
पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर में एक भयावह अपराध ने राज्य में महिला सुरक्षा की गंभीर समस्या को फिर से उजागर कर दिया है। एक निजी मेडिकल कॉलेज की दूसरी वर्ष की छात्रा, जो डिनर के बाद लौट रही थी, को अज्ञात चार-पांच युवकों ने रास्ता रोककर अगवा किया और अस्पताल परिसर से सटे जंगल क्षेत्र में ले जाकर उस पर सामूहिक बलात्कार किया। यह घटना न केवल छात्रा और उसके परिवार के जीवन को अभूतपूर्व सदमे में डालती है, बल्कि सामाजिक व शैक्षणिक संस्थानों की सुरक्षा व्यवस्था पर भी प्रश्न चिन्ह खड़ा करती है।
घटना समय और स्थान
बुधवार (या शुक्रवार) की रात लगभग 8:30 बजे, छात्रा अपने एक मित्र (पुरुष) के साथ डिनर या फुचका-गोलगप्पे लेने के लिए कॉलेज से बाहर निकली थी।
कॉलेज गेट के पास ही कुछ युवक पीछे आकर उनका पीछा करने लगे। मित्र को पीछे हटाया गया और छात्रा को जबरन पकड़कर अस्पताल के पीछे एक सटे जंगल या अछूते क्षेत्र में खींचा गया।
वहाँ उस पर सामूहिक बलात्कार किया गया और मोबाइल फोन छीन लिया गया।
बाद में छात्रा को घोर चोटों के साथ अस्पताल में भर्ती कराया गया।
शिकायत और पुलिस कार्रवाई
छात्रा के परिवार ने स्थानीय पुलिस थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई।
पुलिस ने अस्पताल प्रशासन व कॉलेज स्टाफ से पूछताछ शुरू की है और घटना स्थल की फॉरेंसिक एवं सीलबंद सर्वे की तैयारी कर रही है।
अभी तक किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी नहीं हुई है।
पीड़िता और परिवार की प्रतिक्रिया
छात्रा ओड़िशा की मूल निवासी है।
परिवार ने बताया कि उन्हें घटना की सूचना छात्रा के मित्रों द्वारा दी गई।
पिता का आरोप है कि कॉलेज में सुरक्षा व्यवस्था न के बराबर है और इस तरह की घटना से पूरी संस्था की विश्वसनीयता दाव पर है।
उन्होंने कहा कि जैसे ही उनकी बेटी स्वस्थ हो जाए, वे उसे कॉलेज छोड़कर वापस ले जाना चाहेंगे, क्योंकि अब वे उसे सुरक्षित महसूस नहीं करते।
पृष्ठभूमि और सन्दर्भ
पिछले कुछ वर्षों में पश्चिम बंगाल में छात्रों, खासकर महिला छात्रों, पर होने वाले यौन अपराधों की घटनाएं बढ़ी हैं।
2024 में कोलकाता के आरजी कर कॉलेज अस्पताल में एक महिला डॉक्टर से दुष्कर्म एवं हत्या की घटना ने पूरी चिकित्सा बिरादरी और जनता को झकझोर दिया था।
इस घटना ने अस्पतालों, कॉलेज परिसरों व मेडिकल संस्थानों में सुरक्षा उपायों की कमी को उजागर किया।
इसी तरह हाल ही में दक्षिण कोलकाता के एक लॉ कॉलेज परिसर में एक छात्रा पर कथित रूप से गैंगरेप भी हुआ था।
विशेषकर चिकित्सा क्षेत्र में, महिलाएं न सिर्फ क्लिनिकल कार्य के दौरान जोखिम में आती हैं, बल्कि शैक्षणिक गतिविधियों के दौरान भी सुरक्षा का अभाव देखने को मिलता है।
सुरक्षा चुनौतियाँ और आलोचना
कॉलेज व अस्पताल सुरक्षा व्यवस्था की खामियाँ
घटना स्थल कैंपस के बाहर ही था। इससे यह स्पष्ट होता है कि सुरक्षा कैमरे, गश्ती दल या कोई संवेदनशील सुरक्षा तंत्र वहाँ नहीं था।
कॉलेज प्रशासन पर यह आरोप है कि उन्होंने समय रहते चेतावनी स्तर नहीं बढ़ाया और उचित सुरक्षा प्रोटोकॉल नहीं अपनाए।
