भारतीय क्रिकेट टीम के लिए टेस्ट क्रिकेट हमेशा से ताकत माना जाता रहा है। लंबे समय तक टीम इंडिया ने घरेलू परिस्थितियों में विपक्षी टीमों को घुटनों पर लाकर अपनी बादशाहत कायम रखी। लेकिन पिछले डेढ़ साल में तस्वीर बदलती दिखाई दे रही है। गौतम गंभीर की कोचिंग में टीम इंडिया का टेस्ट प्रदर्शन लगातार नीचे गया है, जिससे टीम मैनेजमेंट, चयन समिति और फैंस में चिंताओं का माहौल है।

ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि गौतम गंभीर के कार्यकाल में भारत ने अब तक 19 टेस्ट मुकाबले खेले हैं। इनमें से भारत केवल 7 बार जीत सका, जबकि 10 मैचों में हार का सामना करना पड़ा और 2 मुकाबले ड्रॉ पर खत्म हुए। इस अवधि में भारत का जीत प्रतिशत सिर्फ 36.82% रहा, जो पिछले एक दशक के किसी भी भारतीय कोचिंग कार्यकाल की तुलना में काफी कम है।
टेस्ट मैचों में घरेलू मजबूती टीम इंडिया की पहचान थी, लेकिन गंभीर की स्ट्रैटेजियों के तहत भारत ने दो बार घरेलू सीरीज़ में क्लीन स्वीप हार झेली है। यह पहली बार है जब टीम इंडिया ने इतने कम समय में घरेलू टेस्ट सीरीज़ में ऐसा खराब प्रदर्शन दिखाया है।
घरेलू टेस्ट में गिरावट सबसे बड़ा संकेत
भारत ने पिछले कई वर्षों में घरेलू मैदानों पर अपनी पकड़ मजबूत रखी थी। चाहे इंग्लैंड हो, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका या न्यूज़ीलैंड हर टीम भारत आकर जूझती रही है। लेकिन हालिया टेस्ट परिणामों ने साफ संकेत दिया कि कहीं न कहीं टीम संतुलन, रणनीति और खिलाड़ी चयन में समस्याएँ हैं।
गौतम गंभीर की कोचिंग में भारत ने दो घरेलू टेस्ट सीरीज़ पूरी तरह गंवाईं, जो कि पिछले 20 वर्षों में लगभग असंभव माना जाता था।
विशेषज्ञों का मानना है कि घरेलू पिचों को लेकर बार-बार की गई प्रयोगधर्मिता, टीम कॉम्बिनेशन में लगातार बदलाव और गेंदबाजों पर अत्यधिक निर्भरता भारत के रास्ते में बाधा बनी है।
बदला हुआ बैटिंग ऑर्डर और फेल होता प्रयोग
टेस्ट क्रिकेट में भारत की दूसरी सबसे बड़ी समस्या बल्लेबाजी का ढहना रहा है। जूनियर खिलाड़ियों को मौके देने के लिए किए गए प्रयोग कई बार उल्टा पड़ गए। कई मैचों में भारत के शीर्ष क्रम ने शुरुआती विकेट जल्दी गंवा दिए, जिससे टीम दबाव में आ गई।
बल्लेबाज़ी की कमजोरी इस तरह दिखी कि 7 जीतों में से कम से कम 3 मुकाबले ऐसे थे जहां गेंदबाजों ने मैच को बचाया, जबकि अधिकांश हारों की वजह खराब बल्लेबाजी रही।
तुलना की जाए तो गंभीर के कार्यकाल से पहले भारत का टेस्ट बल्लेबाज़ी औसत लगातार शीर्ष 3 में रहा था, लेकिन पिछले सीज़न में यह तेजी से गिरकर मध्य क्रम को औसत से नीचे ले गया।
