
Deoghar: दुमका मसानजोर में मिलेगा अब हिल स्टेशन जैसा अनुभव, पहाड़ पर लकड़ी से बना इको कॉटेज के उद्घाटन का इंतजार।
देवघर। दुमका स्थित मसानजोर डैम अब पर्यटकों के लिए नया आकर्षण बन रहा है। यहाँ नए इको कॉटेज और वोटिंग की सुविधा शुरू हो गई है। पर्यटक प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद ले सकते हैं। डैम के आसपास का क्षेत्र विकसित किया जा रहा है। सरकार इसे हिल स्टेशन के रूप में बढ़ावा दे रही है।
क्रिसमस या नये साल में अपने परिवार के साथ प्रकृति के खूबसूरत वादियों का लुप्त उठाना चाहते हैं तो अब कश्मीर, शिमला, सिंगापुर या दार्जिलिंग जाने की जरूरत नहीं है। प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने के लिए अब आप आ सकते हैं दुमका।
झारखंड और पश्चिम बंगाल की सीमा पर स्थित मसानजोर डैम के आसपास का इलाका झारखंड में मनोरम पर्यटन केंद्र और पिकनिक स्पॉट के रूप में शुमार रहा है। नये साल व अन्य अवसरों पर काफी तादाद में पर्यटकों के यहां आने का सिलसिला लगा रहता है। 1956 में बने मसानजोर डैम का मनोरम दृश्य और प्राकृतिक सौंदर्य से सुसज्जित पहाड़ी श्रंखलाओं के मनोहारी वादियों का लुप्त उठाने देश विदेश से पर्यटक और सैलानी यहां आते रहे हैं।
पूर्व में बिहार और पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से यहां आने वाले सैलानियों की सुविधा के लिए दो अलग-अलग दो गेस्ट हाउस बनाया गया है। लेकिन खाने-पीने की उचित व्यवस्था और पर्याप्त आवासीय सुविधा नहीं रहने की वजह से पर्यटक यहां ठहर नहीं पाते हैं। झारखंड गठन के बाद से राज्य सरकार मसानजोर डैम और आसपास के इलाके को सजाने संवारने की दिशा में पहल कर रही है।
इसी क्रम में महज कुछ वर्ष पूर्व डैम के किनारे धाजापाड़ा गांव के समीप सुसज्जित झारखंड टूरिस्ट कम्प्लेक्स बनाया गया है। इसके साथ ही पर्यटकों के लिए डैम में वोटिंग की सुविधा शुरू की गयी है।
झारखंड सरकार ने पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए बड़ा कदम उठाया है। सरकार की पहल की वजह से दुमका में इको कॉटेज का निर्माण किया गया है।यहां न सिर्फ लोगों को रहने-खाने की सुविधा है बल्कि पहाड़ों के बीच पानी से भरे डैम के किनारे इको कॉटेज को स्थापित किया गया
है।
कॉटेज तक पहुंचने के लिए पहाड़ काट कर रास्ता भी बनाया गया है। गाड़ी पार्किंग के लिए पेवर बिछाया जा चुका है। वन विभाग के अनुसार यह कॉटेज सैलानियों को निर्धारित किराये पर उपलब्ध कराया जाएगा।
दुमका वन विभाग के सहयोग से बेशकीमती लकड़ियों से निर्मित 16 कॉटेज मे से 11 लकड़ी के कॉटेज बनाए गए हैं। इसके अलावा पांच कॉटेट कंक्रीट से बनाए जा रहे हैं।11 कॉटेज को विदेशी इंडोनेशियन पाइन लकड़ियों से बनाया गया है, जिसे बनाने वक्त प्रदूषण का ख्याल रखा गया है। इस इको कॉटेज में एसी कमरा और अटैच्ड बाथरूम है। यहां आने वाले पर्यटक डैम का आनंद ले पाएंगे।
इको कॉटेज का निर्माण करते हुए वन विभाग ने न केवल प्रदूषण का ख्याल रखा है बल्कि पेड़ों और जंगलों से सटे पहाड़ की सुंदरता को बनाए रखने की पूरी कोशिश की गई है। करीब सात करोड़ रुपये की लागत से निर्मित लकड़ियों से इन इको कॉटेज को बनाया गया है।इको कॉटेज को बनाने मे करीब दो साल का समय लगा है। हालांकि, पहाड़ों के बीच इको कॉटेज को बनाने में वन विभाग को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। विभाग को सबसे अधिक परेशानी बारिश के समय हुई।
हालांकि इस आकर्षक इको कॉटेज का अभी तक विधिवत उद्घाटन नहीं हो सका है। उम्मीद है कि संताल परगना को अपनी कर्मभूमि समझने वाले मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन नये साल जनवरी में इस इको कॉटेज आम जनता को समर्पित करेंगे।