
हिंदू धर्म में आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को मातृ नवमी के नाम से जाना जाता है। इस तिथि का संबंध पितृपक्ष से है और इसे विशेष रूप से उन माताओं की स्मृति में मनाया जाता है, जो अब इस संसार में नहीं हैं। मान्यता है कि इस दिन सच्चे मन से श्रद्धा और भक्ति भाव से किए गए तर्पण और उपायों से दिवंगत माताएं प्रसन्न होती हैं और अपने बच्चों को आशीर्वाद प्रदान करती हैं। मातृ नवमी 2025 में व्रत-उपवास, तर्पण और विशेष पूजा का अत्यधिक महत्व है।
मातृ नवमी 2025 की तिथि और महत्व
पंचांग के अनुसार, 15 सितंबर 2025, सोमवार को आश्विन कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि है। इस दिन मातृ नवमी का व्रत और श्राद्ध विधि-विधान से किया जाएगा। शास्त्रों में कहा गया है कि जैसे पितरों की तृप्ति के लिए पितृ पक्ष में तर्पण और श्राद्ध आवश्यक है, वैसे ही मातृ नवमी पर दिवंगत माताओं की आत्मा की शांति के लिए यह दिन अत्यंत शुभ माना जाता है।
मातृ नवमी पर किए जाने वाले प्रमुख उपाय
1. तर्पण और पिंडदान
इस दिन गंगाजल, तिल, कुश और जल से तर्पण करने का विशेष महत्व है। पवित्र नदी या तालाब के किनारे मां के नाम का तर्पण करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है।
2. सत्कार और दान
मातृ नवमी के दिन जरूरतमंदों को भोजन कराना और वस्त्र दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से दिवंगत मां को तृप्ति मिलती है और घर में सुख-समृद्धि आती है।
3. भोजन में विशेष परहेज
इस दिन तामसिक भोजन, मांसाहार, लहसुन-प्याज का सेवन वर्जित माना गया है। सात्विक भोजन करने और दूसरों को खिलाने से दिवंगत आत्मा प्रसन्न होती है।
4. धूप-दीप और विशेष पूजा
घर के मंदिर में गाय के घी का दीपक जलाकर मां की तस्वीर या स्मृति स्थल पर पुष्प अर्पित करें। यदि संभव हो तो देवी दुर्गा या गौरी की पूजा करें और मां के नाम से प्रार्थना करें।
5. गरीब बच्चों को अन्नदान
शास्त्रों के अनुसार, मातृ नवमी पर छोटे बच्चों को भोजन कराना और फल-मीठाई वितरित करना दिवंगत मां को संतोष प्रदान करता है।
मातृ नवमी का आध्यात्मिक महत्व
इस दिन किए गए कार्य न केवल दिवंगत माताओं की आत्मा की शांति के लिए होते हैं बल्कि यह बच्चों और परिवार पर भी सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। माना जाता है कि श्रद्धा और सच्चे मन से किया गया मातृ नवमी श्राद्ध जीवन की कठिनाइयों को दूर करता है और घर-परिवार में खुशियों का संचार करता है।
मातृ नवमी 2025 केवल धार्मिक अनुष्ठान का दिन नहीं है, बल्कि यह दिवंगत माताओं के प्रति प्रेम और सम्मान प्रकट करने का एक माध्यम है। इस अवसर पर किए गए तर्पण, दान और पूजा से न केवल मां की आत्मा को शांति मिलती है, बल्कि जीवन की अनेक बाधाएँ और परेशानियाँ भी दूर होती हैं।
इस लेख में दी गई जानकारियाँ धर्मग्रंथों, धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित हैं। इनका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इसे केवल आस्था और श्रद्धा के रूप में ही लें।