नई दिल्ली: देश की न्याय व्यवस्था से जुड़े सबसे महत्वपूर्ण पदों में से एक, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी. आर. गवई ने सेवानिवृत्ति के कुछ ही दिनों बाद अपने ऊपर लगे आरोपों और न्यायपालिका से जुड़े बड़े मुद्दों पर खुलकर बात की है। इंडिया टुडे/आजतक को दिए गए एक विशेष इंटरव्यू में उन्होंने न सिर्फ अपने फैसलों को लेकर उठे सवालों का जवाब दिया, बल्कि उन आरोपों पर भी स्पष्ट प्रतिक्रिया दी, जिनमें उन्हें “एंटी-हिंदू” कहा गया था।

जस्टिस गवई ने साफ शब्दों में कहा कि “मुझे एंटी-हिंदू कहना पूरी तरह गलत था। मेरे फैसलों को धर्म से जोड़कर देखा गया, जबकि मेरा हर निर्णय संविधान और कानून की कसौटी पर आधारित था।” उन्होंने कहा कि न्यायपालिका में बैठा कोई भी जज धर्म, जाति या समुदाय के आधार पर फैसले नहीं करता—और न ही उसे ऐसा करने की अनुमति है।
‘एंटी-हिंदू’ कहे जाने पर गवई का जवाब
गवई ने इंटरव्यू में कहा कि एक जज के तौर पर वह हमेशा निष्पक्ष रहे। कुछ निर्णयों को सोशल मीडिया या राजनीतिक मंचों पर गलत तरह से प्रस्तुत किया गया, जिसके बाद उन्हें “एंटी-हिंदू” जैसे नामों से संबोधित किया गया।
उन्होंने कहा कि यह आरोप न केवल गलत था बल्कि पूरी तरह आधारहीन भी।
उनके अनुसार, किसी जज को उसके फैसलों के आधार पर धार्मिक चश्मे से देखना बेहद खतरनाक है और इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
गवई ने कहा—
“मेरी पहचान एक हिंदू या गैर-हिंदू होने की नहीं है। मेरी पहचान एक जज की है जिसने संविधान की शपथ ली है।”
सरकार से कोई पद नहीं लेने की पुष्टि
इंटरव्यू में सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि पूर्व CJI ने साफ कर दिया कि वह सेवानिवृत्ति के बाद सरकार से कोई भी पद या जिम्मेदारी नहीं लेंगे।
उन्होंने स्पष्ट कहा—
“मैं रिटायरमेंट के बाद किसी भी सरकारी पद में दिलचस्पी नहीं रखता। ना मुझे ऑफर मिला है और अगर मिला भी तो मैं नहीं लूंगा।”
यह बयान इसलिए भी अहम है क्योंकि कई बार आरोप लगे हैं कि कुछ जज सरकार से जुड़े पदों को ध्यान में रखते हुए फैसले देते हैं। गवई के इस बयान को न्यायपालिका की पारदर्शिता और स्वतंत्रता के संदर्भ में देखा जा रहा है।
फैसलों पर उठे सवाल और उनकी सफाई
इंटरव्यू के दौरान जब उनसे पूछा गया कि कुछ हाई-प्रोफाइल मामलों में उनके फैसलों को लेकर क्यों विवाद हुआ, उन्होंने कहा कि जज का काम लोगों को खुश करना नहीं, बल्कि कानून को लागू करना है।
उन्होंने कहा कि निर्णयों का राजनीतिक रूप से इस्तेमाल किया जाता है, जिसके कारण कभी-कभी गलत नैरेटिव बन जाता है।
गवई का कहना था कि—
“कई बार जजमेंट पढ़ा भी नहीं जाता और उसके आधार पर राजनीति शुरू हो जाती है। ऐसे माहौल में जजों पर दबाव बनता है, लेकिन हमें संविधान की रक्षा करनी होती है।”
सोशल मीडिया ट्रायल पर नाराजगी
जस्टिस गवई ने ‘सोशल मीडिया ट्रायल’ को भारतीय न्याय प्रणाली के लिए सबसे बड़ी चुनौती बताया। उनका मानना है कि ट्विटर, फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म पर बिना तथ्य जांचे जजों और फैसलों पर हमले किए जाते हैं, जिससे लोगों के बीच भ्रम फैलता है।
उन्होंने कहा कि न्यायपालिका की छवि को सोशल मीडिया गलत तरीके से प्रभावित कर रहा है और इस पर समाज को गंभीरता से सोचना होगा।
न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर जोर
गवई ने कहा कि भारत की न्यायपालिका हमेशा से स्वतंत्र रही है और आगे भी रहेगी। उन्होंने बताया कि जजों की नियुक्ति, फैसलों की प्रक्रिया और संविधान की मर्यादा को किसी भी प्रकार का राजनीतिक दबाव प्रभावित नहीं कर सकता।
उन्होंने कहा कि रिटायरमेंट के बाद पद लेने से कई बार गलत संदेश जाता है, इसलिए उन्होंने स्वयं यह फैसला लिया कि वह किसी भी सरकारी जिम्मेदारी को नहीं संभालेंगे।
जनता के विश्वास की मजबूती पर बल
पूर्व CJI ने माना कि हाल के वर्षों में न्यायपालिका पर सवाल उठे हैं, लेकिन इसके बावजूद जनता का भरोसा अदालतों पर सबसे अधिक है। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को आलोचना से डरना नहीं चाहिए, लेकिन आरोपों को तथ्यों के आधार पर ही लगाया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा—
“भारत की जनता न्यायपालिका पर विश्वास करती है। इस भरोसे को बनाए रखना ही हर जज का धर्म है।”
उनकी टिप्पणी ने क्यों बढ़ाई राजनीतिक हलचल?
गवई के इस बयान को राजनीतिक रूप से भी अहम माना जा रहा है क्योंकि उनके कार्यकाल के दौरान कई संवेदनशील मामलों पर सुनवाई हुई।
उन पर आरोप लगे कि कुछ फैसले कथित रूप से सरकार के पक्ष में गए तो कुछ विपक्ष के नजरिए से विवादित थे।
इसी कारण उन्हें कई बार “एंटी-हिंदू” और दूसरी ओर “प्रो-गवर्नमेंट” दोनों तरह के आरोपों का सामना करना पड़ा।
गवई ने दोनों ही आरोपों को गलत बताया और कहा कि वह केवल संविधान के प्रति जवाबदेह हैं।
जस्टिस बी. आर. गवई का यह इंटरव्यू कई मायनों में महत्वपूर्ण है।
उन्होंने न केवल अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों का जवाब दिया, बल्कि यह भी संदेश दिया कि न्यायपालिका को धर्म और राजनीति के चश्मे से देखना देश के लिए खतरनाक है।
उनकी यह टिप्पणी—
“मुझे एंटी-हिंदू कहना पूरी तरह गलत है”
एक स्पष्ट संकेत है कि वह अपने करियर और फैसलों पर पूरी तरह संतुष्ट हैं और उन्हें किसी पद या सुविधा की लालसा नहीं है।
