
Deoghar : बेलभरनी पूजा के साथ शाकंभरी दुर्गा शुरू, आज खुलेंगे पूजा मंडपों के पट। जाने शाकंभरी देवी की पौराणिक कथा।
देवघर। बाबा नगरी में रविवार से शाकंभरी दुर्गा पूजा की शुरुआत हो गयी। हर तरफ मां भगवती की आराधना की जा रही है. शहर के दर्जनों जगहों पर मां की प्रतिमा स्थापित कर पूजा का आयोजन किया जा रहा है। बाबा मंदिर के पूर्व द्वार स्थित घड़ीदार मंडप, हरलाजोड़ी, हाथी पहाड़, वीआइपी लॉज सहित कई जगह में शाकंभरी दुर्गा पूजा का आयोजन किया जा रहा है।
कांवरिया पथ स्थित भैरव घाट बेल वन व कटाल वन में शाकंभरी दुर्गा पूजा का आयोजन किया जा रहा है। बेल वन में ब्राह्मण समाज के द्वारा धूमधाम से शाकंभरी दुर्गा पूजा की जा रही है। यहां पर आचार्य दिनेश खवाड़े व पुजारी ललन द्वारी के द्वारा मां भगवती की पूजा की जा रही है। इसे लेकर रविवार को षष्ठी तिथि के अवसर पर बेल वृक्ष के नीचे माता को पूरे विधि विधान के साथ पूजा-अर्चना कर माता को निमंत्रण दिया गया।
सोमवार को महासप्तमी तिथि पर माता को महास्नान करने के पश्चात वेदी पर लाया जायेगा व नवपत्रिका प्रवेश पूजा के साथ ही मां भगवती की प्रतिमा में प्राण-प्रतिष्ठा के साथ पूजा आरंभ की जायेगी। वहीं आज ही आम भक्तों के लिए मंडप के पट खोल दिये जायेंगे।
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार मां शाकम्भरी को आदिशक्ति जगदम्बा देवी दुर्गा का सौम्य अवतार माना जाता है। इस संबंध में एक कथा मिलती है, जिसके अनुसार एक समय जब दुर्गम नामक दैत्य ने पृथ्वी पर भयंकर आतंक का माहौल पैदा किया और इस तरह करीब 100 वर्ष तक वर्षा न होने के कारण चारों तरफ अन्न-जल का अभाव होने से भीषण सूखा पड़ा, जिससे लोग मरने लगे और जीवन खत्म होने लगा था।
दैत्य दुर्गम ने ब्रह्मा जी से चारों वेद चुरा लिए थे। तब आदिशक्ति दुर्गा ही मां शाकम्भरी देवी के रूप में अवतरित हुई, जिनके सौ नेत्र थे। तब उन्होंने रोना शुरू किया, और माता के रोने पर आंसू निकले और इस तरह पूरी धरती में जल का प्रवाह हो गया। फिर अंत में देवी मांय शाकम्भरी दुर्गम दैत्य का अंत कर दिया।
इस संबंध में एक अन्य कथा भी मिलती हैं, उस कथा के अनुसार देवी शाकम्भरी ने 100 वर्षों तक तप किया था और महीने के अंत में एक बार शाकाहारी भोजन कर तप किया था। ऐसी निर्जीव जगह जहां पर 100 वर्ष तक पानी भी नहीं था, वहां पर स्वयं ही पेड़-पौधे उत्पन्न हो गए।
यहां माता का चमत्कार देखने जब साधु-संत आए तो उन्हें शाकाहारी भोजन परोसा गया, जिसका तात्पर्य यह था कि मां शाकम्भरी केवल शाकाहारी भोजन का ही भोग ग्रहण करती हैं। तब इस घटना के बाद से माता का नाम ‘मां शाकम्भरी’ पड़ा। इस देवी के बारे में ऐसी मान्यता भी है।