
झरिया मास्टर प्लान 2.0: धधकती ज़मीन पर जीवन जी रहे 60 हज़ार परिवारों को मिलेगी नई जिंदगी।
झारखंड के धनबाद जिले में स्थित झरिया, एशिया का सबसे बड़ा कोयला भंडार होने के साथ-साथ एक खौफनाक त्रासदी का नाम भी बन गया है। यहां पिछले 109 वर्षों से धरती के अंदर आग धधक रही है, जिससे हजारों लोग बीमारियों, प्रदूषण और भू-धंसान जैसी भयावह समस्याओं से जूझ रहे हैं। लेकिन अब केंद्र सरकार ने इन लोगों को राहत देने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में 25 जून 2025 को संशोधित झरिया मास्टर प्लान 2.0 को मंजूरी दी गई है। इस योजना के पहले चरण में 5,940 करोड़ रुपये खर्च कर 60,000 से अधिक परिवारों का पुनर्वास किया जाएगा।
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क्यों जल रहा है झरिया?
झरिया भूमिगत कोयले की खदानों के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन 1916 में पहली बार यहां आग लगने की जानकारी मिली थी। तब से आज तक आग बुझाने की तमाम कोशिशें की गईं—फोम, ट्रेंच, हाइड्रोजन फ्लशिंग जैसी तकनीकों का इस्तेमाल हुआ—मगर सफलता नहीं मिली। आज स्थिति यह है कि यहां 200 गांव आग की चपेट में हैं, और सैकड़ों लोग खतरे में जी रहे हैं।
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पुनर्वास योजना का विवरण
इस मास्टर प्लान 2.0 के तहत न केवल लोगों को सुरक्षित स्थानों पर बसाया जाएगा, बल्कि उन्हें रोजगार और आजीविका के साधन भी उपलब्ध कराए जाएंगे:
प्रत्येक परिवार को ₹1 लाख का आजीविका अनुदान
₹3 लाख तक का संस्थागत ऋण
कौशल विकास कार्यक्रम से स्वरोजगार के अवसर
झरिया वैकल्पिक आजीविका पुनर्वास कोष की स्थापना
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पिछली योजना क्यों विफल रही?
2009 में पहली बार झरिया पुनर्वास योजना को मंजूरी मिली थी, जिसकी अवधि 10 साल थी और बजट ₹7,112 करोड़ निर्धारित था। लेकिन योजना 2021 में समाप्त हो गई और अपेक्षित परिणाम नहीं दे पाई। अधिकतर प्रभावित परिवारों का पुनर्वास अधूरा रह गया।
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देश को रोशन करता, खुद अंधेरे में डूबा झरिया
देश के 19% कोयला भंडार वाले झरिया की कोयला आपूर्ति से देशभर में बिजली पहुँचाई जाती है। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार, यहां 86,000 मिलियन टन कोयले का भंडार मौजूद है। पर इसी ऊर्जा के भंडार में रहने वाले हजारों लोग नर्क जैसी जिंदगी जीने को मजबूर हैं।
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अब क्या होगा?
अब केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया है कि मास्टर प्लान 2.0 का पहला चरण तीन साल में पूरा किया जाएगा। उसके बाद दूसरे चरण में इस बात की निगरानी की जाएगी कि भविष्य में भूमिगत आग फिर न फैले।
यह देखना दिलचस्प होगा कि झरिया मास्टर प्लान 2.0 वास्तव में कब और कैसे लागू होता है, और कितनी तेजी से इन 60 हजार परिवारों को सुरक्षित, सम्मानजनक और स्थायी जीवन मिल पाता है।
झरिया सिर्फ एक कोयला क्षेत्र नहीं, बल्कि वहां रहने वाले लोगों के संघर्ष की पहचान है। यह योजना अगर ईमानदारी से लागू होती है, तो झरिया भारत की सबसे बड़ी मानवीय पुनर्वास कहानियों में से एक बन सकता है।