
अमेरिका में रोजगार आधारित वीज़ा नीति एक बार फिर सुर्खियों में है। ट्रंप प्रशासन ने संकेत दिए हैं कि H-1B और L-1 वीज़ा नियमों को और कड़ा किया जा सकता है। इसके लिए अमेरिकी सीनेट में तीन सीनेटरों ने विधेयक पेश किया है, जिसका उद्देश्य अमेरिकी श्रमिकों के हितों की रक्षा करना और वीजा प्रोग्राम की कथित खामियों को दूर करना बताया जा रहा है।
यह कदम खासकर भारतीय IT पेशेवरों और कंपनियों पर गहरा असर डाल सकता है, क्योंकि हर साल जारी होने वाले H-1B वीजा का बड़ा हिस्सा भारतीय तकनीकी विशेषज्ञों को मिलता है। इसी तरह L-1 वीजा का उपयोग भी बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने विदेशी कर्मचारियों को अमेरिका भेजने में करती हैं। ऐसे में नए नियम भारतीय आईटी उद्योग और वैश्विक प्रतिभा प्रवाह को प्रभावित कर सकते हैं।
H-1B वीजा क्या है और क्यों है महत्वपूर्ण?
H-1B वीजा एक गैर-आप्रवासी वीजा है, जिसके जरिए अमेरिकी कंपनियां विशेष कौशल वाले विदेशी पेशेवरों को नौकरी पर रख सकती हैं। यह वीजा मुख्य रूप से आईटी, इंजीनियरिंग, मेडिकल, फाइनेंस और रिसर्च जैसे क्षेत्रों के लिए दिया जाता है।
हर साल 85,000 H-1B वीजा जारी किए जाते हैं, जिनमें से लगभग 70% भारतीय पेशेवरों को मिलते हैं। यही कारण है कि इस वीजा में किसी भी तरह का बदलाव भारत जैसे देशों के लिए बेहद अहम हो जाता है।
L-1 वीजा क्या है?
L-1 वीजा उन कर्मचारियों के लिए होता है जिन्हें किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी द्वारा अमेरिका में उसके दफ्तर, ब्रांच या सहयोगी कंपनी में भेजा जाता है। यह वीजा आईटी, मैनेजमेंट और कॉर्पोरेट सेक्टर में काफी प्रचलित है।
भारतीय कंपनियां जैसे इंफोसिस, टीसीएस, विप्रो और टेक महिंद्रा इस वीजा का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करती हैं।
नए विधेयक का उद्देश्य
अमेरिकी सीनेट में पेश किए गए विधेयक का दावा है कि H-1B और L-1 वीजा प्रोग्राम का दुरुपयोग रोकना जरूरी है। सीनेटरों का कहना है कि कई कंपनियां कम लागत पर विदेशी कर्मचारियों को नियुक्त करती हैं, जिससे अमेरिकी नागरिकों के रोजगार के अवसर घटते हैं।
विधेयक के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं –
1. H-1B और L-1 वीजा धारकों की भर्ती प्रक्रिया को और पारदर्शी बनाना।
2. कंपनियों पर यह साबित करने की जिम्मेदारी डालना कि उन्होंने अमेरिकी नागरिकों को प्राथमिकता दी।
3. वेतन संरचना में सुधार करना ताकि विदेशी पेशेवरों को उचित भुगतान मिले और अमेरिकी कर्मचारियों के साथ वेतन प्रतिस्पर्धा न हो।
4. वीजा की अवधि और नवीनीकरण प्रक्रिया को सख्त करना।

भारतीय IT सेक्टर पर असर

भारतीय IT सेक्टर पर असर
भारतीय आईटी कंपनियां लंबे समय से अमेरिकी बाजार पर निर्भर रही हैं। इनकी बड़ी आय वहां के प्रोजेक्ट्स से होती है। H-1B और L-1 वीजा सख्त होने से –
भारतीय कंपनियों की कास्टिंग बढ़ जाएगी, क्योंकि उन्हें स्थानीय अमेरिकी कर्मचारियों को अधिक वेतन पर नियुक्त करना पड़ सकता है।
भारतीय आईटी पेशेवरों के रोजगार अवसर सीमित हो सकते हैं।
आउटसोर्सिंग पर रोक जैसी स्थितियां पैदा हो सकती हैं।
छोटे और मध्यम स्तर की कंपनियों को सबसे ज्यादा नुकसान होगा।
कौन-कौन से देश प्रभावित होंगे?
सबसे ज्यादा असर भारत, चीन और फिलीपींस जैसे देशों पर होगा, जहां से बड़ी संख्या में आईटी और अन्य प्रोफेशनल्स अमेरिका जाते हैं। भारत का नाम इसमें सबसे ऊपर है क्योंकि हर साल जारी होने वाले H-1B वीजा का सबसे बड़ा हिस्सा भारतीयों को मिलता है।
क्यों कर रही है ट्रंप सरकार बदलाव की तैयारी?
ट्रंप प्रशासन का मानना है कि अमेरिकी नौकरी बाजार पर विदेशी कर्मचारियों का दबाव बढ़ गया है। स्थानीय कर्मचारियों की शिकायत रही है कि उन्हें समान काम के लिए कम अवसर और कम वेतन मिल रहा है।
“अमेरिका फर्स्ट” नीति के तहत ट्रंप सरकार ने कई बार वीजा नियमों को लेकर सख्ती दिखाई है। इस नए विधेयक से ट्रंप प्रशासन अपने वोट बैंक को साधने और घरेलू श्रमिकों को प्राथमिकता देने की रणनीति पर काम कर रहा है।
भारत की चिंता और रणनीति
भारत सरकार ने हमेशा इस मुद्दे को अमेरिकी प्रशासन के सामने उठाया है। भारत का तर्क है कि भारतीय आईटी कंपनियां न केवल अमेरिका में नौकरियां पैदा करती हैं, बल्कि वहां की अर्थव्यवस्था को भी मजबूत बनाती हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर नियम बहुत सख्त होते हैं तो भारतीय कंपनियां यूरोप, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और खाड़ी देशों की ओर रुख कर सकती हैं।
आर्थिक और वैश्विक असर
अमेरिका में टैलेंट की कमी और महंगे श्रम की स्थिति बन सकती है।
भारत जैसे देशों में आईटी कंपनियों के मुनाफे पर असर पड़ेगा।
अमेरिकी कंपनियों को ग्लोबल स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने में मुश्किल हो सकती है।
टेक सेक्टर की ग्रोथ पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
H-1B और L-1 वीजा नियमों को सख्त करने की तैयारी न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए बड़ा मुद्दा है। जहां एक ओर अमेरिका अपने श्रमिकों की सुरक्षा की बात कर रहा है, वहीं दूसरी ओर इससे वैश्विक आईटी सेक्टर में अनिश्चितता बढ़ सकती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले महीनों में यदि यह विधेयक कानून का रूप ले लेता है, तो भारतीय पेशेवरों और कंपनियों को बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा