
Deoghar: पिता और पुत्र – एक दूसरे के पूरक विषयक संगोष्ठी में वक्ताओं ने रखे विचार, सम्मानित हुए विचारक
देवघर में पितृ दिवस पर संगोष्ठी का आयोजन, विचारशील वक्ताओं को किया गया सम्मानित
देवघर। पितृ दिवस के अवसर पर स्थानीय विवेकानंद शैक्षणिक, सांस्कृतिक एवं क्रीड़ा संस्थान के तत्वावधान में दीनबंधु उच्च विद्यालय स्थित रवीन्द्र सभागार में ‘पिता और पुत्र – एक दूसरे के पूरक’ विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर समाजसेवा, शिक्षा और पत्रकारिता से जुड़े कई प्रतिष्ठित वक्ताओं ने अपने विचार रखे और पितृत्व के महत्व को रेखांकित किया।
संगोष्ठी में संत अलफोनसा स्कूल (बांका, बिहार) के शिक्षक देबाशीष मंडल, दीनबंधु उच्च विद्यालय के प्रधानाध्यापक काजल कांति सिकदार, श्रीकृष्णापुरी निवासी सुमन सौरव एवं चितरंजन सिंह, उत्क्रमित उच्च विद्यालय, करंजो (मार्गोमुण्डा) के अवकाशप्राप्त शिक्षक अशोक कुमार साह, तथा पत्रकार अजय संतोषी ने अपनी बातों से श्रोताओं को अभिभूत किया।
वक्ताओं को मदर्स टच स्कूल की निदेशिका डॉ. रूपा वेक्सो इंडिया के संरक्षक प्रो. रामनंदन सिंह, वेक्सो इंडिया के केंद्रीय अध्यक्ष डॉ. प्रदीप कुमार सिंह देव, बीपीजे प्लस टू स्कूल की प्रधानाध्यापिका सुलेखा विश्वास, देवघर सेंट्रल स्कूल के प्राचार्य सुबोध कुमार झा, प्रख्यात अभियंता ई. यमुना प्रसाद लच्छीरामका, तथा होमियोपैथी चिकित्सक डॉ. राम स्वारथ सिंह के करकमलों द्वारा प्रशस्ति पत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर वक्ताओं ने अपने विचार इस प्रकार व्यक्त किए:
डॉ. रूपा ने कहा, “पिताजी संयम और व्यवहार-कुशलता से हर कार्य को सफलतापूर्वक पूरा करते हैं।”
प्रो. रामनंदन सिंह ने कहा, “हर बच्चा अपने पिता से ही जीवन के आवश्यक गुण सीखता है।”
डॉ. प्रदीप कुमार सिंह देव ने कहा, “पिता ज्ञान का ऐसा भंडार हैं, जो कभी समाप्त नहीं होता।”
डॉ. राम स्वारथ सिंह बोले, “पिता हर बात को गंभीरता से लेते हैं और उसका महत्व समझाते हैं।”
सुलेखा विश्वास ने कहा, “पिता अपनी तकलीफें छुपाकर परिवार की हर जरूरत का ख्याल रखते हैं।”
काजल कांति सिकदार ने कहा, “पिताजी हमें कभी हार न मानने की सीख देते हैं।”
सुमन सौरव बोले, “धैर्य और आत्मनियंत्रण पिताजी का सबसे बड़ा गुण है।”
अशोक कुमार साह ने कहा, “पिता परिवार के हर सदस्य और उनकी सेहत को लेकर सजग रहते हैं।”
चितरंजन सिंह ने कहा, “पुत्र का कर्तव्य है माता-पिता की सेवा और देखभाल करना।”
अजय संतोषी ने कहा, “बुढ़ापे में पुत्र को माता-पिता का सहारा बनना चाहिए।”
ई. यमुना प्रसाद लच्छीरामका बोले, “पुत्र को माता-पिता के धार्मिक और सामाजिक कर्तव्यों में सहयोग करना चाहिए।”
कार्यक्रम का समापन सभी प्रतिभागियों के सम्मान और विचारों की सराहना के साथ हुआ। संगोष्ठी में बड़ी संख्या में छात्र, शिक्षक, अभिभावक एवं सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित थे।