
झारखंड के पलामू ज़िले से एक अजीबोगरीब और चौंकाने वाली घटना सामने आई है। पलामू टाइगर रिजर्व (Palamu Tiger Reserve) के जंगलों से एक पालतू हाथी रहस्यमय ढंग से गायब हो गया है। हैरानी की बात यह है कि हाथी के साथ उसका महावत भी लापता है। घटना की जानकारी मिलते ही वन विभाग और पुलिस प्रशासन हरकत में आ गए हैं। ग्रामीणों और स्थानीय लोगों के बीच यह घटना चर्चा का विषय बनी हुई है।
घटना का विवरण
सूत्रों के अनुसार, यह हाथी पिछले कई वर्षों से पलामू टाइगर रिजर्व के अंतर्गत वन विभाग की देखरेख में था। हाथी का इस्तेमाल कभी-कभी जंगल गश्ती और विशेष अवसरों पर धार्मिक जुलूसों में भी किया जाता था।
बीते शुक्रवार रात को हाथी और महावत दोनों अचानक जंगल से गायब हो गए। सुबह जब वन विभाग की टीम ने नियमित गश्ती की तो हाथी का कोई पता नहीं चला। महावत का भी मोबाइल स्विच ऑफ पाया गया।
ग्रामीणों ने बताया कि हाथी को आखिरी बार छतरपुर प्रखंड के समीप जंगलों में देखा गया था। उसके बाद से उसका कोई अता-पता नहीं है।
प्रशासन की कार्रवाई
जैसे ही हाथी चोरी होने की खबर फैली, पलामू वन प्रमंडल (Palamu Forest Division) और स्थानीय पुलिस ने संयुक्त अभियान शुरू कर दिया।
वन विभाग ने आसपास के सभी जंगलों और संभावित रास्तों पर तलाशी शुरू की।
पुलिस ने महावत के घर और रिश्तेदारों से पूछताछ की।
सीमा से सटे इलाकों में चौकसी बढ़ा दी गई है ताकि हाथी को अवैध रूप से बाहर न ले जाया जा सके।
वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि अगर हाथी को तस्करी के लिए चोरी किया गया है, तो मामला बेहद गंभीर है। हाथियों की तस्करी से जुड़ा अंतरराज्यीय और अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क सक्रिय रहता है।
ग्रामीणों की प्रतिक्रिया
इस घटना के बाद ग्रामीणों में काफी गुस्सा और आक्रोश है। गाँव के लोगों का कहना है कि हाथी उनके लिए केवल एक जानवर नहीं था बल्कि गांव की पहचान था। कई बार हाथी धार्मिक आयोजनों और सामाजिक कार्यक्रमों में भी शामिल होता था।
ग्रामीणों ने प्रशासन से अपील की है कि हाथी को जल्द से जल्द बरामद किया जाए और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।
वन्यजीव संरक्षण से जुड़ा पहलू
हाथियों की चोरी कोई साधारण घटना नहीं है। यह वन्यजीव संरक्षण (Wildlife Conservation) से जुड़ा बड़ा सवाल है।
विशेषज्ञों का कहना है कि हाथियों की तस्करी अक्सर दांत (Ivory) और अवैध श्रम कार्यों के लिए की जाती है। भारत में हाथी संरक्षित प्रजाति हैं और इन्हें वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत विशेष दर्जा दिया गया है। इसके बावजूद अगर हाथी चोरी हो जाता है, तो यह वन विभाग और सुरक्षा तंत्र की बड़ी नाकामी है।
पृष्ठभूमि: हाथियों की स्थिति झारखंड में
झारखंड में हाथियों की आबादी अच्छी संख्या में मौजूद है। खासकर पलामू, गढ़वा, लातेहार और गुमला जिलों में हाथी अक्सर देखे जाते हैं। लेकिन बीते कुछ वर्षों से हाथियों का मानव बस्तियों में घुसना और फसलों को नुकसान पहुँचाना एक आम समस्या बन गई है।
इसी बीच हाथियों की तस्करी और शिकार भी बढ़ता जा रहा है। साल 2023 और 2024 में भी झारखंड के अलग-अलग हिस्सों से हाथियों के शिकार की घटनाएँ सामने आई थीं।
विशेषज्ञों की राय
वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि –
हाथी का चोरी होना सिर्फ आर्थिक नुकसान नहीं है बल्कि पर्यावरणीय संतुलन के लिए भी खतरा है।
अगर महावत ने किसी गिरोह के साथ मिलकर हाथी को गायब किया है, तो यह संगठित अपराध का मामला हो सकता है।
इस घटना की जांच उच्च स्तर पर की जानी चाहिए।
पुलिस की जांच
पुलिस का कहना है कि महावत के अचानक गायब हो जाने से शक और गहरा हो गया है। प्रारंभिक जांच में संभावना जताई जा रही है कि महावत ही हाथी को किसी गिरोह के हाथों बेचने के लिए ले गया हो।
महावत के कॉल डिटेल रिकॉर्ड (CDR) खंगाले जा रहे हैं और उसके रिश्तेदारों से पूछताछ की जा रही है।
अंतरराज्यीय कड़ी की आशंका
इस घटना में अंतरराज्यीय गिरोह की संलिप्तता से इनकार नहीं किया जा सकता। झारखंड से लगे छत्तीसगढ़, ओडिशा और बिहार में हाथियों का अवैध कारोबार सक्रिय रहता है।
वन विभाग ने इन राज्यों के अधिकारियों को भी सूचना भेज दी है ताकि सीमाओं पर नाकेबंदी कर हाथी को रोका जा सके।
सोशल मीडिया पर चर्चा
यह घटना सोशल मीडिया पर भी तेजी से वायरल हो रही है। लोग सरकार और वन विभाग पर लापरवाही का आरोप लगा रहे हैं। ट्विटर और फेसबुक पर #SaveElephant और #PalamuElephantMissing जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं।
पलामू में हाथी चोरी की यह घटना केवल एक जानवर के गायब होने की नहीं है, बल्कि यह वन्यजीव संरक्षण, प्रशासनिक लापरवाही और संगठित अपराध की ओर इशारा करती है। अगर हाथी जल्द बरामद नहीं हुआ तो यह झारखंड की छवि और वन विभाग की कार्यप्रणाली पर बड़ा सवाल खड़ा करेगा।