बिहार की राजनीति: सत्ता, समीकरण और बदलते जनादेश का भविष्य।

परिचय। बिहार की राजनीति हमेशा से देशभर में चर्चा का विषय रही है। जातीय समीकरण, गठबंधन की राजनीति, परिवारवाद और विकास का मुद्दा—इन सबके बीच बिहार का राजनीतिक परिदृश्य हर कुछ वर्षों में करवट लेता है। 2025 के विधानसभा चुनाव की ओर बढ़ते बिहार में एक बार फिर से राजनीतिक सरगर्मी तेज़ है। विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों ही अपनी रणनीति को नए सिरे से गढ़ रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बिहार की जनता फिर से पुराने चेहरे पर भरोसा करेगी या कोई नया राजनीतिक विकल्प उभरेगा?

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

बिहार की राजनीति का इतिहास जातीय और सामाजिक समीकरणों पर आधारित रहा है। स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस का दबदबा लंबे समय तक कायम रहा। लेकिन 1990 के दशक में मंडल राजनीति ने नया समीकरण पैदा किया। लालू प्रसाद यादव ने “समाजवाद” और “सामाजिक न्याय” की राजनीति को आधार बनाया। इसके बाद नीतीश कुमार उभरे जिन्होंने सुशासन और विकास का एजेंडा सामने रखकर लंबे समय तक सत्ता पर पकड़ बनाए रखी।

आज की राजनीति में वही पुराना जातीय गणित अब भी असरदार है, लेकिन युवा पीढ़ी रोजगार, शिक्षा और अवसरों की राजनीति चाहती है। यही बदलाव आने वाले समय में बिहार की दिशा तय करेगा।

वर्तमान राजनीतिक स्थिति

आज बिहार की राजनीति में मुख्य मुकाबला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) और महागठबंधन (RJD, कांग्रेस, वामदल आदि) के बीच है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बार-बार पाला बदलने और राजनीतिक संतुलन साधने की कला के लिए जाने जाते हैं। वहीं, तेजस्वी यादव युवा नेतृत्व के रूप में उभर रहे हैं।

NDA पक्ष: भाजपा और जेडीयू साथ हैं। भाजपा राज्य में अपनी पकड़ बढ़ाने की कोशिश में है, जबकि नीतीश कुमार अपनी छवि को बचाने में जुटे हैं।

महागठबंधन पक्ष: आरजेडी के नेतृत्व में विपक्ष बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार के मुद्दों को भुनाने की रणनीति बना रहा है।

अन्य दल: छोटे दल जैसे वीआईपी, एचएएम और वाम दल भी अपने-अपने प्रभाव वाले इलाकों में सक्रिय हैं।

जातीय समीकरण की अहमियत

बिहार की राजनीति जातीय आधार पर चलती आई है। यादव, कुर्मी, ब्राह्मण, भूमिहार, दलित और मुस्लिम वोट बैंक हमेशा चुनावी नतीजों को प्रभावित करते रहे हैं।

यादव और मुस्लिम मतदाता पारंपरिक रूप से आरजेडी के साथ रहे हैं।

कुर्मी और अति पिछड़े वर्ग नीतीश कुमार की ताकत रहे हैं।

सवर्ण और शहरी वोट बैंक भाजपा के साथ जाता है।

लेकिन अब इन समीकरणों में धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है। युवा मतदाता जातीयता से हटकर रोजगार और विकास की राजनीति की ओर झुक रहे हैं।

विकास बनाम जातीयता

नीतीश कुमार ने अपने शासनकाल में “सुशासन बाबू” की छवि बनाई थी। सड़क, बिजली और शिक्षा सुधार जैसे कामों से जनता का भरोसा जीता। लेकिन हाल के वर्षों में रोजगार, पलायन और स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली ने जनता को निराश किया है।

तेजस्वी यादव ने 2020 के विधानसभा चुनाव में “10 लाख नौकरी” देने का वादा कर युवाओं को आकर्षित किया था। आज भी यह मुद्दा बिहार की राजनीति में सबसे बड़ा आकर्षण है।

आने वाले विधानसभा चुनाव की संभावनाएँ

2025 का विधानसभा चुनाव बिहार के लिए निर्णायक साबित हो सकता है।

1. यदि नीतीश कुमार और भाजपा का गठबंधन मजबूती से चुनाव लड़ता है तो सत्ता बरकरार रख सकते हैं।

2. यदि तेजस्वी यादव बेरोजगारी और शिक्षा के मुद्दे पर जनता को जोड़ने में सफल होते हैं, तो सत्ता परिवर्तन संभव है।

3. छोटे दलों और वामपंथी पार्टियों की भूमिका त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में किंगमेकर की हो सकती है।

परिवारवाद और युवाओं की राजनीति

बिहार की राजनीति में परिवारवाद हमेशा हावी रहा है। लालू प्रसाद यादव के परिवार से लेकर नीतीश कुमार की पार्टी तक, हर जगह परिवारवाद पर आरोप लगते रहे हैं। लेकिन सोशल मीडिया और जागरूकता के दौर में युवा मतदाता इस प्रवृत्ति को अब चुनौती देने लगे हैं।

विपक्ष की रणनीति

महागठबंधन फिलहाल भाजपा और जेडीयू सरकार को घेरने के लिए

बेरोजगारी

महंगाई

किसानों की समस्याएँ

शिक्षा और स्वास्थ्य

जैसे मुद्दों पर हमलावर है।

तेजस्वी यादव अपनी छवि को एक जिम्मेदार नेता के तौर पर पेश करने में लगे हैं, जबकि कांग्रेस और वामदल अपनी जमीन मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं।

सत्ता पक्ष की रणनीति

भाजपा और जेडीयू अपनी उपलब्धियों को जनता तक पहुँचाने की योजना बना रहे हैं।

प्रधानमंत्री आवास योजना

सड़क, बिजली, शौचालय जैसी योजनाएँ

महिला सशक्तिकरण और शराबबंदी जैसे कदम
को जनता के बीच पेश किया जाएगा।

हालांकि शराबबंदी कानून पर विपक्ष लगातार सवाल उठाता रहा है, क्योंकि इसके कारण अवैध शराब कारोबार और अपराध की घटनाएँ बढ़ी हैं।

मीडिया और सोशल मीडिया की भूमिका

बिहार की राजनीति अब केवल रैलियों और भाषणों तक सीमित नहीं है।

सोशल मीडिया पर प्रचार

यूट्यूब और फेसबुक लाइव

ट्विटर (X) ट्रेंड

युवा मतदाताओं तक पहुँचने का सबसे बड़ा माध्यम बन गए हैं।
भाजपा इस क्षेत्र में पहले से सक्रिय है, जबकि आरजेडी भी अब डिजिटल रणनीति अपना रही है।

 

बिहार की राजनीति एक ऐसे चौराहे पर खड़ी है जहाँ परंपरागत जातीय राजनीति और नई पीढ़ी की आकांक्षाओं के बीच टकराव है। रोजगार, शिक्षा और विकास की मांग लगातार बढ़ रही है। यदि राजनीतिक दल इन मुद्दों को ईमानदारी से सामने लाते हैं तो बिहार का भविष्य उज्ज्वल हो सकता है।

2025 का चुनाव न सिर्फ बिहार बल्कि पूरे देश की राजनीति को प्रभावित करेगा, क्योंकि यहाँ का जनादेश आने वाले लोकसभा चुनावों की दिशा तय कर सकता है। बिहार के मतदाता हमेशा अप्रत्याशित फैसले देते रहे हैं और यही लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है।

 

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