
हिंदू धर्म में व्रत-उपवास का विशेष महत्व है। खासकर महिलाओं द्वारा रखे जाने वाले व्रत न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हैं, बल्कि लोक परंपरा, परिवार की एकता और सामाजिक मान्यताओं से भी गहराई से जुड़े होते हैं। इन्हीं व्रतों में से एक है जितिया व्रत (Jitiya Vrat), जो खासकर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के मिथिला क्षेत्र में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह व्रत माताओं द्वारा अपने पुत्र की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य के लिए किया जाता है।
इस व्रत में नहाए-खाए (Nahaye Khaye), उपवास (Vrat) और पारण (Paran) की प्रक्रिया विशेष महत्व रखती है। आइए जानते हैं विस्तार से कि जितिया व्रत में नहाए-खाए का क्या महत्व है और किस भगवान की पूजा की जाती है।
1. जितिया व्रत का परिचय
जितिया व्रत को जीवित्पुत्रिका व्रत (Jivitputrika Vrat) भी कहा जाता है। इस व्रत का वर्णन महाभारत और स्कंद पुराण में भी मिलता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान पर आने वाले संकट टल जाते हैं और उसकी आयु लंबी होती है।
इस व्रत को मुख्य रूप से महिलाएं करती हैं, लेकिन इसके शुभ अवसर पर पूरा परिवार धार्मिक माहौल में शामिल रहता है।
2. नहाए-खाए का महत्व
जितिया व्रत का आरंभ अष्टमी तिथि से एक दिन पहले सप्तमी तिथि के दिन नहाए-खाए से होता है। इस दिन का महत्व व्रत की शुद्धता और सफल पालन से जुड़ा है।
नहाना (स्नान करना): सुबह पवित्र नदी, तालाब या घर पर गंगाजल मिलाकर स्नान किया जाता है। यह शरीर और मन की शुद्धि का प्रतीक है।
खाना (सात्विक भोजन करना): स्नान के बाद व्रती महिलाएं सात्विक भोजन करती हैं। इसमें अरवा चावल, दाल, कद्दू, घी और अन्य बिना लहसुन-प्याज वाले व्यंजन बनाए जाते हैं।
महत्व:
माना जाता है कि नहाए-खाए के दिन शुद्ध और सात्विक भोजन करने से अगले दिन का निर्जला उपवास सफल होता है। यही वजह है कि इस दिन को जितिया व्रत का आधार माना जाता है।
3. किस भगवान की पूजा होती है?
जितिया व्रत में मुख्य रूप से जीवित्पुत्रिका माता (जिउतिया माता) और जीवित्पुत्रिका व्रत कथा से जुड़े भगवान जीमूतवाहन की पूजा की जाती है।
जीमूतवाहन:
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जीमूतवाहन एक धर्मात्मा राजकुमार थे जिन्होंने एक नाग की रक्षा के लिए स्वयं का बलिदान कर दिया। उनकी निष्ठा और त्याग से प्रभावित होकर देवताओं ने उन्हें अमरत्व प्रदान किया।
जिउतिया माता:
माताएं इस व्रत में जिउतिया माता का पूजन कर संतान के दीर्घायु होने की कामना करती हैं।
पितरों का आशीर्वाद:
इस व्रत का समय पितृपक्ष में आता है, इसलिए पूर्वजों की कृपा भी इससे जुड़ी होती है।
4. पूजा विधि
जितिया व्रत की पूजा विशेष नियमों और परंपराओं के साथ की जाती है।
1. अष्टमी तिथि की सुबह महिलाएं निर्जला उपवास करती हैं।
2. व्रतियों को कोई जल तक ग्रहण नहीं करना होता।
3. दोपहर के समय नदी या तालाब के किनारे व्रत कथा सुनाई जाती है।
4. मिट्टी या गोबर से जीवित्पुत्रिका माता और जीमूतवाहन की प्रतिमा बनाई जाती है।
5. फल, फूल, दूर्वा घास, दीपक और नैवेद्य अर्पित किए जाते हैं।
6. रात्रि भर महिलाएं जागरण करती हैं और भजन-कीर्तन करती हैं।
7. नवमी तिथि को सूर्योदय के बाद पारण कर व्रत पूरा किया जाता है।
5. पौराणिक कथा
जितिया व्रत से जुड़ी कथा का आधार जीमूतवाहन की त्याग और धर्मनिष्ठा है। कथा इस प्रकार है:
जीमूतवाहन एक सत्यप्रिय और धर्मात्मा राजकुमार थे। उन्होंने संन्यास लेकर अपने पिता का राज्य छोड़ दिया था। एक दिन उन्हें एक वृद्धा रोते हुए मिली। उसने बताया कि हर दिन एक नाग को गरुड़ देवता के भोजन के लिए बलिदान देना पड़ता है और आज उसकी बारी उसके पुत्र की है। जीमूतवाहन ने करुणा वश वृद्धा के पुत्र की जगह स्वयं को बलिदान के लिए प्रस्तुत कर दिया। जब गरुड़ देवता ने उन्हें खाने की कोशिश की, तब उन्होंने अपनी पहचान बताई। जीमूतवाहन की निस्वार्थ भावना से प्रसन्न होकर गरुड़ देवता ने न केवल उन्हें जीवनदान दिया, बल्कि आगे से नागों का भक्षण भी बंद कर दिया।
इस कथा के कारण जितिया व्रत में माताएं जीमूतवाहन की पूजा कर संतान के जीवन की रक्षा की कामना करती हैं।
6. सामाजिक और धार्मिक महत्व
यह व्रत मातृत्व की शक्ति और त्याग का प्रतीक है।
महिलाओं के बीच आपसी सहयोग और एकजुटता को बढ़ावा देता है।
बच्चों को परंपरा और धर्म से जोड़ने का एक अवसर है।
समाज में एकता और धार्मिक आस्था को मजबूत करता है।
7. आधुनिक युग में महत्व
आज भी यह व्रत ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में समान उत्साह से मनाया जाता है। सोशल मीडिया और डिजिटल माध्यमों के कारण इस व्रत की जानकारी युवा पीढ़ी तक भी पहुंच रही है। महिलाएं इस व्रत को न केवल धार्मिक मान्यता से, बल्कि अपनी परंपरा और संस्कृति को जीवित रखने के लिए भी करती हैं।