देशभर में स्कूली छात्रों की सुरक्षा को लेकर नई बहस तब छिड़ गई, जब पिछले कुछ दिनों में देश के तीन अलग-अलग शहरों—मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली—में तीन नाबालिग छात्रों ने आत्महत्या जैसा चौंकाने वाला कदम उठा लिया। इन तीनों घटनाओं ने न सिर्फ माता-पिता और समाज को झकझोर दिया है, बल्कि यह भी सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर स्कूलों में ऐसा क्या हो रहा है जिससे बच्चे इतना बड़ा फैसला लेने पर मजबूर हो रहे हैं? क्या स्कूल वाकई छात्रों के लिए सुरक्षित हैं? और क्या हमारी शिक्षा प्रणाली बच्चों पर ऐसा दबाव बना रही है जिसे वे झेल नहीं पा रहे?

मध्य प्रदेश: 14 वर्षीय छात्रा ने हॉस्टल रूम में की खुदकुशी
मध्य प्रदेश के एक प्रतिष्ठित आवासीय स्कूल में 14 वर्षीय बच्ची की आत्महत्या की खबर ने पूरे राज्य को हिला दिया। शुरुआती जांच में पता चला है कि बच्ची लंबे समय से मानसिक तनाव से गुजर रही थी। परिजनों का आरोप है कि स्कूल प्रबंधन ने बच्चे की समस्याओं को गंभीरता से नहीं लिया और न ही काउंसलिंग जैसी कोई सहायता उपलब्ध कराई।
स्थानीय प्रशासन के अनुसार, कमरे से कोई सुसाइड नोट बरामद नहीं हुआ, लेकिन सहपाठियों ने बताया कि वह पिछले कुछ दिनों से ‘लगातार रो रही थी’ और ‘किसी बात को लेकर डरी हुई थी’। पुलिस ने स्कूल प्रशासन से कड़े सवाल पूछे हैं और प्रबंधन की जिम्मेदारी की जांच जारी है।
राजस्थान: परीक्षा प्रेशर और अनुशासनात्मक कार्रवाई ने बढ़ाया तनाव
दूसरी घटना राजस्थान के एक कोचिंग हब माने जाने वाले शहर में सामने आई, जहां 16 वर्षीय छात्र ने आत्महत्या कर ली। परिवार का दावा है कि वह प्री-बोर्ड परीक्षा के दबाव के कारण तनाव में था। वहीं कुछ सहपाठियों ने बताया कि हाल ही में स्कूल ने उसकी मामूली गलती पर कठोर अनुशासनात्मक नोटिस जारी किया था, जिसके बाद वह बेहद डर गया था।
विशेषज्ञों का मानना है कि लगातार बढ़ते कॉम्पिटिशन और टॉप करने का दबाव किशोर छात्रों पर भारी पड़ रहा है। खासकर वे विद्यार्थी जो घर से दूर रहकर पढ़ाई करते हैं, उन्हें मनोवैज्ञानिक सपोर्ट की जरूरत ज्यादा होती है।
राजस्थान सरकार ने मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं और शिक्षा विभाग से एक विस्तृत रिपोर्ट मांगी है।
दिल्ली: 13 वर्षीय छात्र ने स्कूल में हो रहे बुलिंग से तंग आकर जान दी
तीसरी घटना दिल्ली में हुई, जहां 13 वर्षीय छात्र ने कथित रूप से स्कूल में हो रही बुलिंग और अभद्र व्यवहार से तंग आकर खुदकुशी कर ली। परिवार का आरोप है कि स्कूल प्रबंधन को कई बार शिकायत की गई, लेकिन स्कूल ने समस्या को नजरअंदाज किया और ‘लड़कों में ऐसी छोटी-मोटी नोकझोंक’ कहकर मामला टाल दिया।
दिल्ली बाल अधिकार आयोग ने इस घटना को बेहद गंभीर मानते हुए स्कूल को नोटिस जारी कर दिया है। आयोग ने कहा है कि किसी भी स्कूल में बुलिंग को ‘सामान्य व्यवहार’ मानना कानूनन गलत है और यह बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डालता है।
क्या स्कूल बच्चों के लिए सुरक्षित हैं?
इन तीन घटनाओं ने शिक्षा व्यवस्था और स्कूल प्रबंधन की जिम्मेदारियों पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं।
विशेषज्ञों की मानें तो भारत में स्कूल सुरक्षा मॉडल अभी भी ‘फिजिकल सुरक्षा’ तक सीमित है — जैसे सुरक्षा गार्ड, CCTV, आईडी कार्ड आदि — जबकि वास्तविक चुनौती ‘मानसिक सुरक्षा’ की है, जिसे गंभीरता से नहीं लिया जाता।
कई मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि छात्रों के भीतर जमा होने वाला मानसिक तनाव, बुलिंग, परीक्षा प्रेशर, पैरेंटल एक्सपेक्टेशन, सोशल मीडिया का प्रभाव और भविष्य को लेकर डर, ये सभी कारण मिलकर बच्चा भावनात्मक रूप से बेहद कमजोर कर देते हैं।
काउंसलिंग की भारी कमी
भारत में अधिकांश स्कूलों में फुल-टाइम काउंसलर या मनोवैज्ञानिक उपलब्ध नहीं हैं।
लगभग 70% स्कूलों में न तो मानसिक स्वास्थ्य पर कोई प्रोग्राम है और न ही छात्रों की नियमित काउंसलिंग का सिस्टम है।
यही कारण है कि बच्चों की समस्याएं समय रहते सामने नहीं आतीं और कई बार घटनाएँ चरम पर पहुँच जाती हैं।
माता-पिता की भूमिका भी महत्वपूर्ण
इन घटनाओं के बाद विशेषज्ञों ने कहा है कि माता-पिता को बच्चों पर अनावश्यक दबाव नहीं डालना चाहिए। बच्चों से बातचीत, उनके मन की बातें सुनना, उनके व्यवहार में आने वाले अचानक बदलाव को पहचानना—ये सभी बेहद जरूरी हैं।
अक्सर बच्चे अपने अंदर के डर, तनाव और गुस्से को घरवालों से छुपा लेते हैं और उस स्थिति में स्कूल की निगरानी और काउंसलिंग की जरूरत और भी बढ़ जाती है।
सरकारें क्या कर सकती हैं?
तीनों घटनाओं के बाद यह स्पष्ट है कि अब शिक्षा विभाग को बच्चे की ‘मानसिक सुरक्षा’ को भी सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी। विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि—
हर स्कूल में अनिवार्य काउंसलर नियुक्त किए जाएँ
छात्रों की समय-समय पर मानसिक स्वास्थ्य जांच हो
बुलिंग रोकने के लिए सख्त गाइडलाइन लागू की जाए
परीक्षा आधारित दबाव को कम करने के लिए नए मूल्यांकन मॉडल अपनाए जाएँ
हॉस्टल और कोचिंग संस्थानों के लिए भी सुरक्षा मानक तय किए जाएँ
समाज के लिए चेतावनी
तीनों घटनाएँ एक चेतावनी हैं कि बच्चे भावनात्मक रूप से कितने संवेदनशील होते हैं और दबाव में आने पर वे कितने खतरनाक कदम उठा सकते हैं।
यह सिर्फ तीन परिवारों की त्रासदी नहीं है—यह पूरे समाज के लिए एक बड़ा अलार्म है कि बच्चों को सुरक्षित, समझदार और संवेदनशील वातावरण देने का समय अब निकल चुका है।
