
“दादा की अय्याशी ने जला दी विरासत, पोते ने चिता के पास कराया मुजरा!”
बनारस में 200 बीघा ज़मीन अय्याशी में गंवा दी, बची-खुची जमीन भी पोते ने बेच दी – विरासत का शर्मनाक अंत
बनारस। वक्त ने करवट बदली, लेकिन कहानी ने जो मोड़ लिया वो पूरे बनारस में चर्चा का विषय बन गया। एक समय पर शहर के नामचीन ज़मींदार कहे जाने वाले स्व. हरिनारायण सिंह ने अपनी ज़िन्दगी की चमक-दमक में 200 बीघा पुश्तैनी ज़मीन का दीवाला निकाल दिया। महफिलें सजती रहीं, मुजरे होते रहे, और विरासत की ईंट दर ईंट बिखरती चली गई।
अब जब अंत आया, तो दादा की चिता के पास उनके पोते ने ऐसा ‘श्रद्धांजलि समारोह’ कराया कि बनारस की हवा तक शर्मसार हो गई। गुस्साए पोते ने बची-खुची मात्र पौने दो बीघा ज़मीन भी बेच डाली और उस रकम से चिता के पास ही एक अंतिम मुजरा करवा दिया—एक तरह से ‘बर्बादी की विरासत’ का अंतिम अध्याय।
स्थानीय लोगों की प्रतिक्रियाएं मिली-जुली रहीं।
कुछ ने इसे दादा की करनी का फल बताया, तो कुछ ने पोते की सोच पर सवाल उठाया। लेकिन सबकी जुबान पर एक ही बात रही—”अगर दादा ने विरासत को सहेजा होता, तो आज चिता के पास ये तमाशा न होता।”
विशेषज्ञों का मत:
सामाजिक विश्लेषक डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी कहते हैं, “यह घटना एक प्रतीक है उस पीढ़ी के पतन की, जिसने मेहनत से कमाई विरासत को मौज में गवां दिया, और अगली पीढ़ी ने उसे बदले की भावना से दफन कर दिया।”
निष्कर्ष:
यह कहानी सिर्फ एक परिवार की नहीं, बल्कि उन तमाम घरानों की चेतावनी है, जहां धन है लेकिन दृष्टि नहीं। जहां जड़ें हैं, लेकिन समझ की कमी है।