
जमशेदपुर में आयोजित आदिवासी महा दरबार (Adivasi Maha Darbar) ने पूरे राज्य का ध्यान अपनी ओर खींचा। इस भव्य आयोजन में हजारों की संख्या में आदिवासी समाज के लोग शामिल हुए। कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य आदिवासी समाज की परंपराओं, संस्कृति, अधिकारों और राजनीतिक स्थिति को मजबूत करना था। इस मौके पर झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन (Champai Soren) मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रहे। उन्होंने न केवल आदिवासी समाज की समस्याओं पर चर्चा की बल्कि उनके अधिकारों की रक्षा और संस्कृति को बढ़ावा देने का भरोसा भी दिलाया।
आदिवासी महा दरबार का ऐतिहासिक महत्व
आदिवासी समाज में महा दरबार केवल एक आयोजन नहीं बल्कि अपनी सांस्कृतिक धरोहर और एकजुटता का प्रतीक है। इस आयोजन में पारंपरिक नृत्य, गीत-संगीत, सांस्कृतिक झलकियां और सामाजिक मुद्दों पर गंभीर चर्चाएं होती हैं। महा दरबार के माध्यम से आदिवासी समाज अपनी पहचान और अधिकारों की रक्षा के लिए एकजुट होता है।
झारखंड जैसे आदिवासी बहुल राज्य में इस तरह के आयोजनों का राजनीतिक और सामाजिक महत्व और भी बढ़ जाता है।
पूर्व CM चंपाई सोरेन का संबोधन
पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि आदिवासी समाज हमेशा से झारखंड की रीढ़ रहा है। चाहे राज्य की लड़ाई हो या जल, जंगल और जमीन की रक्षा का आंदोलन—आदिवासी समाज ने हमेशा संघर्ष किया है। उन्होंने कहा कि सरकार को चाहिए कि वह आदिवासी संस्कृति और उनकी मूल पहचान को बचाने के लिए ठोस कदम उठाए।
उनके भाषण की मुख्य बातें:
आदिवासी समाज के अधिकारों की रक्षा
जल, जंगल और जमीन पर आदिवासियों का हक
शिक्षा और रोजगार में अवसरों की समानता
पारंपरिक संस्कृति और भाषा को संरक्षित करना
कार्यक्रम में उमड़ी भीड़
इस आयोजन में जमशेदपुर और आसपास के जिलों से हजारों की संख्या में लोग शामिल हुए। महा दरबार का वातावरण पूरी तरह से पारंपरिक और सांस्कृतिक रंग में रंगा हुआ था। महिलाएं पारंपरिक पोशाकों में नजर आईं तो युवाओं ने ढोल-नगाड़ों पर नृत्य प्रस्तुत कर सबका मन मोह लिया।
सांस्कृतिक कार्यक्रमों की झलक
आदिवासी नृत्य: हो, संथाली और मुंडारी नृत्य की प्रस्तुति
पारंपरिक वाद्ययंत्र: मांदर, ढोल और नागाड़ों की गूंज
लोकगीत: झारखंडी संस्कृति को दर्शाते गीत
हस्तशिल्प प्रदर्शनी: बांस और लकड़ी से बने सामानों की प्रदर्शनी
सामाजिक और राजनीतिक संदेश
इस महा दरबार से एक बड़ा संदेश यह भी गया कि आदिवासी समाज अपनी पहचान और अधिकारों के प्रति जागरूक है। साथ ही, यह भी स्पष्ट हुआ कि आने वाले समय में राजनीतिक दलों को आदिवासी हितों पर गंभीरता से सोचना होगा।
पूर्व CM चंपाई सोरेन ने यह भी कहा कि अगर सरकारें आदिवासी समाज की अनदेखी करती हैं तो यह समाज खुद अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ने में सक्षम है।
स्थानीय नेतृत्व की मौजूदगी
इस कार्यक्रम में कई स्थानीय नेता, पंचायत प्रतिनिधि और सामाजिक कार्यकर्ता भी शामिल हुए। सभी ने एक सुर में कहा कि आदिवासी समाज की आवाज़ को दबाया नहीं जा सकता।
भविष्य की रणनीति
महा दरबार में यह तय किया गया कि आदिवासी समाज आने वाले समय में अपनी संस्कृति को बचाने और सामाजिक-राजनीतिक हक के लिए संगठित रूप से आंदोलन करेगा। इसके लिए अलग-अलग समितियों का गठन किया गया और समाज के युवाओं को आगे लाने पर जोर दिया गया।
आदिवासी समाज की प्रमुख चुनौतियाँ
1. जमीन पर अधिकार
2. विस्थापन की समस्या
3. शिक्षा और रोजगार में कमी
4. सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण
5. स्वास्थ्य सेवाओं की कमी
जमशेदपुर में आयोजित आदिवासी महा दरबार सिर्फ एक सांस्कृतिक आयोजन नहीं बल्कि समाज की एकजुटता, जागरूकता और अधिकारों के प्रति संघर्ष का प्रतीक बनकर सामने आया। पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन की मौजूदगी ने इस कार्यक्रम की गंभीरता और महत्व को और बढ़ा दिया।