गेंदबाजी की ताकत भी कमजोर पड़ने लगी
भारत का तेज गेंदबाजी अटैक पिछले कुछ वर्षों में दुनिया में टॉप माना जाता था। लेकिन चोटों और रोटेशन पॉलिसी ने गेंदबाजी को भी कमजोर किया।
अनुभवी गेंदबाजों की कमी और युवा गेंदबाजों की अनुभवहीनता ने टीम के प्रदर्शन पर असर डाला।
स्पिन विभाग भी उथल-पुथल से गुज़रा। पिचों पर बदलाव के कारण स्पिनर्स का असर लगातार कम हुआ, और विपक्षी टीमों ने आसानी से भारतीय पिचों पर रन बनाए।
रणनीति पर उठ रहे सवाल
कई क्रिकेट विश्लेषकों और पूर्व खिलाड़ियों ने गंभीर की रणनीतियों पर सवाल उठाए हैं।
उनका कहना है कि गंभीर की शैली आक्रामक है, लेकिन टेस्ट क्रिकेट में आक्रामकता के साथ स्थिरता और धैर्य दोनों जरूरी होते हैं।
कुछ प्रमुख मुद्दे:
टीम कॉम्बिनेशन में लगातार बदलाव
सीनियर खिलाड़ियों को कम मौके
डेब्यू खिलाड़ियों की अधिक संख्या
पिचों पर अधिक प्रयोग
रक्षात्मक फील्ड सेटिंग
हार के बाद गलतियों का विश्लेषण न होना
विराट कोहली, रोहित शर्मा और रविचंद्रन अश्विन जैसे सीनियर खिलाड़ियों की भूमिका भी सीमित होती दिखी, जिससे टीम का बैलेंस बिगड़ा।
कैप्टेंसी और कोचिंग में तालमेल की कमी
टीम इंडिया में नेतृत्व अक्सर बड़ा मुद्दा नहीं रहा, लेकिन वर्तमान परिस्थिति में कप्तान और कोच के बीच तालमेल की कमी को विशेषज्ञ मुख्य कारणों में से एक मानते हैं।
मैच प्लानिंग, खिलाड़ियों की भूमिका, पिच रणनीति और विरोधी टीम के अनुसार बदलाव जैसी चीजें दोनों के बीच बेहतर संवाद की मांग करती हैं।
फैंस और बीसीसीआई की बढ़ती चिंता
टीम इंडिया के टेस्ट प्रदर्शन में गिरावट ने बीसीसीआई को भी चिंतित कर दिया है। भारत ICC टेस्ट चैंपियनशिप के लेटेस्ट पॉइंट्स टेबल में मध्य स्थान पर है और फाइनल की होड़ से लगभग बाहर हो चुका है।
फैंस भी सोशल मीडिया पर गंभीर और टीम मैनेजमेंट की आलोचना कर रहे हैं।
बहुत से फैंस ने लिखा कि भारत की टेस्ट टीम पहचान खोने लगी है और घरेलू पिचों पर क्लीन स्वीप हारना टीम की मजबूती पर गहरी चोट है।
आगे की राह—क्या बदलाव होंगे?
बीसीसीआई अब अगले टेस्ट चक्र के लिए कोचिंग स्टाफ और टीम संरचना पर गंभीरता से विचार कर रही है।
माना जा रहा है कि:
टीम में सीनियर खिलाड़ियों की भूमिका बढ़ाई जाएगी
एक्सपेरिमेंट कम किए जाएंगे
घरेलू पिचों पर स्पष्ट रणनीति बनाई जाएगी
टेस्ट विशेषज्ञ खिलाड़ियों को प्राथमिकता दी जाएगी
कोच, कप्तान और चयनकर्ताओं के बीच सामंजस्य बढ़ाया जाएगा
गौतम गंभीर के लिए आने वाले महीनों में प्रदर्शन सुधारना बेहद जरूरी हो गया है, खासकर जब उनके नेतृत्व पर लगातार सवाल उठ रहे हैं।
