देवघर, झारखंड — देवघर शहर के प्रसिद्ध नंदन पहाड़ स्थित सार्वजनिक चित्रगुप्त मंदिर में इस बार चित्रांश समाज के लोगों द्वारा भव्य चित्रगुप्त पूजा का आयोजन किया जा रहा है। भगवान चित्रगुप्त की विधिवत पूजा-अर्चना के साथ-साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम और बिरादरी भोज की तैयारी पूरी कर ली गई है। चित्रगुप्त पूजा, जो हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर मनाई जाती है, इस बार देवघर में खास आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। मंदिर परिसर को फूलों और रंग-बिरंगी रोशनी से सजाया गया है, जिससे पूरा वातावरण भक्तिमय और उल्लासपूर्ण बन गया है।
भक्तिभाव और उत्साह का माहौल
सुबह से ही चित्रांश समाज के सदस्य मंदिर में पूजा की तैयारी में जुटे रहे। भगवान चित्रगुप्त की प्रतिमा के समक्ष श्रद्धालुओं ने पूजन सामग्री, कलम-दवात, खाता-बही और लेखनी अर्पित की। पूजा विधि-विधान से पंडितों द्वारा की गई। इस दौरान महिलाओं ने मंगलगीत गाए, और बच्चे भी उत्साहपूर्वक पूजा में शामिल हुए।
मंदिर परिसर में भगवान चित्रगुप्त की भव्य आरती के बाद वातावरण ‘जय चित्रगुप्त भगवान की जय’ के जयकारों से गूंज उठा। पूजा उपरांत प्रसाद वितरण की व्यवस्था की गई है ताकि हर भक्त भगवान के आशीर्वाद का लाभ उठा सके।
सांस्कृतिक कार्यक्रम में दिखेगी चित्रांश परिवार की प्रतिभा
सांझ ढलते ही नंदन पहाड़ स्थित आडिटोरियम में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा। इस कार्यक्रम में चित्रांश परिवार के बच्चों, युवाओं, महिलाओं और पुरुषों द्वारा गीत, नृत्य और नाट्य प्रस्तुति दी जाएगी। सांस्कृतिक कार्यक्रम में समाज के इतिहास, संस्कृति और परंपरा को मनोरंजक रूप में प्रस्तुत किया जाएगा। आयोजकों के अनुसार, इस मंच के माध्यम से नई पीढ़ी को भगवान चित्रगुप्त की शिक्षाओं और कर्म के महत्व से अवगत कराने का प्रयास किया जा रहा है।
कार्यक्रम का संचालन चित्रांश समाज की युवा टीम द्वारा किया जाएगा, जिसमें बच्चों को प्रोत्साहन देने के लिए विशेष पुरस्कार भी दिए जाएंगे।
बिरादरी भोज से बढ़ेगी सामाजिक एकता
भक्तिमय कार्यक्रमों के बाद बिरादरी भोज का आयोजन भी किया गया है। इसमें समाज के सभी वर्गों के लोग एक साथ बैठकर भोजन करेंगे। आयोजकों का मानना है कि ऐसे आयोजन सामाजिक एकता और भाईचारे को मजबूत करते हैं। मंदिर समिति ने बताया कि भोज की तैयारी भी पूरी कर ली गई है। साफ-सफाई, पेयजल और भोजन वितरण की जिम्मेदारी स्वयंसेवकों को दी गई है।
पूजा की तैयारी में जुटे रहे समाज के सदस्य
पूजा और कार्यक्रम की तैयारी को लेकर सार्वजनिक चित्रगुप्त मंदिर समिति ने बीते कई दिनों से योजनाबद्ध तरीके से काम किया है।
इस अवसर पर मंदिर के अध्यक्ष विनय कुमार सिन्हा, सचिव शशि भूषण निराला, कोषाध्यक्ष नंदन कुमार, निर्मल प्रकाश दीपक, सोना सिन्हा, राघवेंद्र सिन्हा, विल्सन सिन्हा, श्याम सहाय, राजेश प्रसाद सहित समाज के सैकड़ों सदस्य जुटे रहे। सभी ने मिलकर मंदिर की सजावट, कार्यक्रम के प्रबंधन, प्रसाद वितरण और सांस्कृतिक आयोजन की तैयारियों को अंतिम रूप दिया।
मंदिर समिति का कहना
मंदिर समिति के अध्यक्ष विनय कुमार सिन्हा ने बताया —
“भगवान चित्रगुप्त न्याय और कर्म के प्रतीक हैं। समाज में सत्य, निष्ठा और परिश्रम का महत्व समझाने के लिए यह पूजा बहुत आवश्यक है। इस बार देवघर के चित्रांश परिवार ने इसे और भी भव्य रूप देने का निर्णय लिया है।”
वहीं, सचिव शशि भूषण निराला ने कहा कि —
“पूजा और कार्यक्रम का उद्देश्य सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि समाज के युवा वर्ग में एकता और संस्कारों का प्रसार करना है।”
भगवान चित्रगुप्त कौन हैं?
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, भगवान चित्रगुप्त को यमराज के सहयोगी और ‘लेखाकार देवता’ कहा जाता है। वे प्रत्येक जीव के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं और मृत्यु के बाद न्याय करते हैं।
चित्रांश समाज के लोग, जो पारंपरिक रूप से लेखन, प्रशासन और शिक्षा से जुड़े रहे हैं, उन्हें भगवान चित्रगुप्त का वंशज मानते हैं।
देवघर में चित्रांश समाज का योगदान
देवघर में चित्रांश समाज न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक क्षेत्र में भी सक्रिय भूमिका निभा रहा है। हर वर्ष वे शिक्षा, समाजसेवा, और सांस्कृतिक जागरूकता से जुड़े कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
इस बार का आयोजन भी उसी परंपरा की एक झलक है, जिसमें धर्म, संस्कृति और सामाजिकता का सुंदर संगम देखने को मिलेगा।
शाम को जगमगाएगा नंदन पहाड़
शाम होते ही नंदन पहाड़ का दृश्य और भी आकर्षक बनने वाला है। रंग-बिरंगी लाइटों, फूलों की सजावट और भक्तों की भीड़ के बीच यह स्थल देवघर का नया आकर्षण केंद्र बनेगा। सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान मंच पर बच्चों के नृत्य और गीतों के साथ-साथ समाज के वरिष्ठजन भी सम्मानित किए जाएंगे।
देवघर का नंदन पहाड़ इन दिनों भक्ति और सांस्कृतिक उत्साह से सराबोर है। चित्रांश समाज द्वारा आयोजित यह चित्रगुप्त पूजा न सिर्फ धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक है बल्कि समाज में एकता, संस्कृति और परंपरा के संरक्षण का संदेश भी देती है।
