जाने वाली तसर सिल्क की साड़ियाँ विशेष रूप से लोगों का ध्यान खींच रही हैं। मधुमिता द्वारा बनाई गई साड़ियों की खास बात यह है कि हर एक साड़ी का डिजाइन पूरी तरह से अलग और अनोखा होता है। हाथ से पेंट की गई साड़ियों की खासियत हर साड़ी पर किया गया चित्रण एक तरह का होता है, जिससे उसकी विशिष्टता बनी रहती है।इसके अलावे यह सदियों पुरानी परंपरा है, जो भारत के विभिन्न हिस्सों में कला की विरासत के रूप में आज भी जीवित है। भारत के विभिन्न राज्यों जैसे राजस्थान, गुजरात, पश्चिम बंगाल में भी यह कला पनपी है, लेकिन मधुमिता ने इसे झारखंडी तसर सिल्क के साथ जोड़कर खास बना दिया है।
शुद्ध सामग्री का प्रयोग:
मधुमिता की बनाई साड़ियों में शुद्ध रेशम, तसर और कॉटन-सिल्क के मिश्रण का इस्तेमाल होता है। इन साड़ियों को हाथ से धोना जरूरी होता है, ताकि रंग और कपड़े की गुणवत्ता बनी रहे।
देवघर की मधुमिता द्वारा किया जा रहा यह प्रयास न केवल कला को जीवित रखे हुए है, बल्कि यह महिलाओं के स्वावलंबन की ओर भी एक मजबूत कदम है। उनका सपना है कि झारखंड की पारंपरिक कला को देश और दुनिया में पहचान दिलाई जाए।
यह पहल न केवल आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक प्रेरणादायक कदम है, बल्कि यह ‘लोकल फॉर वोकल’ की भावना को भी साकार करती है।