
Deoghar News: “देवघर से दिशोम गुरु शिबू सोरेन का गहरा नाता: झारखंड आंदोलन की रणनीति का केंद्र बना था बाबा की नगरी”
देवघर। झारखंड राज्य के निर्माता, पूर्व मुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सांसद दिशोम गुरु शिबू सोरेन का देवघर से विशेष जुड़ाव रहा है। संतालपरगना की धरती से उपजे इस जननेता ने झारखंड आंदोलन को नई दिशा देने के लिए देवघर को एक रणनीतिक केंद्र के रूप में स्थापित किया था। महाजनी प्रथा के खिलाफ बिगुल फूंकने से लेकर आदिवासियों और मूलवासियों को संगठित करने की मुहिम में देवघर हमेशा उनके कदमों का साक्षी बना।
वर्ष 1990 में गुरुजी ने सक्रिय रूप से देवघर की राजनीतिक धरातल पर कदम रखा। यह वही समय था जब उन्होंने पहली बार द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख बाबा बैद्यनाथ धाम में विधिवत पूजा-अर्चना की थी। इस ऐतिहासिक पूजा का आयोजन उनके करीबी सहयोगी डॉ. सुनील खवाड़े की अगुवायी में हुआ था। पूजन के पश्चात दिशोम गुरु ने सूरज मंडल के साथ वैद्यनाथ लेन होते हुए शिवगंगा के पूर्वी छोर तक पदयात्रा की। यह यात्रा बाबा मंदिर से नगर पालिका के शयनशाला भवन तक की थी, जहां झारखंड आंदोलन को धार देने के लिए पुरोहित समुदाय से उनका समर्थन मांगा गया था।
गुरुजी ने देवघर में न केवल जनसंपर्क बढ़ाया बल्कि झारखंड दिवस जैसे आयोजनों की नींव भी रखी। 2 मई 1991 को आरमित्रा उच्च विद्यालय के प्रांगण में पहली बार झारखंड दिवस का आयोजन किया गया, जिसकी अगुवायी भी डॉ. सुनील खवाड़े ने की थी। यह कार्यक्रम वर्षों तक निरंतर होता रहा और हर साल इसकी भव्यता बढ़ती गई। झारखंडी अस्मिता और अधिकारों की आवाज को जन-जन तक पहुंचाने में इस आयोजन की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
देवघर की गलियों में गुरुजी की गूंज केवल भाषणों तक सीमित नहीं रही। वे आदिवासी और मूलवासी समुदाय को राजनीतिक चेतना से जोड़ने के लिए लगातार प्रयासरत रहे। देवघर की प्रसिद्ध कचौड़ी, मिठाई और दही की तारीफ करते हुए गुरुजी आम जन से घुलते-मिलते नजर आए। इस आत्मीयता ने देवघर को उनके दिल के करीब ला दिया।
एक महत्वपूर्ण घटना में गुरुजी की नेतृत्व क्षमता और संगठन पर पकड़ की झलक साफ दिखी। जब झामुमो ने झारखंड बंद का आह्वान किया और तत्कालीन बिहार सरकार (मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव) ने सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी, तब गुरुजी देवघर पहुंचे। देवघर-चितरा मुख्य पथ पर ऊपरबंधा के पास प्रशासन ने उन्हें रोक दिया। इसके बाद उन्होंने सुनील खवाड़े को संदेश भेजा कि चितरा चौक पर विरोध-प्रदर्शन हर हाल में होना चाहिए।
सुनील खवाड़े ने तत्काल तारानंद सिंह, गिरिधारी मंडल और लगभग 150 झामुमो कार्यकर्ताओं के साथ रणनीति बनाई और पुलिस की सख्त निगरानी को चकमा देते हुए सोनारायठाढ़ी, बदिया मोड़ और सारठ के रास्ते चितरा पहुंचे। वहां से बहियार पार कर मजदूर नेता श्याम सिंह के घर ठहराव के बाद सभी कार्यकर्ता चितरा चौक पहुंचे और जबरदस्त नारेबाजी की। यह प्रशासन के लिए एक चौंकाने वाला क्षण था क्योंकि इतनी कड़ी चौकसी के बावजूद प्रदर्शनकारियों का चितरा चौक तक पहुंचना प्रशासनिक विफलता को दर्शाता था।
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए दंडाधिकारी सीओ उदय कांत पाठक और थानेदार अरविंद सिंह ने प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार करने के बजाय शांति बनाए रखने के लिए एक ट्रक में बैठाकर पुलिस निगरानी में देवघर भेज दिया। यह घटना न सिर्फ दिशोम गुरु की दूरदर्शिता और संगठन क्षमता का उदाहरण बनी, बल्कि झारखंड आंदोलन में देवघर की केंद्रीय भूमिका को भी स्पष्ट कर गई।
दिशोम गुरु शिबू सोरेन का जीवन, संघर्ष और संकल्प देवघर के कोने-कोने में आज भी जीवित है। बाबा बैद्यनाथ की नगरी में उनके पदचिन्ह न केवल स्मृतियों में जीवंत हैं, बल्कि झारखंडी अस्मिता और आंदोलन की प्रेरणा भी हैं। उनके नेतृत्व में देवघर ने सामाजिक चेतना, राजनीतिक संघर्ष और सांस्कृतिक आंदोलन का संगम देखा है।
देवघर की धरती पर दिशोम गुरु की उपस्थिति और सक्रियता ने झारखंड आंदोलन को नया आयाम दिया। आज जब वे हमारे बीच नहीं हैं, तब भी उनका योगदान देवघरवासियों के दिलों में अमिट है। उनका संघर्ष, समर्पण और विचारधारा आने वाली पीढ़ियों को मार्गदर्शन देती रहेगी।