
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनीति में समाजवादी पार्टी (सपा) और योगी सरकार के बीच जुबानी जंग अक्सर सुर्खियों में रहती है। ताज़ा मामला लखनऊ में सामने आया है, जहां समाजवादी पार्टी की 36 गाड़ियों पर यातायात नियमों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए ट्रैफिक पुलिस ने करीब 8 लाख रुपये का चालान काट दिया। इस कार्रवाई से पार्टी कार्यकर्ताओं में नाराजगी है और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इसे “राजनीतिक बदले की कार्रवाई” करार दिया है।
क्या है पूरा मामला?
जानकारी के अनुसार, समाजवादी पार्टी की रैली और कार्यक्रमों के दौरान इस्तेमाल की गई 36 गाड़ियों को ट्रैफिक पुलिस ने नियम उल्लंघन का दोषी पाया। आरोप है कि कई वाहनों पर बिना परमिट के लाल-नीली बत्ती लगी थी, कुछ वाहनों के दस्तावेज अधूरे थे, वहीं कई कारें नो-एंट्री और ओवरस्पीडिंग में पकड़ी गईं।
पुलिस ने इलेक्ट्रॉनिक चालान (E-Challan) सिस्टम के जरिए कार्रवाई करते हुए कुल मिलाकर 8 लाख रुपये का जुर्माना लगाया। यह कार्रवाई लखनऊ ट्रैफिक पुलिस और परिवहन विभाग की संयुक्त जांच में सामने आई।
अखिलेश यादव का हमला
चालान की खबर सामने आते ही अखिलेश यादव ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा—
“भाजपा सरकार पुलिस प्रशासन का इस्तेमाल विपक्ष को डराने और परेशान करने के लिए कर रही है। जनता की गाड़ियों पर तो फाइन लगाया जाता है, लेकिन भाजपा नेताओं और मंत्रियों के काफिले पर कभी कार्रवाई नहीं होती।”
अखिलेश ने सवाल उठाया कि जब जनता महंगाई और बेरोजगारी से जूझ रही है, तब सरकार सपा की गाड़ियों का चालान काटकर सुर्खियां बटोरने की कोशिश कर रही है। उन्होंने चेतावनी दी कि समाजवादी कार्यकर्ता ऐसे दमनकारी कदमों से डरने वाले नहीं हैं।
ट्रैफिक पुलिस का पक्ष
लखनऊ ट्रैफिक पुलिस के अधिकारियों का कहना है कि यह कार्रवाई पूरी तरह नियमों के अनुसार हुई है। चाहे गाड़ी किसी भी नेता या पार्टी की हो, अगर नियम तोड़ा गया है तो चालान काटा जाएगा। पुलिस का दावा है कि किसी भी वाहन को राजनीतिक पहचान के आधार पर नहीं, बल्कि कैमरों और जांच रिपोर्ट के आधार पर पकड़ा गया।
चुनावी मौसम में सियासी रंग
विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला महज ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन नहीं है, बल्कि 2025 विधानसभा चुनाव से पहले का राजनीतिक रंग भी लिए हुए है। विपक्ष इसे “तानाशाही रवैया” बता रहा है तो सरकार इसे “कानून का पालन” करार दे रही है।
सपा कार्यकर्ताओं का आरोप है कि भाजपा सरकार विपक्षी दलों की आवाज दबाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपना रही है। वहीं भाजपा समर्थक तर्क देते हैं कि अगर गाड़ियां नियमों का पालन करतीं तो जुर्माना भरने की नौबत ही नहीं आती।
अखिलेश के काफिले पर पहले भी उठ चुके हैं सवाल
यह पहली बार नहीं है जब अखिलेश यादव के काफिले या सपा की गाड़ियों पर सवाल उठे हों। इससे पहले भी कई मौकों पर उनकी गाड़ियों के बेड़े को लेकर ट्रैफिक जाम और नियम उल्लंघन की खबरें आती रही हैं। भाजपा नेता अक्सर इस मुद्दे को “VVIP कल्चर” से जोड़कर विपक्ष पर हमलावर होते हैं।
जनता की प्रतिक्रिया
लखनऊ के आम नागरिकों की राय इस मामले पर बंटी हुई है। कुछ लोगों का कहना है कि अगर नियम तोड़े गए हैं तो सजा मिलनी चाहिए, चाहे वह आम आदमी हो या बड़ा नेता। वहीं कुछ लोग मानते हैं कि यह कार्रवाई राजनीतिक दबाव में की गई है।
सोशल मीडिया पर भी यह मुद्दा चर्चा में है। ट्विटर और फेसबुक पर #AkhileshYadav और #SPFine जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं।
अब बड़ा सवाल यह है कि क्या सपा इन चालानों का भुगतान करेगी या फिर इसे कोर्ट में चुनौती देगी। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि वे इस मामले को विधानसभा और सड़क दोनों पर उठाएंगे।
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि यह विवाद आने वाले चुनावी माहौल में सपा को “पीड़ित विपक्ष” के रूप में जनता के बीच पेश करने का मौका भी दे सकता है। वहीं भाजपा इसे “कानून सबके लिए बराबर” बताकर जनता का समर्थन लेने की कोशिश करेगी।
लखनऊ में समाजवादी पार्टी की गाड़ियों पर 8 लाख का चालान सिर्फ यातायात नियमों का मामला नहीं रह गया है, बल्कि अब यह विपक्ष बनाम सत्ता का नया राजनीतिक मुद्दा बन गया है। आने वाले दिनों में यह विवाद और गरमाने की संभावना है, क्योंकि अखिलेश यादव इसे चुनावी एजेंडा बनाने से पीछे नहीं हटेंगे।