
देवघर। झारखंड — मरीजों की सूचना और अस्पताल की जानकारी देने के लिए स्थापित की गई हेल्थ इंफॉर्मेशन कियोस्क मशीनें अब अपनी मूल भूमिका से भटक कर मनोरंजन का माध्यम बन चुकी हैं। रात के समय अस्पताल में भीड़ कम होने पर इनमें यूट्यूब वीडियो और फिल्में चलाई जाती हैं। जबकि इन मशीनों को डॉक्टरों की ड्यूटी रोस्टर, ओपीडी समय, जांच कक्ष की जानकारी और स्वास्थ्य-सम्बंधित वीडियो सामग्री देने के लिए लगाया गया था।
सदर अस्पताल, देवघर में स्वास्थ्य विभाग द्वारा कुल चार हेल्थ इंफॉर्मेशन कियोस्क मशीनें स्थापित की गई थीं। इनका उद्देश्य था कि अस्पताल में आने वाले मरीज और उनके परिजन, बिना पूछताछ, स्वयं टच स्क्रीन द्वारा अस्पताल की सुविधाएं, डॉक्टर तैनाती, दवाओं की उपलब्धता, जांच की स्थिति और अन्य महत्वपूर्ण सूचना प्राप्त कर सकें।
लेकिन अब यह अत्याधुनिक सुविधा उपेक्षा की शिकार हो गई है — मशीनों की जानकारी अपडेट नहीं की जाती, उनमें डेटा नहीं डाला गया या समय-समय पर बंद पड़ी रहती हैं।
समस्या का स्वरूप
1. मशीन बंद पड़ी रहना
कई रिपोर्टों में बताया गया है कि अस्पताल प्रबंधन ने मशीनों को तो इंस्टॉल कर दिया, लेकिन आवश्यक डेटा अपलोड नहीं किया गया। कई बार मशीन बिजली या इंटरनेट कनेक्शन की समस्या के कारण काम नहीं करती।
2. मनोरंजन के लिए उपयोग
रात में जब जनसंख्या कम होती है, तो कियोस्क मशीनों में यूट्यूब वीडियो या फिल्में प्ले कर दी जाती हैं। यह उपयोग उनके असली उद्देश्य से हटकर मनोरंजन की ओर ले जाता है।
3. मरीजों व परिजनों को जानकारी नहीं मिलना
उन समयों में जब मशीनें काम नहीं कर रही हों, मरीजों को डॉक्टर कार्यालय, काउंटर या स्टाफ से पूछताछ करना पड़ता है। इस कारण अस्पताल में आने वालों को भटकना पड़ता है।
4. संचालन व रखरखाव में नकारात्मक रवैया
मशीनों को नियमित रखरखाव, सामग्री अपडेट और निगरानी की आवश्यकता होती है। परंतु, इस पर ध्यान नहीं दिया गया।
क्या कहा अस्पताल प्रशासन ने?
इस विषय पर जब उपाधीक्षक, डॉ. सुषमा वर्मा से बातचीत की गई, तो उन्होंने स्वीकार किया कि उन्हें इस समस्या की “अब जानकारी हुई है” और कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि अस्पताल कर्मियों को निर्देश दिए गए हैं कि कियोस्क मशीनों में पासवर्ड लगवाया जाए और सिर्फ अस्पताल से संबंधित वीडियो व सूचना ही चलायी जाए।
डॉ. वर्मा ने यह भी कहा कि मशीनों में अनधिकृत वीडियो एवं मनोरंजन सामग्री दिखाने वालों पर भी संज्ञान लिया जाएगा।
असर: मरीज और अस्पताल दोनों प्रभावित
मरीजों की असुविधा
जो मूल उद्देश्य था — मरीजों को अस्पताल की सुविधाओं की जानकारी तुरंत उपलब्ध कराना — वह पूरा नहीं हो पा रहा।
कई मरीज और उनके परिचारक समय व ऊर्जा गंवाकर अस्पताल परिसर में भटकते रहते हैं।
अस्पताल संसाधनों पर दबाव
