
झारखंड के पलामू जिले में रविवार देर रात पुलिस और नक्सलियों के बीच भीषण मुठभेड़ हुई। इस मुठभेड़ में पुलिस के दो जांबाज जवान शहीद हो गए, जबकि कई अन्य घायल बताए जा रहे हैं। नक्सल प्रभावित इलाकों में यह मुठभेड़ उस समय हुई जब पुलिस को गुप्त सूचना मिली थी कि पलामू के घने जंगलों में बड़ी संख्या में नक्सली छिपे हुए हैं। सूचना के आधार पर पुलिस और सीआरपीएफ की संयुक्त टीम सर्च ऑपरेशन पर निकली थी।
कैसे हुई मुठभेड़?
सूत्रों के अनुसार, पुलिस को खुफिया जानकारी मिली थी कि पलामू के बेतला और छतरपुर थाना क्षेत्र के सीमावर्ती इलाकों में नक्सलियों का जमावड़ा हो रहा है। इस जानकारी के आधार पर पुलिस और अर्धसैनिक बलों की टीम संयुक्त रूप से इलाके में सर्च अभियान चला रही थी। तभी घात लगाकर बैठे नक्सलियों ने पुलिस दल पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। अचानक हुई गोलीबारी में पुलिस बल को संभलने का मौका तक नहीं मिला।
मुठभेड़ कई घंटों तक चली। अंधेरे और घने जंगलों की वजह से सुरक्षा बलों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। इस दौरान दो पुलिस जवान बहादुरी से लड़ते हुए शहीद हो गए। पुलिस ने जवाबी कार्रवाई में भी जोरदार फायरिंग की, हालांकि नक्सली अंधेरे का फायदा उठाकर जंगलों की ओर भागने में सफल रहे।
शहीद जवानों की पहचान
मुठभेड़ में शहीद हुए दोनों जवानों की पहचान हो चुकी है। इनमें से एक जवान झारखंड के ही रहने वाले थे जबकि दूसरे का संबंध पड़ोसी राज्य बिहार से बताया जा रहा है। दोनों जवानों की शहादत पर पूरे पुलिस विभाग और स्थानीय लोगों में गहरा शोक है। शहीदों के परिजनों को सरकारी स्तर पर मुआवजे और सम्मान की घोषणा किए जाने की संभावना है।
डीजीपी और आला अधिकारियों का बयान
झारखंड के डीजीपी ने घटना की पुष्टि करते हुए कहा कि हमारे दो बहादुर जवान देश की आंतरिक सुरक्षा की रक्षा करते हुए शहीद हो गए हैं। उन्होंने कहा कि नक्सलियों के खिलाफ अभियान और तेज किया जाएगा और उन्हें किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा। उन्होंने यह भी बताया कि घटनास्थल से भारी मात्रा में कारतूस और नक्सली सामग्री बरामद की गई है।
नक्सलियों की गतिविधियों में फिर से बढ़ोतरी
पलामू और आसपास के इलाके लंबे समय से नक्सल प्रभावित रहे हैं। पिछले कुछ महीनों से पुलिस और सुरक्षा बलों ने लगातार अभियान चलाकर नक्सली संगठनों की कमर तोड़ दी थी। लेकिन हाल ही में नक्सलियों ने दोबारा से अपनी मौजूदगी दर्ज करानी शुरू की है। इस मुठभेड़ को उसी कड़ी के रूप में देखा जा रहा है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि नक्सली रात के अंधेरे में गांवों के नजदीक पहुंच जाते हैं और लोगों को डराकर अपने लिए सामान व वसूली करते हैं। पुलिस और प्रशासन लगातार लोगों को सुरक्षा का भरोसा दिला रहे हैं।
शहीदों के परिजनों का आक्रोश और दुःख
मुठभेड़ में शहीद हुए जवानों के घरों में मातम पसरा हुआ है। परिजनों का कहना है कि उनके बेटे ने देश के लिए अपनी जान न्यौछावर की है, लेकिन सरकार को चाहिए कि नक्सलियों का खात्मा जल्द से जल्द किया जाए। परिजनों ने जवानों की शहादत को बेकार न जाने देने की अपील की है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
इस घटना के बाद राज्य की राजनीति भी गरमा गई है। विपक्षी दलों ने सरकार से पूछा है कि नक्सल प्रभावित इलाकों में सुरक्षा व्यवस्था क्यों नहीं बढ़ाई गई। वहीं, सत्तारूढ़ दल ने इसे जवानों की बहादुरी बताते हुए कहा है कि राज्य सरकार हर संभव मदद शहीद परिवारों को देगी और नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई में किसी भी कीमत पर पीछे नहीं हटेगी।
नक्सलवाद से निपटने की चुनौतियां
झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार और ओडिशा नक्सल प्रभावित राज्यों में गिने जाते हैं। पिछले एक दशक में सुरक्षा बलों ने नक्सलवाद पर काफी हद तक काबू पाया है, लेकिन पलामू जैसी घटनाएं यह दिखाती हैं कि यह समस्या पूरी तरह खत्म नहीं हुई है। नक्सलियों के पास आधुनिक हथियारों की आपूर्ति और स्थानीय स्तर पर समर्थन मिलना इस चुनौती को और गंभीर बनाता है।
पलामू की यह घटना फिर से साबित करती है कि नक्सलवाद देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा है। शहीद जवानों की शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी, लेकिन इसके लिए सरकार, पुलिस और समाज को मिलकर ठोस कदम उठाने होंगे। केवल सुरक्षा बल ही नहीं, बल्कि विकास और शिक्षा के जरिए भी नक्सलवाद की जड़ को खत्म करना होगा।