गाजियाबाद। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में वायु प्रदूषण का स्तर लगातार चिंताजनक बना हुआ है, मगर इस बार गाजियाबाद ने सभी शहरों को पीछे छोड़कर देश का सबसे प्रदूषित शहर बनने का दुर्भाग्यपूर्ण रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया। शहर का वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 422 तक पहुंच गया, जो गंभीर (Severe) श्रेणी में आता है। इससे साफ है कि गाजियाबाद की आबोहवा में सांस लेना तक मुश्किल होता जा रहा है।

गुरुवार को जारी विभिन्न प्रदूषण निगरानी स्टेशनों की रिपोर्ट के अनुसार, गाजियाबाद ने दिल्ली, नोएडा, फरीदाबाद और गुरुग्राम जैसे शहरों को भी पीछे छोड़ दिया। जहां NCR के अन्य शहरों में AQI 350 से 380 के बीच दर्ज हुआ, वहीं गाजियाबाद का सूचकांक 422 तक पहुंचकर खतरनाक स्तर पर पहुंच गया। यह स्तर मानव स्वास्थ्य पर तत्काल और दीर्घकालिक दोनों तरह के प्रभाव डाल सकता है।
विशेषज्ञों के अनुसार प्रदूषण के इस भयावह स्तर के पीछे प्रमुख कारण सड़कों पर उड़ती धूल, कचरे को जलाने की बढ़ती घटनाएँ, ट्रैफिक का भारी दबाव और निर्माण कार्यों में लापरवाही है। गाजियाबाद में इंडस्ट्रियल एरिया भी बड़ी संख्या में हैं, जिनसे निकलने वाला धुआं प्रदूषण की स्थिति को और खराब कर देता है।
सड़कों की धूल बनी सबसे घातक कारक
गाजियाबाद की मुख्य सड़कों—जैसे मौदीनगर रोड, डासना, विजयनगर, इंदिरापुरम और लोनी क्षेत्र—में धूल उड़ने की घटनाएं सबसे अधिक देखी जा रही हैं। कई सड़कों पर रिपेयर का काम अधूरा पड़ा है, जिससे धूल उठकर हवा में घुलती रहती है। प्रशासन ने वॉटर स्प्रे और एंटी-स्मॉग गन लगाने की बात कही थी, मगर इनका इस्तेमाल सीमित रूप से ही हो रहा है।
नगर निगम की रिपोर्ट के अनुसार शहर में प्रतिदिन औसतन 40-50 टन धूल हवा में घुल रही है, जो AQI को गंभीर श्रेणी में धकेलने का सबसे बड़ा कारण है। सड़क पर जमा धूल में सिलिका, कार्बन पार्टिकल्स और भारी धातुएं मौजूद होती हैं, जो फेफड़ों को सीधा नुकसान पहुँचाती हैं।
कूड़े में लगाई जाने वाली आग ने बढ़ाई मुश्किलें
गाजियाबाद के लोनी, मोहन नगर, साहिबाबाद, विवेकानंद नगर और कई कॉलोनियों में कूड़े को नियमित रूप से जलाने की घटनाएं सामने आती रहती हैं। जहां-जहां नगर निगम की कूड़ा उठाने की व्यवस्था सुस्त है, वहीं लोगों द्वारा कूड़ा जलाने की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है। इस कूड़े में प्लास्टिक, रबर और पॉलीथिन की मात्रा अधिक रहती है, जो जलने पर जहरीला धुआं छोड़ती है।
पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि कूड़ा जलाने से बनने वाला धुआं PM2.5 और PM10 पार्टिकल्स का सबसे बड़ा स्रोत है। ये इतने बारीक होते हैं कि आसानी से फेफड़ों और रक्तधारा तक पहुँच जाते हैं। WHO की रिपोर्ट के अनुसार PM2.5 का बढ़ना हृदय रोग, दमा, ब्रॉन्काइटिस और यहां तक कि कैंसर तक की आशंका को बढ़ा देता है।
वाहनों का धुआं और ट्रैफिक जाम से बढ़ता खतरा
