
ज्येष्ठ पूर्णिमा 2025 विशेष: जाने क्यों इस दिन की जाती है वट वृक्ष की पूजा और क्या है इसका धार्मिक महत्व।
ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि इस वर्ष विशेष महत्व लेकर आई है। पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ पूर्णिमा 21 जून 2025 की रात से शुरू होकर 22 जून की रात तक रहेगी। चंद्रमा की पूर्ण स्थिति और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह व्रत दो दिनों तक मनाया जाएगा। इस दिन का विशेष महत्व सत्यवान और सावित्री की पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है, जिसे श्रद्धा, प्रेम और संकल्प का प्रतीक माना जाता है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन विशेष रूप से महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखद वैवाहिक जीवन की कामना के लिए व्रत करती हैं। इस व्रत को वट सावित्री व्रत के रूप में भी जाना जाता है। प्राचीन कथा के अनुसार, सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से छीनकर उसे पुनः जीवनदान दिलाया था। इसी वजह से इस दिन महिलाएं वट (बड़) के पेड़ की पूजा करती हैं और उसके चारों ओर कच्चा सूत बांधकर सात फेरे लेती हैं।
इस पावन पर्व पर गंगा स्नान का भी विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है। साथ ही, इस दिन दान-पुण्य, व्रत, जप और तप का अत्यधिक महत्व होता है। श्रद्धालु लोग इस दिन जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, जल, छाता और शीतल पेय पदार्थों का दान करते हैं। कई लोग इस दिन अपने पूर्वजों की शांति के लिए पिंडदान और तर्पण भी करते हैं।
ज्येष्ठ पूर्णिमा का दिन ध्यान, साधना और आत्मशुद्धि के लिए भी उत्तम माना जाता है। इस दिन उपवास रखने से मन की एकाग्रता बढ़ती है और जीवन में शांति एवं सकारात्मकता आती है। ज्योतिषीय दृष्टि से भी यह दिन शुभ होता है, खासकर चंद्रमा की स्थिति के कारण मानसिक शांति प्राप्त होती है।
इस प्रकार, ज्येष्ठ पूर्णिमा केवल एक धार्मिक पर्व नहीं बल्कि प्रेम, आस्था, त्याग और तपस्या का प्रतीक भी है। दो दिनों तक चलने वाली यह पूर्णिमा इस बार सभी श्रद्धालुओं के लिए विशेष फलदायक सिद्ध हो सकती है।