पश्चिम बंगाल में इन दिनों मतदाता सूची के अद्यतन (Voter List Update) और SIR प्रक्रिया को लेकर मतुआ समुदाय में आशंकाओं का माहौल गहरा गया है। एक तरफ नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के जरिए नागरिकता सुनिश्चित किए जाने का वर्षों पुराना वादा है, वहीं दूसरी तरफ SIR प्रक्रिया और दस्तावेज़ सत्यापन को लेकर भय बढ़ता जा रहा है।
मतुआ समुदाय, जो मुख्य रूप से बांग्लादेश से आए हिंदू शरणार्थियों से बना है, लंबे समय से नागरिकता को लेकर संघर्ष कर रहा है। अब SIR (Special Summary Revision) प्रक्रिया में दस्तावेज़ों की जांच को लेकर इस समुदाय में यह डर है कि वे आवश्यक पारिवारिक दस्तावेज़ साबित नहीं कर पाएंगे, जिससे उनका नाम मतदाता सूची से हट सकता है।

CAA के वादे और SIR के डर के बीच समुदाय की दुविधा
बीते वर्षों में केंद्र सरकार ने बार-बार आश्वासन दिया कि CAA के तहत बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, जैन, पारसी, ईसाई और बौद्ध शरणार्थियों को नागरिकता दी जाएगी। मतुआ समुदाय, जो एक बड़ी संख्या में बंगाल के उत्तर और दक्षिण 24 परगना, नादिया और अन्य जिलों में रहते हैं, इस वादे से सबसे अधिक प्रभावित है।
हालांकि, CAA लागू होने के बावजूद नागरिकता प्रक्रिया शुरू न होने से समुदाय में असमंजस है। वहीं दूसरी ओर, वोटर लिस्ट अपडेट के दौरान आवश्यक दस्तावेज़ों की मांग और सत्यापन की खबरें उन्हें और अधिक चिंतित कर रही हैं।
दस्तावेज़ न होने का सबसे बड़ा डर
मतुआ समुदाय के कई लोग बांग्लादेश से पलायन के दौरान अपने पैतृक दस्तावेज़ साथ नहीं ला सके थे। बहुतों के पास जन्म प्रमाणपत्र, भूमि संबंधी कागज, या पारिवारिक विरासत साबित करने वाले दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं हैं।
यही वजह है कि SIR प्रक्रिया में दस्तावेज़ सत्यापन को लेकर उनकी चिंता बढ़ती जा रही है। समुदाय के कई सदस्यों का कहना है कि
“हमने भारत में दशकों से जीवन बिताया, वोट दिया, सरकारी योजनाओं का लाभ लिया, लेकिन अब डर है कि कहीं दस्तावेज़ों की कमी की वजह से हमारा नाम ही न कट जाए।”
राजनीतिक दलों के बीच भी बढ़ी हलचल
मतुआ समुदाय दशकों से बंगाल की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाता रहा है।
एक ओर भाजपा CAA लागू करने को अपनी बड़ी उपलब्धि बताती है।
वहीं टीएमसी सरकार SIR प्रक्रिया में निष्पक्षता और पारदर्शिता पर जोर देते हुए यह आश्वासन दे रही है कि किसी नागरिक का नाम गलत तरीके से नहीं काटा जाएगा।
ममता बनर्जी कई बार यह कह चुकी हैं कि वोटर लिस्ट से नाम हटाने की किसी भी कार्रवाई को उनकी सरकार बर्दाश्त नहीं करेगी। वहीं भाजपा का दावा है कि CAA के लागू होते ही मतुआ समुदाय को स्थायी सुरक्षा और अधिकार सुनिश्चित होंगे।
मैदान में सक्रिय हो रहे मतुआ संगठन
मतुआ महासंघ सहित कई संगठनों ने जिलाधिकारियों और निर्वाचन अधिकारियों से मुलाकात कर यह मांग की है कि दस्तावेज़ न होने पर वैकल्पिक प्रमाण स्वीकार किए जाएं। संगठनों ने यह भी कहा है कि—
“जो लोग पीढ़ियों से भारत में रह रहे हैं, वे अचानक विदेशी कैसे हो सकते हैं? सरकार को मानवीय आधार पर प्रक्रिया सरल करनी चाहिए।”
विशेषज्ञों की राय – डर का कारण गंभीर है
चुनाव विश्लेषकों और सामाजिक विशेषज्ञों का मानना है कि मतुआ समुदाय की चिंता जायज है। क्योंकि—
SIR प्रक्रिया में दस्तावेज़ सत्यापन कड़ा होता है
पुराने दस्तावेज़ न होने पर कई लोग अपने पूर्वजों का रिकॉर्ड साबित नहीं कर पाते
वोटर लिस्ट से नाम कटना नागरिक अधिकारों पर सीधा प्रभाव डालता है
और CAA की नागरिकता प्रक्रिया अभी तक शुरू नहीं हुई है
विशेषज्ञों के अनुसार, सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई भी वैध भारतीय मतदाता दस्तावेज़ की कमी के कारण अपने अधिकारों से वंचित न हो।
लोगों की भावनाएं – पहचान खोने का भय
मतुआ समुदाय के लोगों का मानना है कि उनका संघर्ष केवल नागरिकता का नहीं, बल्कि पहचान और सम्मान का है। उन्होंने भारत को अपना घर बनाया है, यहां पीढ़ियों से रहते आए हैं और अब अचानक दस्तावेज़ों की कमी के कारण अधिकारों से वंचित होने का विचार उन्हें डराता है।
एक मतुआ परिवार ने कहा—
“हमने 50 साल से भारत में रहकर कर चुकाया, वोट दिया, बच्चों को पढ़ाया। अब अगर कोई कहे कि आप भारतीय नहीं हैं, तो यह कैसे स्वीकार होगा?”
समाधान जरूरी, संवाद अनिवार्य
SIR प्रक्रिया और वोटर लिस्ट अपडेट का उद्देश्य लोकतांत्रिक व्यवस्था को सही और पारदर्शी बनाना है, लेकिन यह भी उतना ही आवश्यक है कि जमीन से जुड़े समुदायों की भावनाओं का सम्मान हो।
मतुआ समुदाय की चिंता केवल दस्तावेज़ों की नहीं, बल्कि भविष्य की सुरक्षा से भी जुड़ी है। सरकारों और प्रशासन को इस समुदाय की ऐतिहासिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए सरल, मानवीय और मददगार प्रक्रियाओं को अपनाना चाहिए। यह समय है कि CAA के वादों और SIR की प्रक्रियाओं के बीच तालमेल बैठाया जाए, ताकि किसी भी नागरिक को पहचान और अधिकार की लड़ाई में पीड़ा न उठानी पड़े।