गाजियाबाद में प्रतिदिन लाखों वाहन दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बीच आवाजाही करते हैं। एनएच-9, एनएच-58 और दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे पर वाहन संख्या लगातार बढ़ रही है। ट्रैफिक जाम के दौरान वाहनों के लंबे समय तक चालू रहने से निकलने वाला धुआं प्रदूषण की स्थिति को और खराब कर देता है।
ट्रांसपोर्ट विभाग के अनुसार गाजियाबाद में हर साल लगभग 70,000 नए वाहन पंजीकृत हो रहे हैं, लेकिन यातायात नियंत्रण उतनी तेजी से मजबूत नहीं हो पाया। यही कारण है कि ट्रैफिक से उड़ती धूल और वाहनों का धुआं मिलकर हवा को और जहरीला कर देता है।
मौसम भी बना प्रदूषण का सहयोगी
सर्दियों की शुरुआत के साथ हवा की गति धीमी हो जाती है, जिससे प्रदूषक ऊपर नहीं उठ पाते और जमीन के पास ही जमा हो जाते हैं। तापमान गिरने और हवा के ठहराव के कारण स्मॉग की चादर और घनी होती जा रही है। पिछले एक हफ्ते से सुबह और शाम के समय शहर स्मॉग की परत से ढका दिखाई देता है।
मौसम विभाग का कहना है कि अगले कुछ दिनों तक हवा की गति कम रहेगी, जिससे प्रदूषण का स्तर और बढ़ सकता है। यदि सर्दी और गहराती है, तो AQI 450 के पार भी जा सकता है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने जारी की चेतावनी
डॉक्टरों का कहना है कि AQI 400 से ऊपर जाने पर हर व्यक्ति को सांस लेने में समस्या हो सकती है। बच्चों, बुजुर्गों और अस्थमा के मरीजों पर इसका सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है। शहर के अस्पतालों में पिछले कुछ दिनों से सांस से जुड़ी शिकायतों में 30% तक की वृद्धि दर्ज की गई है।
डॉक्टरों ने सुझाव दिया है
सुबह और रात में बाहर निकलने से बचें
N95 मास्क का इस्तेमाल करें
घर में एयर प्यूरीफायर का उपयोग करें
ज्यादा पानी पिएं और भाप लें
बच्चों को पार्क व खुले मैदानों में खेलने से रोकें
प्रशासन की कार्रवाई—कथनी ज्यादा, करनी कम
प्रदूषण रोकने के लिए जिला प्रशासन और नगर निगम ने कई घोषणाएं की थीं, जिनमें सड़क की सफाई, वॉटर स्प्रिंकलर, एंटी-स्मॉग गन, कूड़े को न जलाने पर जुर्माना, औद्योगिक प्रदूषण नियंत्रण आदि शामिल हैं। मगर हकीकत यह है कि जमीन पर इन उपायों का असर बहुत कम दिखाई देता है।
कई इलाकों के लोगों ने शिकायत की है कि एंटी-स्मॉग गन सप्ताह में केवल एक-दो बार ही सक्रिय रहती है। वहीं कूड़ा जलाने वालों पर कार्रवाई बेहद सीमित है।
जनता में बढ़ती नाराज़गी
निवासियों का कहना है कि हर साल अक्टूबर से दिसंबर के बीच प्रदूषण गंभीर स्तर पर पहुंच जाता है लेकिन प्रशासन की ओर से कोई ठोस और स्थायी समाधान नहीं लाया गया।
कई लोगों ने सोशल मीडिया पर यह भी लिखा कि “शहर में सांस लेना मुश्किल हो गया है, लेकिन अधिकारी सिर्फ मीटिंग कर रहे हैं।”
समाधान क्या है?
विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है—
सड़क की नियमित मशीनरी सफाई
कूड़ा जलाने वालों पर सख्त जुर्माना
निर्माण स्थलों पर कवर और पानी का छिड़काव
औद्योगिक क्षेत्र में प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों का पालन
सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा
हरियाली का विस्तार
