
Healthnews: 2-3 साल का बच्चा अगर नहीं बोलता तो जाने इसके पीछे के कारण और समाधान क्या हैं?
बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, लेकिन कई बार कुछ पहलुओं में देरी देखने को मिलती है, जिनमें से एक है—बोलने की क्षमता। सामान्यतः 2 से 3 वर्ष की उम्र तक बच्चे कुछ शब्द बोलने, छोटे वाक्य कहने और अपनी ज़रूरतों को ज़ाहिर करने लगते हैं। परंतु यदि इस उम्र में बच्चा बोलना शुरू नहीं करता, तो यह ‘स्पीच डिले’ यानी वाणी विकास में देरी का संकेत हो सकता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, इसके कई कारण हो सकते हैं। सबसे पहला कारण हो सकता है कि बच्चा ठीक से सुन नहीं पा रहा हो। बार-बार कान में संक्रमण या जन्मजात सुनने की समस्या इसके पीछे हो सकती है। यदि बच्चा सुन ही नहीं पा रहा, तो वह बोलने की कोशिश भी नहीं करेगा।
दूसरा प्रमुख कारण हो सकता है—ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD)। यदि बच्चा आंख मिलाकर बात नहीं करता, नाम पुकारने पर प्रतिक्रिया नहीं देता, सामाजिक संपर्क से बचता है या एक ही चीज़ को बार-बार दोहराता है, तो यह लक्षण ऑटिज्म से जुड़े हो सकते हैं। ऐसे मामलों में केवल बोलने की देरी नहीं, बल्कि सम्पूर्ण व्यवहार में अंतर देखा जा सकता है।
तीसरा कारण विकास में सामान्य देरी भी हो सकता है। हर बच्चा एक जैसी गति से विकसित नहीं होता। कुछ बच्चे देर से लेकिन स्थिर रूप से आगे बढ़ते हैं। कई बार घरेलू वातावरण भी इसका कारण बनता है। यदि बच्चे के आसपास बोलचाल का वातावरण नहीं है, या वह दिनभर टीवी या मोबाइल पर व्यस्त रहता है, तो उसकी भाषा सीखने की प्रक्रिया बाधित हो सकती है। इसके अलावा, जीभ की बनावट में गड़बड़ी, जैसे ‘टंग-टाई’, या तालू की संरचना में समस्या होने से भी बच्चा स्पष्ट बोलने में असमर्थ हो सकता है।
समाधान के रूप में सबसे पहले बच्चे की सुनने की क्षमता की जांच करानी चाहिए। किसी योग्य ENT विशेषज्ञ से ऑडियोलॉजी टेस्ट करवाएं। यदि सुनाई ठीक देता है, तो स्पीच थैरेपिस्ट की मदद लें। स्पीच थेरेपी के माध्यम से बच्चे को बोलने और समझने की क्षमता धीरे-धीरे विकसित की जाती है। घर पर बच्चे के साथ अधिक से अधिक संवाद करें, कहानी-कविताएं सुनाएं और उसे नाम, रंग, संख्या जैसे शब्द सिखाने की कोशिश करें। ध्यान रखें कि मोबाइल और टीवी का सीमित उपयोग ही करें, क्योंकि ये एकतरफा माध्यम होते हैं, जिनसे बच्चा संवाद करना नहीं सीख पाता।
समय पर पहचान और उचित हस्तक्षेप से अधिकतर बच्चे सामान्य बोलने लगते हैं। आवश्यक है कि माता-पिता जल्द घबराएं नहीं, बल्कि धैर्य और सहयोग के साथ समाधान की दिशा में कदम उठाएं।
स्पष्ट है कि प्रत्येक बच्चे का विकास अलग होता है, लेकिन यदि आप समय रहते सजग रहते हैं, तो भविष्य में बड़ी समस्याओं से बचा जा सकता है।
(Disclaimer):
यह लेख सामान्य जागरूकता के लिए है। किसी भी प्रकार की चिकित्सकीय स्थिति में विशेषज्ञ बाल रोग चिकित्सक या स्पीच थैरेपिस्ट की सलाह अवश्य लें।