
नई दिल्ली। भारत की युवा शतरंज खिलाड़ी दिव्या देशमुख ने फिडे महिला वर्ल्ड कप 2025 में इतिहास रच दिया है। महज 19 साल की उम्र में दिव्या ने दिग्गज कोनेरू हम्पी को हराकर खिताब अपने नाम कर लिया। इस जीत के साथ ही वह 88वीं भारतीय ग्रैंडमास्टर भी बन गई हैं। यह मुकाबला भारतीय शतरंज के लिए बेहद गौरवपूर्ण रहा क्योंकि पहली बार वर्ल्ड कप के फाइनल में दो भारतीय महिला खिलाड़ी आमने-सामने थीं।
इस ऐतिहासिक जीत के बाद देशभर से दिव्या को बधाइयां मिल रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर खेल मंत्री और अन्य कई बड़ी हस्तियों ने उन्हें शुभकामनाएं दीं। दिव्या देशमुख की यह उपलब्धि ना सिर्फ उनके करियर की सबसे बड़ी सफलता है बल्कि भारतीय महिला शतरंज के इतिहास में भी स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हो गई है।
भारत को मिला नया सितारा
दिव्या देशमुख, जिनकी उम्र अभी सिर्फ 19 साल है, नागपुर, महाराष्ट्र की रहने वाली हैं। उन्होंने बचपन से ही शतरंज में गहरी रुचि दिखाई और बहुत कम उम्र में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट्स में शानदार प्रदर्शन किया। उनकी यह जीत ना सिर्फ उनके व्यक्तिगत प्रयासों का नतीजा है, बल्कि यह भारत की शतरंज की गहराई और भविष्य की मजबूत नींव को भी दर्शाता है।
फाइनल मुकाबले में दिव्या ने धैर्य, रणनीति और चतुराई का बेहतरीन प्रदर्शन किया। कोनेरू हम्पी जैसी अनुभवी खिलाड़ी के खिलाफ खेलते हुए दिव्या ने शानदार खेल भावना और मानसिक दृढ़ता का परिचय दिया। उन्होंने ओपनिंग से लेकर एंडगेम तक मैच पर नियंत्रण बनाए रखा।
फाइनल मुकाबला: अनुभव बनाम जोश
फिडे महिला वर्ल्ड कप 2025 के फाइनल को “अनुभव बनाम जोश” की टक्कर कहा जा सकता है। कोनेरू हम्पी, जो पिछले दो दशकों से भारत की शीर्ष महिला शतरंज खिलाड़ी रही हैं, फाइनल में अपने अनुभव के बल पर आई थीं। दूसरी ओर, दिव्या देशमुख एक युवा खिलाड़ी के रूप में इस बड़े मंच पर पहली बार फाइनल में पहुंची थीं।
फाइनल मुकाबला रोमांचक रहा। दोनों खिलाड़ियों ने गहरी रणनीतियों का इस्तेमाल किया। हालांकि, अंत में दिव्या की आक्रामक लेकिन संतुलित चालों ने उन्हें बढ़त दिलाई और वह मुकाबला जीतने में सफल रहीं। इस जीत के साथ उन्होंने कोनेरू हम्पी को पछाड़कर खिताब अपने नाम कर लिया।
कोनेरू हम्पी: हार में भी सम्मान
कोनेरू हम्पी भले ही यह मुकाबला हार गईं, लेकिन उनके प्रदर्शन की सराहना हर ओर हो रही है। वह टूर्नामेंट में पूरे आत्मविश्वास के साथ खेलती रहीं और फाइनल तक पहुंचीं। हम्पी की यह यात्रा भारतीय शतरंज में उनकी अहमियत को फिर से रेखांकित करती है। उनकी मौजूदगी से युवाओं को प्रेरणा मिलती है और दिव्या देशमुख जैसी प्रतिभाओं को तैयार होने का अवसर मिलता है।
ग्रैंडमास्टर बनने की राह
इस खिताबी जीत के साथ ही दिव्या देशमुख भारत की 88वीं ग्रैंडमास्टर बन गई हैं। यह उपलब्धि उन्हें फिडे की निर्धारित ग्रैंडमास्टर नॉर्म्स और रेटिंग पॉइंट्स को हासिल करने के बाद मिली। ग्रैंडमास्टर का खिताब शतरंज में सर्वोच्च व्यक्तिगत मान्यता होती है और इसे हासिल करना किसी भी खिलाड़ी के करियर की बड़ी उपलब्धि मानी जाती है।
भारतीय शतरंज का स्वर्णकाल
दिव्या देशमुख की जीत भारतीय शतरंज के स्वर्णकाल की ओर इशारा करती है। बीते कुछ वर्षों में भारत ने कई युवा ग्रैंडमास्टर्स दिए हैं। डी गुकेश, प्रज्ञानानंद, आर वैशाली, और अब दिव्या देशमुख जैसे खिलाड़ी भारतीय शतरंज को नई ऊंचाइयों पर ले जा रहे हैं।
इस जीत ने यह साबित कर दिया है कि भारत अब सिर्फ पुरुष खिलाड़ियों तक सीमित नहीं है, बल्कि महिला शतरंज में भी देश विश्व स्तरीय प्रदर्शन करने लगा है। इससे पहले भी हम्पी, हरिका द्रोणावल्ली जैसी दिग्गज खिलाड़ियों ने भारतीय महिला शतरंज को अंतरराष्ट्रीय मानचित्र पर स्थापित किया है।
राजनीतिक और खेल जगत की प्रतिक्रियाएं
दिव्या की इस ऐतिहासिक जीत पर पूरे देश ने जश्न मनाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर दिव्या को बधाई दी और कहा कि “भारत को तुम पर गर्व है। यह जीत देश की बेटियों के लिए प्रेरणास्रोत है।” खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने भी दिव्या के संघर्ष और मेहनत की सराहना की।
शतरंज फेडरेशन ऑफ इंडिया (AICF) के अध्यक्ष ने दिव्या को ‘भारत की शतरंज रानी’ बताया और कहा कि यह जीत पूरे देश के लिए गर्व की बात है।
अब जब दिव्या देशमुख ग्रैंडमास्टर बन चुकी हैं और वर्ल्ड कप जीत चुकी हैं, तो उनका अगला लक्ष्य कैंडिडेट्स टूर्नामेंट्स और विश्व चैम्पियनशिप की ओर बढ़ना होगा। उनकी इस सफलता ने देशभर के युवा खिलाड़ियों को यह दिखा दिया है कि अगर लगन और मेहनत हो, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं।
दिव्या देशमुख की यह जीत केवल एक खिताब नहीं है, यह भारत के उभरते हुए युवाओं की जीत है। यह दिखाता है कि सही मार्गदर्शन, मेहनत और आत्मविश्वास से कोई भी शिखर हासिल किया जा सकता है। आने वाले वर्षों में दिव्या देशमुख भारतीय शतरंज की नई पहचान बन सकती हैं।