
भारत ने पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में अभूतपूर्व उपलब्धियां हासिल की हैं, वह आज पूरी दुनिया देख रही है। चंद्रयान से लेकर गगनयान और सौर मिशन तक, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) लगातार नए आयाम स्थापित कर रहा है। अब इसी कड़ी में इसरो ने एक और महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया है—”बॉडीगार्ड सैटेलाइट” बनाने का। यह सैटेलाइट भारत के अन्य महत्वपूर्ण उपग्रहों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा और अंतरिक्ष में एक तरह से सुरक्षा कवच की भूमिका निभाएगा।
आज की बदलती वैश्विक परिस्थिति में जब अंतरिक्ष भी महाशक्तियों की प्रतिस्पर्धा का अखाड़ा बन चुका है, ऐसे समय में भारत का यह कदम बेहद अहम माना जा रहा है। सवाल उठता है कि आखिर “बॉडीगार्ड सैटेलाइट” की जरूरत क्यों पड़ी? इसके पीछे कौन से सुरक्षा कारण हैं और यह तकनीक भारत को कैसे मजबूती देगी?
क्यों जरूरी है बॉडीगार्ड सैटेलाइट?
अंतरिक्ष में हजारों उपग्रह काम कर रहे हैं। इनमें कई देश अपने-अपने रणनीतिक और सुरक्षा हितों के लिए भी सैटेलाइट्स का इस्तेमाल करते हैं। भारत ने भी संचार, मौसम, नेविगेशन, कृषि और सुरक्षा जैसे क्षेत्रों के लिए सैकड़ों सैटेलाइट लॉन्च किए हैं। लेकिन अंतरिक्ष में बढ़ती प्रतिस्पर्धा और संभावित खतरों के बीच इनकी सुरक्षा अब बड़ी चुनौती बन गई है।
चीन और अमेरिका जैसे देशों के पास एंटी-सैटेलाइट वेपन (ASAT) तकनीक है, जो किसी भी उपग्रह को निशाना बनाकर नष्ट कर सकती है। 2019 में भारत ने भी “मिशन शक्ति” के तहत यह क्षमता दिखाई थी। लेकिन केवल एंटी-सैटेलाइट हथियार होना ही काफी नहीं है, क्योंकि किसी भी देश को अपने उपग्रहों की सुरक्षा करना भी उतना ही जरूरी है। यहीं पर “बॉडीगार्ड सैटेलाइट” की अहमियत सामने आती है।
बॉडीगार्ड सैटेलाइट क्या करेगा?
यह विशेष सैटेलाइट अंतरिक्ष में भारत के मौजूदा और आने वाले उपग्रहों के पास तैनात रहेगा। इसका मुख्य कार्य होग
1. निगरानी: आसपास के स्पेस ऑब्जेक्ट्स और संभावित खतरों पर नजर रखना।
2. सुरक्षा कवच: अगर कोई दुश्मन देश या स्पेस डेब्रिस (कचरा) भारतीय सैटेलाइट के करीब आता है तो यह सैटेलाइट सुरक्षा कवच की तरह काम करेगा।
3. रोकथाम: संभावित हमलों को रोकना और उपग्रह को किसी भी तरह की क्षति से बचाना।
4. तकनीकी रक्षा: भविष्य में एआई और लेजर टेक्नोलॉजी की मदद से यह बॉडीगार्ड सैटेलाइट दुश्मन की गतिविधियों को नाकाम भी कर सकता है।
राष्ट्रीय सुरक्षा में बड़ा कदम
आज के डिजिटल युग में उपग्रहों का महत्व असाधारण है। संचार, इंटरनेट, बैंकिंग, मौसम पूर्वानुमान, जीपीएस, कृषि और रक्षा सभी उपग्रहों पर निर्भर हैं। ऐसे में अगर किसी देश के उपग्रह को निशाना बनाया जाए, तो उसकी सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और प्रशासन पर बड़ा असर पड़ सकता है।
भारत के लिए यह खतरा वास्तविक है क्योंकि चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों से साइबर और तकनीकी चुनौतियां पहले से मौजूद हैं। ऐसे में स्पेस में सुरक्षा कवच तैयार करना भारत की दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है।
इसरो की तैयारी और तकनीक
इसरो पहले ही PSLV, GSLV और LVM3 जैसे लॉन्च व्हीकल्स की मदद से कई सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेज चुका है। अब “बॉडीगार्ड सैटेलाइट” के लिए नई तकनीक पर काम हो रहा है। माना जा रहा है कि इसमें एडवांस्ड सेंसर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, और रियल-टाइम मॉनिटरिंग सिस्टम लगाए जाएंगे।
इसके अलावा, इसमें हाई-टेक कम्युनिकेशन सिस्टम होगा जो ग्राउंड स्टेशन को तुरंत अलर्ट भेजेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रोजेक्ट भारत को अमेरिका, रूस और चीन जैसे देशों की कतार में खड़ा कर देगा, जिनके पास पहले से स्पेस सिक्योरिटी से जुड़ी तकनीक मौजूद है।
आज अमेरिका के पास “स्पेस फोर्स” है, जबकि चीन लगातार अपने अंतरिक्ष सैन्यीकरण को बढ़ा रहा है। रूस भी इस क्षेत्र में काफी आगे है। ऐसे माहौल में भारत का “बॉडीगार्ड सैटेलाइट” कार्यक्रम न केवल तकनीकी बल्कि सामरिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण होगा।
यह भारत को वैश्विक मंच पर मजबूत बनाएगा और भविष्य में किसी भी तरह की स्पेस रेस में भारत की स्थिति को सुरक्षित करेगा।
भारत के लिए “बॉडीगार्ड सैटेलाइट” सिर्फ एक तकनीकी उपलब्धि नहीं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है। यह पहल दिखाती है कि भारत अब केवल अंतरिक्ष अनुसंधान तक सीमित नहीं है बल्कि अपनी सुरक्षा और रणनीतिक ताकत को भी स्पेस में विस्तारित कर रहा है।
जिस तरह जमीन पर सेना और वायुसेना देश की रक्षा करती है, उसी तरह भविष्य में अंतरिक्ष में यह “बॉडीगार्ड सैटेलाइट” भारत के उपग्रहों की सुरक्षा करेगा।
भारत का यह कदम न केवल सुरक्षा को पुख्ता करेगा बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए यह संदेश भी देगा कि विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में भारत आत्मनिर्भर और सक्षम है।