
ओडिशा में नाबालिग लड़की को जिंदा जलाया गया था; हालत नाजुक
नई दिल्ली/भुवनेश्वर।
ओडिशा में नाबालिग लड़की को जिंदा जलाए जाने की दर्दनाक घटना ने देशभर को झकझोर दिया है। मामले पर संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तीखी प्रतिक्रिया दी और कहा, “हम शर्मिंदा हैं कि देश में ऐसी घटनाएं हो रही हैं।” कोर्ट ने राज्य सरकार और पुलिस प्रशासन की लापरवाही पर गहरी नाराज़गी जताई है।
क्या है मामला?
यह दिल दहला देने वाली घटना ओडिशा के कालाहांडी जिले की है, जहां एक 15 वर्षीय नाबालिग लड़की को कथित रूप से जिंदा जला दिया गया। पीड़िता की हालत बेहद गंभीर बताई जा रही है और वह भुवनेश्वर के एक विशेष अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, आरोपी युवक ने पीड़िता के साथ छेड़छाड़ की कोशिश की थी। जब लड़की ने विरोध किया, तो आरोपी ने पेट्रोल छिड़ककर उसे आग के हवाले कर दिया। आरोपी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है, लेकिन इस घटना ने कानून व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लिया और सुनवाई के दौरान बेहद भावुक और सख्त टिप्पणी की। जस्टिस संजय किशन कौल की बेंच ने कहा
कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वे महिलाओं और बच्चियों की सुरक्षा के लिए किए गए उपायों की रिपोर्ट जल्द से जल्द पेश करें।
विपक्ष और महिला आयोग की प्रतिक्रिया
घटना के बाद से राजनीतिक हलकों में भी आक्रोश है। विपक्षी दलों ने राज्य सरकार पर कड़ी कार्रवाई न करने का आरोप लगाया है। राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी ओडिशा पुलिस से रिपोर्ट तलब की है और पीड़िता के लिए विशेष चिकित्सा सहायता और न्याय की मांग की है।
सामाजिक संगठनों की मांग
देशभर में महिला सुरक्षा पर काम करने वाले सामाजिक संगठनों ने इस घटना की निंदा करते हुए आरोपी को फास्ट ट्रैक कोर्ट के माध्यम से सजा दिलाने की मांग की है। इसके साथ ही, कई संगठनों ने ओडिशा में बढ़ती महिला हिंसा की घटनाओं पर चिंता जताई है।
पीड़िता की स्थिति
डॉक्टरों के मुताबिक, लड़की का शरीर 70 प्रतिशत तक जल चुका है और वह अभी वेंटिलेटर पर है। उसकी हालत नाजुक बनी हुई है। अस्पताल प्रशासन ने बताया कि इलाज के लिए एक विशेष मेडिकल टीम बनाई गई है और लगातार निगरानी की जा रही है।
प्रशासन की कार्रवाई
ओडिशा पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है और केस को गंभीरता से लेते हुए आईपीसी की धारा 307 (हत्या की कोशिश), 354 (महिला की गरिमा का अपमान) और पॉक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज किया है। राज्य सरकार ने पीड़िता के परिवार को 5 लाख रुपये की आर्थिक सहायता और मुफ्त इलाज का आश्वासन दिया है।
इस वीभत्स घटना ने न केवल ओडिशा बल्कि पूरे देश को झकझोर दिया है। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी यह दर्शाती है कि अब केवल निंदा से काम नहीं चलेगा, बल्कि जमीनी स्तर पर मजबूत और प्रभावी कार्रवाई की ज़रूरत है। जब तक अपराधियों को त्वरित और कठोर सजा नहीं मिलेगी, तब तक ऐसे जघन्य अपराध रुकने की संभावना बेहद कम है।
न्याय का इंतज़ार है, लेकिन सवाल यह भी है कि आखिर कब तक बेटियां इस तरह जलती रहेंगी और देश “शर्मिंदा” होता रहेगा?