देवघर। झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य के लाखों किसानों और रैयतों को बड़ी राहत देते हुए जमीन रजिस्ट्री में Land Possession Certificate (LPC) की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया है। अदालत ने इस संबंध में राजस्व, निबंधन और भूमि सुधार विभाग द्वारा जारी आदेश को निरस्त करते हुए कहा कि LPC अब रजिस्ट्री के लिए अनिवार्य नहीं रहेगा।

न्यायमूर्ति दीपक रोशन की अदालत ने कहा कि वर्ष 2016 में संशोधित पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 22A के तहत सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देश असंवैधानिक हैं। अदालत ने साफ किया कि अब जमीन की खरीद-बिक्री और रजिस्ट्री में LPC की जरूरत नहीं होगी। इस फैसले से झारखंड के लाखों ग्रामीणों, किसानों और रैयतों को बड़ी राहत मिली है, जो वर्षों से इस प्रक्रिया में हो रही देरी और भ्रष्टाचार से परेशान थे।
क्या था मामला?
राज्य सरकार ने वर्ष 2016 में अधिसूचना जारी कर भूमि पंजीकरण अधिनियम में संशोधन किया था। इसके तहत यह प्रावधान किया गया था कि किसी भी जमीन की रजिस्ट्री से पहले भूमि स्वामित्व प्रमाण पत्र (LPC) प्रस्तुत करना आवश्यक होगा।
इस प्रावधान के कारण आम लोगों, खासकर ग्रामीण रैयतों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। कई बार LPC जारी करने में महीनों लग जाते थे, जिससे जमीन की बिक्री या खरीद की प्रक्रिया रुक जाती थी।
क्या होगा फैसले का असर?
हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद अब राज्य में जमीन रजिस्ट्री की प्रक्रिया आसान हो जाएगी। न्यायालय ने कहा कि रैयतों और किसानों के साथ-साथ सभी भूमि स्वामियों को यह लाभ मिलेगा। इससे उन लाखों लोगों को राहत मिलेगी जो वर्षों से अपनी संपत्ति की रजिस्ट्री कराने में असमर्थ थे।
राज्य सरकार द्वारा जारी आदेश अब निरस्त होने से रजिस्ट्री विभाग को भी इस प्रक्रिया में पारदर्शिता लानी होगी। अब केवल वैध कागजात और जमीन के स्वामित्व प्रमाणों के आधार पर ही रजिस्ट्री संभव होगी।
पार्थियों को भी मिलेगा वही लाभ जो कनियक को मिला: हाईकोर्ट
रांची से मिली जानकारी के अनुसार, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि जिन वादियों ने इस मामले में याचिका दायर की थी, उन्हें वही लाभ मिलेगा जो मुख्य याचिकाकर्ता (कनियक) को प्राप्त हुआ है। अदालत ने कहा कि यह फैसला पूरे राज्य पर समान रूप से लागू होगा।
इंजीनियरों की प्रमोशन को लेकर भी अदालत सख्त
सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने राज्य इंजीनियरों की पदोन्नति को लेकर भी सरकार से नाराजगी जताई। अदालत ने कहा कि प्रमोशन प्रक्रिया में पारदर्शिता और समानता जरूरी है। यदि राज्य विभाग निष्पक्षता नहीं बरतते, तो न्यायालय दखल देने से पीछे नहीं हटेगा।
क्या बोले विशेषज्ञ?
भूमि कानून विशेषज्ञों ने इस फैसले को ऐतिहासिक करार दिया है। उनका कहना है कि यह निर्णय भूमि पंजीकरण प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाएगा। अब किसानों और आम नागरिकों को राजस्व विभाग के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे।
देवघर के भूमि अधिवक्ता रमेश प्रसाद सिंह ने कहा —
“हाईकोर्ट का यह फैसला झारखंड के लाखों लोगों के लिए बड़ी राहत है। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में गति आएगी और भूमि विवादों में भी कमी होगी।”
क्या बदल जाएगा अब?
जमीन की रजिस्ट्री के लिए अब LPC की जरूरत नहीं होगी।
निबंधन कार्यालयों में फाइल पास कराने की प्रक्रिया तेज होगी।
बिचौलियों और दलालों की भूमिका खत्म होगी।
ग्रामीण व शहरी दोनों क्षेत्रों के लोगों को सीधा लाभ मिलेगा।
भूमि सुधार विभाग को अपने पुराने आदेशों की समीक्षा करनी होगी।
राज्य सरकार की अगली कार्रवाई
हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद अब राज्य सरकार पर दबाव बढ़ गया है कि वह भूमि पंजीकरण से जुड़े सभी पुराने नियमों की समीक्षा करे।
साथ ही राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग को निर्देश दिया गया है कि सभी जिला निबंधन कार्यालयों को नए दिशानिर्देश भेजे जाएं, ताकि राज्यभर में एक समान प्रक्रिया लागू की जा सके।
झारखंड हाईकोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला न केवल कानूनी दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि आम जनता की राहत से भी जुड़ा है। भूमि रजिस्ट्री में LPC की अनिवार्यता समाप्त होने से किसानों, भूमिधारकों और रैयतों को न सिर्फ समय की बचत होगी बल्कि पारदर्शिता और सरलता भी सुनिश्चित होगी।
