बिहार की राजनीति एक बार फिर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के इर्द-गिर्द घूमती नजर आ रही है। चुनावी मौसम में जब महागठबंधन के घटक दल सीटों को लेकर अपनी-अपनी दावेदारी ठोक रहे थे, उसी बीच लालू यादव ने अपनी ‘वीटो पावर’ का प्रयोग कर एक बार फिर साबित कर दिया कि बिहार की राजनीति में आज भी वही अंतिम निर्णायक हैं।
कांग्रेस के साथ सीट बंटवारे को लेकर चल रही रस्साकशी आखिरकार समाप्त हो गई है। कांग्रेस को जितनी सीटें चाहिए थीं, उतनी नहीं मिलीं, और अंततः पार्टी को समझौते के तहत पीछे हटना पड़ा। लालू यादव के ‘ना’ कहने के बाद कांग्रेस की सारी मांगें ठंडी पड़ गईं।
लालू यादव का वीटो पावर – ‘ना’ मतलब ‘ना’
सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस ने 90 से अधिक सीटों पर दावेदारी जताई थी, जबकि आरजेडी 150 से कम पर जाने को तैयार नहीं थी। तेजस्वी यादव लगातार तालमेल की बात कर रहे थे, लेकिन जब बातचीत अंतिम चरण में पहुंची, लालू यादव ने साफ कर दिया कि आरजेडी की सीटें किसी भी हालत में 145 से नीचे नहीं जाएंगी।
लालू यादव ने कहा – “कांग्रेस को जितनी ताकत है, उतनी सीटें मिलेंगी। महागठबंधन में एक पार्टी का हक दूसरे के हिस्से पर नहीं हो सकता।”
उनके इस रुख के बाद कांग्रेस नेताओं ने सुलह का रास्ता अपनाया। यही वजह है कि अब बिहार में महागठबंधन के अंतर्गत आरजेडी ही मुख्य रणनीतिक भूमिका में नजर आ रही है।
कांग्रेस ने झुकाया सिर, सहयोगी दलों ने जताया भरोसा
लालू यादव के वीटो पावर का असर इतना जबरदस्त रहा कि कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी और बिहार प्रभारी नेताओं को दिल्ली से निर्देश आया कि सीट बंटवारे में टकराव न बढ़ाया जाए। राहुल गांधी तक को जानकारी दी गई कि गठबंधन में तालमेल बिगड़ने से विपक्ष को नुकसान हो सकता है। इसके बाद कांग्रेस ने 65 सीटों पर समझौता करते हुए औपचारिक घोषणा की। अब महागठबंधन की सीटें लगभग तय मानी जा रही हैं – आरजेडी 145, कांग्रेस 65, और वाम दलों को लगभग 30 सीटें दी गई हैं। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि लालू यादव ने इस कदम से न केवल अपनी पार्टी की स्थिति मजबूत की बल्कि महागठबंधन में नेतृत्व की भूमिका पर भी अपनी पकड़ दोबारा साबित कर दी।
तेजस्वी यादव का कद हुआ और बड़ा
महागठबंधन में सीट बंटवारे के बाद अब अगले चरण में प्रचार अभियान की रणनीति पर काम शुरू हो चुका है। तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करने के बाद लालू यादव ने उन्हें बिहार भर में जनसभाओं की जिम्मेदारी सौंप दी है।
कहा जा रहा है कि लालू यादव ने सीट बंटवारे के मुद्दे पर जो सख्ती दिखाई, वह दरअसल अपने बेटे तेजस्वी को मजबूत राजनीतिक आधार देने की रणनीति का हिस्सा है। इस कदम से आरजेडी का वोट बैंक और संगठन दोनों उत्साहित हुए हैं।
एनडीए पर हमलावर हुए लालू यादव
लालू यादव ने मीडिया से बातचीत में कहा कि भाजपा और जेडीयू बिहार को फिर से बांटने की राजनीति कर रहे हैं, लेकिन जनता अब सब समझ चुकी है। उन्होंने नीतीश कुमार पर भी तंज कसते हुए कहा कि “नीतीश जी अब हर चुनाव से पहले पलटी मारते हैं, लेकिन जनता अब उनकी कोई बात नहीं मानती।”
लालू यादव ने यह भी कहा कि महागठबंधन एकजुट है और इस बार भाजपा को बिहार में करारा जवाब मिलेगा।
बिहार की राजनीति में लालू फैक्टर कायम
भले ही लालू प्रसाद यादव की सेहत अब पहले जैसी नहीं रही, लेकिन राजनीतिक प्रभाव में कोई कमी नहीं आई है। कांग्रेस जैसी पुरानी पार्टी को भी उनके निर्णयों के आगे झुकना पड़ा। महागठबंधन के नेताओं का मानना है कि लालू यादव की लोकप्रियता और जनाधार अभी भी ग्रामीण बिहार में सबसे मजबूत है। यही वजह है कि जब भी कोई अहम निर्णय लेना होता है, अंतिम मुहर लालू यादव की ही लगती है। राजनीति के जानकार कहते हैं कि बिहार में लालू यादव का ‘वीटो पावर’ सिर्फ शब्द नहीं बल्कि सत्ता संतुलन का प्रतीक बन गया है।
जनता क्या सोचती है?
बिहार के राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि लालू यादव के इस कदम से महागठबंधन में स्थिरता तो आई है, लेकिन कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में असंतोष भी है। कई स्थानीय कांग्रेस नेताओं का कहना है कि पार्टी को कम सीटें मिलने से अभियान पर असर पड़ेगा। हालांकि, आरजेडी का तर्क है कि सीटें जीतने की क्षमता के हिसाब से बांटी गई हैं, और चुनाव परिणाम साबित करेंगे कि यह फैसला सही था। लालू प्रसाद यादव एक बार फिर बिहार की राजनीति के केंद्र में हैं। उन्होंने साबित किया है कि उम्र और बीमारियां भले ही उन्हें कमजोर करें, लेकिन राजनीतिक सूझबूझ और रणनीतिक कौशल में उनका कोई सानी नहीं है।
कांग्रेस को झुकाकर लालू यादव ने न केवल अपनी ताकत दिखाई बल्कि विपक्षी एकता में खुद को ‘किंगमेकर’ की भूमिका में स्थापित कर दिया है। बिहार में अब मुकाबला साफ है — एक तरफ एनडीए की सरकार, और दूसरी ओर लालू यादव की रणनीति से प्रेरित महागठबंधन।