न्याय प्रक्रिया की धीमी गति एवं न्याय में विश्वास की कमी
पिछली घटनाओं में अभियुक्तों की त्वरित गिरफ्तारी न होना और मामलों में देरी न्याय व्यवस्था पर सार्वजनिक विश्वास को कमजोर करती है।
कुछ मामलों में आरोपियों की राजनीतिक या सामाजिक संरक्षण का शक भी उठता है।
मानसिक व सामाजिक दबाव
इस तरह की घटनाएँ न केवल पीड़िता पर गहरा मानसिक सदमा छोड़ती हैं, बल्कि परिवार व समुदाय में डर और शर्म का माहौल बनाती हैं।
सामाजिक कलंक व शमशान की भी आशंका बनी रहती है, जिससे पीड़ित अक्सर न्याय नहीं मांग पाती।
प्रतिक्रिया और मांगें
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया
विरोधी दल एवं महिला सुरक्षा समूहों ने राज्य सरकार और पुलिस प्रशासन पर तीखी प्रतिक्रिया दी है और निष्पक्ष त्वरित जांच की मांग की है।
भाजपा की स्थानीय इकाइयों ने आरोप लगाया है कि प्रदेश सरकार अपराधियों को संरक्षण देती है।
राष्ट्रीय आयोग महिला (NCW) और अन्य महिला अधिकार संगठन इस घटना को विशेष संज्ञान में लेकर तत्काल हस्तक्षेप की मांग कर रहे हैं।
मेडिकल बिरादरी की आवाज़
चिकित्सक एवं मेडिकल छात्रों का कहना है कि यदि अस्पताल परिसर व कॉलेज परिसरों में सुरक्षा गाइडलाइन न हों तो महिलाओं को स्वास्थ्य शिक्षा प्राप्त करना भी खतरनाक हो जाता है।
मीडिया व जनमत दबाव
मीडिया रिपोर्टिंग व जनसंवाद के माध्यम से इस तरह की घटनाओं को उजागर करना एक दबाव कारक के रूप में काम करता है, जिससे प्रशासन को निष्पक्ष जांच व कार्रवाई करनी पड़ती है।
दुर्गापुर की यह घटना एक घोर त्रासदी है, लेकिन इसे केवल एक और अपराध कहना पर्याप्त नहीं होगा। यह संकेत करती है कि सामाजिक, शैक्षणिक एवं प्रशासनिक तंत्रों में सुधार की सख्त आवश्यकता है।
कुछ सुझाव:
1. सुरक्षा बुनियादें मजबूत करना
कॉलेज एवं अस्पताल परिसर में चौबीसों घंटे सीसीटीवी कैमरा, पैट्रोलिंग, पर्याप्त प्रकाश व्यवस्था और विशेष सुरक्षा दल तैनात किया जाना चाहिए।
प्रवेश व निकास बिंदुओं पर चेकिंग एवं गेट पास व्यवस्था सुनिश्चित हो।
2. आपात प्रतिक्रिया एवं हेल्पलाइन
महिलाओं व छात्राओं के लिए इमरजेंसी कॉल बटन, SOS ऐप व हेल्पलाइन नंबर हों।
समयबद्ध पुलिस और महिला सुरक्षा बल की पहुँच सुनिश्चित हो।
3. मानसिक स्वास्थ्य और कानूनी सहायता
पीड़ितों को तत्काल मनोवैज्ञानिक व कानूनी समर्थन उपलब्ध कराना चाहिए ताकि वे दबाव में न आएँ।
विशेष वकील, महिला सेल व पीड़ित सहायता केंद्र सक्रिय होने चाहिए।
4. निपुण अनुभवों व सर्वश्रेष्ठ प्रथाएँ अपनाना
अन्य राज्यों या देशों में कॉलेज-अस्पताल सुरक्षा प्रोटोकॉल, महिला सुरक्षा मॉडल लागू कर वेनियों की समीक्षा की जानी चाहिए।
5. निरंतर निगरानी व जवाबदेही
प्रशासन, पुलिस व कॉलेज प्रबंधन को समय-समय पर समीक्षा तथा जनता को जवाबदेह बनाना चाहिए।
यदि यह घटना राज्य व केन्द्र सरकार के संज्ञान में नहीं आ पाती, तो अपराधियों में हौसला बढ़ेगा और महिलाओं की सुरक्षा को गंभीर खतरा होगा। न्यायपालिका, प्रशासन, शैक्षणिक संस्थान और समाज—सभी को मिलकर इस प्रकार की घटनाओं को रोकने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।