स्टाफ व परिचारकों से पूछताछ करना, सूचना देना, मार्गदर्शन करना — ये अतिरिक्त काम बन जाता है, जो व्यवस्थागत बोझ बढ़ाता है।
विश्वास में गिरावट
जनता अपेक्षा करती है कि सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में आधुनिक और भरोसेमंद व्यवस्था हो। इस तरह की लापरवाही से विश्वास क्षीण हो सकता है।
संभावित समाधान एवं सुझाव
1. डेटा अपडेट और सामग्री प्रबंधन
सभी मशीनों में डॉक्टरों की ड्यूटी रोस्टर, विभागीय जानकारी, जांच कक्ष की स्थिति, दवाइयों की उपलब्धता आदि डेटा नियमित रूप से अपडेट होनी चाहिए।
स्वास्थ्य विभाग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह सामग्री समय-समय पर सत्यापित और प्रमाणित हो।
2. पासवर्ड सुरक्षा एवं कंटेंट लॉक
प्रशासन ने सुझाव दिया कि मशीनों में पासवर्ड सुरक्षा लगाई जाए। साथ ही, केवल अस्पताल व स्वास्थ्य विभाग द्वारा स्वीकृत वीडियो, स्लाइड, सूचना ही चलने दी जाए।
3. नियमित निगरानी और रखरखाव
एक जिम्मेदार तकनीकी टीम को नियुक्त किया जाना चाहिए जो नियमित रूप से मशीन की स्थिति, कनेक्शन, बिजली आपूर्ति, डिस्प्ले स्क्रीन आदि की जाँच करे। दोष या खराबी मिलने पर तत्काल मरम्मत सुनिश्चित हो।
4. प्रशिक्षण एवं जागरूकता
अस्पताल कर्मचारी, परिचारक एवं सुरक्षा गार्ड को यह जानकारी हो कि इन मशीनों का उपयोग कैसे नियंत्रण में रखा जाए।
मरीजों को प्रवेश पर ही यह बताया जाए कि यह सूचना मशीन किस तरह उपयोग कर सकते हैं।
5. नियम और नियंत्रण व्यवस्था
अनधिकृत उपयोग — जैसे कि मनोरंजन वीडियो प्ले करना — को रोकने हेतु स्पष्ट निर्देश, निगरानी एवं दंड व्यवस्था होनी चाहिए।
यदि कोई कर्मचारी या व्यक्ति नियम उल्लंघन करता है, तो उसे चेतावनी या अनुशासनात्मक कार्रवाई का अनुपालन किया जाना चाहिए।
6. लोकप्रियता एवं प्रचार
लोकहित के संदेश, स्वास्थ्य विषयक जागरूकता स्लाइड दिखाने का प्रावधान हो जिससे लोग इस सुविधा का उपयोग करना जानें।
पोस्टर, बैनर, निर्देश स्लाइड आदि द्वारा सार्वजनिक सूचना देना कि “कृपया सिर्फ स्वास्थ्य सूचना ही देखें” आदि।
देवघर सदर अस्पताल में हेल्थ इंफॉर्मेशन कियोस्क मशीनों की स्थापना एक सकारात्मक कदम था, जिसका उद्देश्य मरीजों को त्वरित जानकारी देना था। किन्तु वर्तमान व्यवस्था में ये मशीनें अपनी भूमिका से विचलित होकर मनोरंजन का साधन बन चुकी हैं। यह न केवल मूल उद्देश्य को विफल कर रहा है, बल्कि मरीजों को प्रमाणित जानकारी पाते समय कष्ट भी दे रहा है।
उपाधीक्षक डॉ. सुषमा वर्मा के आश्वासन अनुसार दिशा परिवर्तन हो सकता है; यदि जल्द ही ठीक तरह से कार्यवाही की जाए, पासवर्ड सुरक्षा लागू हो, जानकारी अपडेट की जाए और अनावश्यक कंटेंट पर अंकुश लगे — तो ये मशीनें फिर से उपयोगी, भरोसेमंद और प्रशासनिक सहायक बन सकती हैं।
मरीजों और अस्पताल प्रबंधन दोनों के हित में यह आवश्यक है कि यह समस्या अनदेखी न हो, बल्कि त्वरित सुधार हो।