
रांची। शारदीय नवरात्र का समापन विजयादशमी के अवसर पर हुआ और रांची सहित पूरे झारखंड में मां दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन धूमधाम से किया गया। दशहरा के इस पर्व पर महिलाओं ने परंपरागत सिंदूर खेला (Sindoor Khela 2025) की रस्म निभाई और मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित कर अखंड सौभाग्य, सुख-समृद्धि और परिवार की खुशहाली की कामना की। इस मौके पर शहर के विभिन्न पंडालों में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी।
सिंदूर खेला की परंपरा और महत्व
सिंदूर खेला की रस्म खास तौर पर विवाहित महिलाओं द्वारा निभाई जाती है। विजयादशमी के दिन प्रतिमा विसर्जन से पहले महिलाएं मां दुर्गा की प्रतिमा को सिंदूर चढ़ाती हैं और फिर एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर सौभाग्य की शुभकामना देती हैं। यह रस्म बंगाल और झारखंड में विशेष उत्साह के साथ मनाई जाती है।
रांची के दुर्गा बाड़ी, रातू रोड, चुटिया, कालीबाड़ी, मोरहाबादी मैदान और हरमू स्थित पंडालों में महिलाओं ने इस रस्म में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। हाथों में थाल सजाए, मां दुर्गा को पान, मिठाई और सिंदूर अर्पित किया गया। इसके बाद महिलाओं ने एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर “सदा सुहागन” रहने का आशीर्वाद लिया।
मां दुर्गा को दी गई विदाई
सिंदूर खेला के बाद भक्तों ने मां दुर्गा से अखंड सौभाग्य और कल्याण की प्रार्थना करते हुए जयकारे लगाए – “जय माता दी”, “बोलो दुर्गा माई की जय”। इसके बाद ढोल-नगाड़ों, धुनुचि नृत्य और मंत्रोच्चार के बीच प्रतिमाओं का विसर्जन किया गया। राजधानी रांची की सड़कों पर भक्तों का हुजूम उमड़ पड़ा। जगह-जगह से प्रतिमा विसर्जन के जुलूस निकले, जिनमें युवाओं और महिलाओं की बड़ी संख्या शामिल रही।
नगर निगम और प्रशासन की ओर से विसर्जन के लिए विशेष सुरक्षा व्यवस्था की गई थी। घाटों पर एनडीआरएफ और गोताखोरों की टीमें तैनात थीं।
धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से खास दिन
विजयादशमी न सिर्फ रावण दहन और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, बल्कि यह दिन शक्ति उपासना का भी खास अवसर है। मान्यता है कि इस दिन मां दुर्गा अपने मायके से विदा होकर कैलाश पर्वत लौटती हैं। विदाई से पहले उन्हें सिंदूर अर्पित करने से सौभाग्य और परिवार पर देवी की विशेष कृपा बनी रहती है।
रांची के कई पंडालों में इस अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए गए। बच्चों और युवाओं ने पारंपरिक नृत्य और गीत प्रस्तुत किए।
भक्ति और भावनाओं का संगम
सिंदूर खेला का दृश्य बेहद भावुक कर देने वाला था। जहां एक ओर महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर गले मिल रही थीं, वहीं कई की आंखें नम थीं क्योंकि यह मां दुर्गा को विदा करने का समय था। कई महिलाएं कहती सुनी गईं कि – “मां दुर्गा अगले साल फिर जल्दी आइए।”
झारखंड की राजधानी ही नहीं, बल्कि धनबाद, जमशेदपुर, बोकारो, देवघर और हजारीबाग सहित कई जिलों में दुर्गा पूजा पंडालों में यही नजारा देखने को मिला।
पर्यावरण संरक्षण का संदेश
इस बार दुर्गा पूजा समितियों ने पर्यावरण संरक्षण को लेकर भी विशेष पहल की। कई जगह इको-फ्रेंडली मूर्तियां बनाई गईं और विसर्जन के लिए कृत्रिम तालाब का उपयोग किया गया। इससे नदियों और तालाबों को प्रदूषण से बचाने में मदद मिली।
नगर निगम की ओर से सफाई अभियान चलाया गया ताकि विसर्जन के बाद शहर में गंदगी न फैले।
महिलाओं की भागीदारी और सामाजिक संदेश
सिंदूर खेला न सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह महिला सशक्तिकरण और सामाजिक जुड़ाव का प्रतीक भी माना जाता है। विवाहित महिलाओं ने एक-दूसरे को सौभाग्य और समृद्धि की शुभकामनाएं देते हुए सामाजिक एकता का संदेश दिया।
रांची की पूजा समिति से जुड़ी एक महिला ने कहा – “यह परंपरा हमें एक-दूसरे से जोड़ती है और बताती है कि मिलजुल कर त्योहार मनाना ही भारतीय संस्कृति की पहचान है।”
अगले साल फिर लौटेंगी मां दुर्गा
जैसे ही प्रतिमाओं का विसर्जन हुआ, भक्तों की आंखें नम हो गईं। ढोल-नगाड़ों की थाप और भक्तों के जयकारों के बीच यह भावनात्मक विदाई पूरे शहर में गूंज उठी। भक्तों ने एक स्वर में कामना की कि मां दुर्गा अगले साल पुनः अपने भक्तों के घर आएं और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद दें।