
फाइलेरिया पर झारखंड की बड़ी जीत: एक साल में मरीजों की संख्या में 65% की गिरावट, मास ड्रग अभियान बना सफलता की कुंजी।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में झारखंड ने एक उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की है। राज्य में फाइलेरिया (हाथीपांव) जैसी गंभीर बीमारी के खिलाफ चलाए जा रहे व्यापक अभियान ने असर दिखाना शुरू कर दिया है। वर्ष 2024 की तुलना में 2025 में राज्य में फाइलेरिया के मरीजों की संख्या में 65% की भारी कमी दर्ज की गई है, जो एक स्वास्थ्य प्रणाली की बड़ी सफलता मानी जा रही है।
मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन अभियान बना बदलाव का आधार
इस सफलता के पीछे राज्य सरकार और स्वास्थ्य विभाग द्वारा फरवरी 2025 से शुरू किए गए मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (MDA) अभियान का बड़ा हाथ रहा है। इस अभियान के तहत राज्य के सभी जिलों, खासकर ग्रामीण और शहरी झुग्गी क्षेत्रों में फाइलेरिया से बचाव के लिए निशुल्क दवाएं वितरित की गईं और स्वास्थ्यकर्मियों ने घर-घर जाकर लोगों को दवा खाने के लिए प्रेरित किया।
क्या है फाइलेरिया?
फाइलेरिया मच्छरों से फैलने वाला एक परजीवी संक्रमण है, जिससे व्यक्ति के हाथ, पैर या जननांगों में सूजन आ जाती है। यह रोग लंबे समय तक इलाज न होने पर विकलांगता का कारण बन सकता है। इसे जड़ से मिटाने के लिए नियमित दवा सेवन और मच्छर जनित संक्रमण से बचाव जरूरी होता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में दिखा अभियान का सबसे अधिक असर
राज्य के गुमला, दुमका, साहेबगंज, गिरिडीह, चाईबासा, पलामू जैसे जिलों में जहां पहले फाइलेरिया के मामलों की संख्या अधिक थी, वहां इस बार बड़ी गिरावट देखने को मिली है। स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि यह परिणाम लोगों की जागरूकता, स्वास्थ्यकर्मियों की मेहनत और प्रशासन की सक्रियता का नतीजा है।
चिकित्सा टीम और स्थानीय सहयोग की सराहना
राज्य के स्वास्थ्य मंत्री और अधिकारियों ने इस अभियान में लगे चिकित्सा कर्मियों, आंगनवाड़ी सेविकाओं, ANM, और स्थानीय पंचायत प्रतिनिधियों की भूमिका की सराहना की है। उनके समर्पण और मेहनत की वजह से ही यह बीमारी नियंत्रण में आ सकी है।
जागरूकता अभियान ने निभाई अहम भूमिका
फाइलेरिया की रोकथाम के लिए सिर्फ दवाएं ही नहीं, बल्कि लोगों को शिक्षित करना भी जरूरी था। राज्यभर में पोस्टर, पंपलेट, नुक्कड़ नाटक और सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों को इस बीमारी के लक्षण, कारण और बचाव के उपायों के बारे में जानकारी दी गई। “दवा खाओ, फाइलेरिया मिटाओ” जैसे नारे लोगों के बीच लोकप्रिय हुए।
आगे की रणनीति
स्वास्थ्य विभाग ने स्पष्ट किया है कि यह सफलता स्थायी बनाने के लिए अभियान को हर वर्ष दो बार दोहराया जाएगा, ताकि बचे हुए जोखिम वाले क्षेत्रों को भी पूर्ण सुरक्षा मिल सके। इसके अलावा, फॉलोअप सर्वे, फाइलेरिया टेस्टिंग और विशेष निगरानी अभियान भी जारी रहेंगे।
झारखंड की यह उपलब्धि सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि बेहतर जनस्वास्थ्य प्रणाली, नीति-निर्माण और सामाजिक भागीदारी की मिसाल है। राज्य सरकार की यह पहल आने वाले वर्षों में झारखंड को फाइलेरिया-मुक्त बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
बीमारी से नहीं, जागरूकता से होगी जीत — झारखंड ने यह साबित कर दिया है।